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मां बंदी-बच्चे मासूम, सलाखों के पीछे रहते गुमसुम

बच्चे मन के सच्चे होते हैं। इनका मन कोरे कागज की तरह होता है। हम जो छाप इन बच्चों के मन मस्तिष्क पर डालेंगे उसका असर आजीवन दिखेगा। बच्चों को संस्कारवान

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 08:31 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 08:31 AM (IST)
मां बंदी-बच्चे मासूम, सलाखों के पीछे रहते गुमसुम
मां बंदी-बच्चे मासूम, सलाखों के पीछे रहते गुमसुम

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : बच्चे मन के सच्चे होते हैं। इनका मन कोरे कागज की तरह होता है। हम जो छाप इन बच्चों के मन मस्तिष्क पर डालेंगे उसका असर आजीवन दिखेगा। बच्चों को संस्कारवान, गुणवान, चरित्रवान व देश का योग्य नागरिक बनाना हर परिवार का दायित्व होता है। बच्चों की भावनाओं का कद्र करना चाहिए। यह सब तार्किक तथ्य जिला जेल में अपनी मां के साथ बचपन गुजार रहे मासूमों के अभिभावकों के लिए कोरा कागज साबित हो रहा है। आलम यह है कि बच्चे तो बेकसूर है फिर भी सलाखों के पीछे रात गुजार रहे हैं।

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जिला जेल में दहेज उत्पीड़न के साथ ही साथ अन्य मामलों में दो दर्जन महिला बंदी हैं। इसमे से तीन बंदी ऐसी हैं जिनके पास तीन से पांच साल तक के एक-एक बच्चे भी हैं। महिला बंदी दुलार से उनका नाम बबलू, पप्पू और आसू कहकर बुलाते हैं। घर का नाम तो कुछ और ही रखा गया है। यह तो सही है कि मां यदि जेल में हैं तो उसके बच्चों की परवरिश बाहर संभव नहीं है, लेकिन बचपन तो बचपन होता है। जिस तरह से बाहर खेलने-पढ़ने आदि की आजादी मिलती उस तरह से उन्हें जेल के बैरकों में आजादी नहीं मिल पाएगी। जेल में तो उनके नियम होते हैं। बैरक से कब बाहर निकलेंगे और कब अंदर जाएंगे। उनके कोमल मन मस्तिष्क से भय दूर करना, आत्मविश्वासी बनाना, सोचने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना, खेलकूद व विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से इनको हम उम्र में बेहतर बनाना आदि चुनौतीपूर्ण होगा। जेलर का कहना है कि बच्चे मां के साथ रहते हैं। उनके स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था की गई है। 114 के सापेक्ष 311 बंदी, लंबरदारों के भरोसे जेल

जर्जर सिगल बाउंड्रीवाल और ब्रिटिश काल में बने बैरक। क्षमता है 114 की और रहते हैं 311 बंदी। न तो जैमर की व्यवस्था और न ही बंदीरक्षकों की तैनाती। लंबरदारों (राइटर) के हाथ में जिला जेल की चाबी। यह हाल है ज्ञानपुर स्थित जिला जेल का। आलम यह है कि क्षमता को देखते हुए अन्यत्र जिला जेल बनाने का प्रस्ताव भी शासन की आलमारियों में धूल फांक रहा है। जिला जेल की क्षमता मात्र 114 बंदियों की है। जनपद सृजन के बाद 1994 में लॉकअप को उपकारागार का तो नवंबर 2014 में इसे जिला कारागार का दर्जा दे दिया गया। एक लॉकअप को जिला कारागार का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन शासन की ओर से न तो बंदीरक्षक बढ़ाए गए और न सुरक्षा के अन्य इंतजाम किए गए। फाइलों में पेंग भर रहा जिला जेल का प्रस्ताव

जिला जेल निर्माण का प्रस्ताव शासन में प्रस्तावित है। प्रस्ताव में एक हजार बंदियों की क्षमता की कार्ययोजना तैयार की गई है। 60 एकड़ भूमि की जरूरत है। जिला जेल के नाम मुंशीलाटपुर में 38 एकड़ भूमि मिल चुकी है। प्रस्ताव तैयार करने का क्रम वर्षो से चल रहा है, लेकिन अभी तक न तो भूमि आवंटित की गई और न ही वित्तीय स्वीकृति नहीं मिल पायी है।


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