विशुद्ध प्रेम शास्त्र है श्रीमद्भागवत
प्रेम साधना है उपासना है अन्तकरण की शुद्धता का परिचायक है। प्रेम ईश्वर को प्राप्त करने की सबसे सहज विधा है। जिसको प्रेम हो जाता है वह अन्य किसी वस्तु की अभिलषा नहीं रखता। वह राग द्वेष हर्ष-विषाद से परे हो जाता है। प्रेम स्वार्थ नहीं बल्कि परमार्थ है। श्रीमद् भागवत तो विशुद्ध प्रेमशास्त्र है।
जागरण संवाददाता, सीतामढ़ी (भदोही) : प्रेम साधना है, उपासना है, अन्त:करण की शुद्धता का परिचायक है। प्रेम ईश्वर को प्राप्त करने की सबसे सहज विधा है। जिसको प्रेम हो जाता है वह अन्य किसी वस्तु की अभिलषा नहीं रखता। वह राग द्वेष, हर्ष-विषाद से परे हो जाता है। प्रेम स्वार्थ नहीं बल्कि परमार्थ है। श्रीमद् भागवत तो विशुद्ध प्रेम शास्त्र है। सीतामढ़ी क्षेत्र के शेरपुर, इटहरा में चल रहे भागवत कथा में प्रवचन करते हुए कर्मयोगी पं प्रमोद शास्त्री जी महाराज ने यह बातें कहीं। प्रेम की व्याख्या की।
श्रद्धालुओं को संदेश देते हुए कहा कि सांसारिक नर-नारी में स्वार्थ है, वासना है तो इसे मात्र लगाव कहा जा सकता है प्रेम नहीं। प्रेम सीखना है तो गोपियों से सीखो। कृष्ण से दूर रहते हुए भी उनसे प्रेम करती है। वे जानती हैं कि अब कृष्ण हमको कभी नहीं मिल सकते तब भी उनका प्रेम कम नहीं हुआ। अपने आपको कृष्ण के सुख स्वास्थ्य के लिए न्यौछावर करने को तत्पर रहती हैं। प्रेम सुदामा से सीखो जो विपन्न होते हुए भी अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने नहीं जाते। कारण कि वह कुछ दे देगें तो व्यवहार कहा जाने लगेगा। बार-बार पत्नी के आग्रह करने पर ही वह जाते हैं। इस मौके पर रूद्र प्रसाद दूबे, जमादार, ज्ञानचंद दुबे, अनिल दुबे व अन्य थे।