दूध का नहीं कोई विकल्प, प्रत्येक दिन का करें प्रबंध
परिषदीय स्कूलों में बच्चों को दोपहर भोजन देने के उद्देश्य से संचालित मध्याह्व भोजन योजना (मिड -डे- मील) के क्रियान्वयन की समीक्षा को लेकर लखनऊ में जिला समन्वयकों की हुई बैठक के दौरान एमडीएम से दूध हटाने का सुझाव रखा गया। विकल्प के तौर पर फल से लेकर किसी अन्य खाद्य पदार्थ को शामिल करने की बात कही गई।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : परिषदीय स्कूलों में बच्चों को दोपहर भोजन देने के उद्देश्य से संचालित मध्याह्व भोजन योजना (मिड -डे- मील) के क्रियान्वयन की समीक्षा को लेकर लखनऊ में जिला समन्वयकों की हुई बैठक के दौरान एमडीएम से दूध हटाने का सुझाव रखा गया। विकल्प के तौर पर फल से लेकर किसी अन्य खाद्य पदार्थ को शामिल करने की बात कही गई। बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. सतीश चंद द्विवेदी के सामने उठे इस सुझाव पर विचार करने का निर्णय भी हुआ, लेकिन पौष्टिकता के तराजू पर तौला जाय तो दूध का कोई विकल्प नहीं दिखता। पौष्टिक तत्वों की परिपूर्णता से दूध संपूर्ण आहार है जबकि किसी भी फल में ऐसा नहीं है जिसमें सभी पौष्टिक तत्व पाए जाय। प्रोटीन तलाशना तो अन्यंत मुश्किल ही होगा। लिहाजा दूध वितरण को लेकर आ रही व्यवहारिक दिक्कत को दूर करने का विकल्प बस यही है कि सप्ताह में एक दिन के बजाय सभी दिन इसे एमडीएम में शामिल किया जाय।
मध्याह्न भोजन योजना के मेन्यू में प्रत्येक बुधवार को दूध देने का प्रावधान किया गया है। वैसे तो पूरी योजना विशेषकर दूध को लेकर हमेशा शिकायत छाई रहती है कि अधिकतर स्कूलों में दूध नहीं दिया जाता। या फिर पाउडर दूध का घोल पिला दिया जाता है। बैठक में इस तर्क के रूप में भी इसे हटाने के विकल्प पर विचार करने का सुझाव रखा गया। व्यवहारिक दिक्कत यह बताई गई कि सप्ताह में एक दिन ही दूध शामिल होने से मिलना मुश्किल होता है। अब बात करें दूध व फल अथवा अन्य खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्वों की तो कोई दूध के सामने टिकता नहीं दिख रहा है। जिला अस्पताल के चिकित्साधिकारी डॉ. प्रदीप कुमार की माने तो दूध संपूर्ण आहार होता है। जन्म के बाद बच्चे कई माह तक तो केवल दूध के सहारे ही जिदा व स्वस्थ रहकर पलते-बढ़ते हैं। दूध में प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, माइक्रोन्यूट्रेट के सभी तत्व, विटामिन ए व बी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जबकि फल में कैल्शियम, पोटेशियम तो मिल जाते हैं लेकिन प्रोटीन अधिकतर फलों में नहीं होता। या फिर नाम मात्र का होता है। अलग-अलग फलों में अलग विटामिन मिलते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि दूध का कोई विकल्प नहीं हैं।
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जिले में नहीं है दूध की कमी
- मध्याह्न भोजन योजना में दूध वितरण को लेकर भले ही चाहे जितनी शिकायतें उठ रही हों। स्कूलों में दूध न मिलने का रोना रोया जा रहा हो लेकिन पशुपालन विभाग के दुग्ध उत्पादन के आकड़ों को देखे तो सच्चाई यह सामने आती है कि जिले में दूध की कोई कमी नहीं है। आबादी के सापेक्ष पर्याप्त दूध उपलब्ध है। उपमुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. जेडी सिंह ने बताया कि प्रति व्यक्ति को रोजाना 250 ग्राम दूध की जरुरत है। इसके अनुपात में जिले के अंदर दूधारू गाय व भैंस 1,05000 के करीब हैं। जिनके जरिए औसतन 4,20000 लीटर दूध का उत्पादन होता है। जिले की आबादी 17 लाख के सापेक्ष यह उत्पादन पर्याप्त है।