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कागज के ठोंगे में परोसे स्वरोजगार के दाने

मुहम्मद इब्राहिम, ज्ञानपुर (भदोही) ------------------------ सोच उम्दा और इरादा कुछ अलग कर गुजरने

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 08:07 AM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 08:07 AM (IST)
कागज के ठोंगे में परोसे स्वरोजगार के दाने
कागज के ठोंगे में परोसे स्वरोजगार के दाने

मुहम्मद इब्राहिम, ज्ञानपुर (भदोही)

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सोच उम्दा और इरादा कुछ अलग कर गुजरने का हो तो गरीबी की बेड़ियां भी राह की बाधा नहीं बन सकतीं। कुछ इसी सोच के साथ आगे बढ़ीं औराई ब्लाक के चकजुड़ावन गांव निवासी वनवासी परिवार की कलुई देवी। यह एक ऐसा नाम है जिसने न सिर्फ कागज के ठोंगे से स्वरोजगार की राह तलाश की, बल्कि पूरी वनवासी बस्ती में बदलाव की बयार बहा रही हैं। यूं तो वनवासी बस्ती का नाम आते ही टूटी-फूटी झोपड़ी व चहुंओर बिखरी गंदगी का एक सामान्य सा चित्र सामने आ जाता है। काम के नाम पर दोना-पत्तल बनाने से लेकर मजदूरी को ही इनके काम की पहचान मानी जाती है, लेकिन वह इस मिथक को पूरी तरह तोड़ चुकी हैं। ठोंगे के जरिए अपनी व बस्ती की तकदीर बदलती दिख रही हैं तो बदलाव लाने की मिसाल भी कायम कर रही हैं।

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पॉलीथिन को मिल रही चुनौती : कलुई के इस प्रयास से मानव जीवन से लेकर पर्यावरण व उपजाऊ मिट्टी की सेहत के लिए घातक पॉलीथिन को भी चुनौती मिल रही है। पॉलीथिन के खिलाफ आज सभी देश जंग लड़ रहे हैं। बाजार से पॉलीथिन को गायब करने की कोशिश हो रही है, लेकिन प्रशासन कामयाब नहीं हो पा रहा है। ऐसे में उसके यह प्रयास पॉलीथिन के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। तारा अक्षर ने दिखाई राह

चकजुड़ावन निवासी पति सोमारू द्वारा की जा रही मेहनत मजदूरी के जरिए ही परिवार का खर्च चल रहा था। ऐसे में पांच पुत्र व दो पुत्रियों की परवरिश करनी भारी पड़ रही है। जिदगी की इस कशमकश में उन्हें उस समय राह दिखाई पड़ी जब वर्ष 2018 में निरक्षर महिलाओं को साक्षर करने के प्रयास में जुटी तारा अक्षर संस्था से जुड़े राजेश कुशवाहा उसके घर पहुंच गए। उसने तारा अक्षर से जुड़कर ककहरा सीखा। फिर प्रशिक्षण हासिल कर कागज का ठोंगा बनाने के कार्य में जुट गई। चकमसूद की जैतुननिशां भी उसके इस काम में भरपूर सहयोग देती हैं। 150 रुपये का करती हैं काम

घर-गृहस्थी के तमाम कार्य की व्यस्तता के बाद बचने वाले समय में तीन से पांच सौ ठोंगे तैयार कर उसकी बिक्री कर परिवार का जीविकोपार्जन करने में पति का बखूबी साथ निभा रही हैं। इतने ठोंगे तैयार करने में करीब 150 रुपये की कमाई प्रतिदिन हो जाती है। इतना ही नहीं बस्ती की मनीषा, रीता, मनोजा, चंद्रमा, बिसारती देवी, ऊषा, शकुंतला, शिवकुमारी, आरती व चंदा को भी जोड़कर उसने उन्हें रोजगार की राह दिखा दी है। वह भी इस काम में लग चुकी हैं। डीएम ने किया सम्मान : ठोंगे बनाकर अपनी व लोगों की गरीबी की बेड़ियां तोड़ने की कोशिश के साथ स्वच्छता मिशन को लेकर उत्कृष्ट प्रयास करने पर जिलाधिकारी राजेंद्र प्रसाद द्वारा उन्हें कलेक्ट्रेट में आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही उनकी कोशिशों ने अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा लेने का संदेश दिया है।


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