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कालीन उद्योग को नहीं मिला जीआई टैग का लाभ

जागरण संवाददाता भदोही देश के लिए प्रति वर्ष 13 हजार करोड़ से अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले कालीन उद्योग की हालत खराब होती जा रही है। विशेषकर कालीन उत्पादन का जन्मदाता भदोही पिछले पायदान पर आ गया है। जबकि देश से होने वाले कुल कालीन निर्यात में भदोही की भागीदारी 30 फीसद है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 Oct 2021 11:08 PM (IST)Updated: Tue, 05 Oct 2021 11:08 PM (IST)
कालीन उद्योग को नहीं मिला जीआई टैग का लाभ

जागरण संवाददाता, भदोही : देश के लिए प्रति वर्ष 13 हजार करोड़ से अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले कालीन उद्योग की हालत खराब होती जा रही है। विशेषकर कालीन उत्पादन का जन्मदाता भदोही पिछले पायदान पर आ गया है। जबकि देश से होने वाले कुल कालीन निर्यात में भदोही की भागीदारी 30 फीसद है। गिरी हालत में भी भदोही-मीरजापुर से चार हजार करोड़ के कालीनों को प्रति वर्ष निर्यात किया जा रहा है। बावजूद इसके कालीन परिक्षेत्र मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। यहां तक कि 10 वर्ष पूर्व पूर्वांचल के कालीन उद्योग को जीआई टैग का दर्जा मिला था लेकिल लाभ आज तक नहीं हासिल हो सका है।

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व्यवसायिक वातावरण के अभाव में निर्यातक दूसरे शहरों व प्रांतों से निर्यात करने के लिए विवश हैं। चिता कि बात तो यह है कि सरकार द्वारा भदोही को विशेष निर्यात क्षेत्र (टाउन आफ एक्सीलेंस) का दर्जा दे चुकी है। इसी तरह पूर्वांचल के कालीन उत्पादों की विदेशों में विशिष्ट पहचान (ब्रांडिग) कायम करने के लिए वर्ष 2011 में भौगोलिक संकेतक (जीआई) का दर्जा दिया जा चुका है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इसके अंतर्गत मिलने वाली सुविधाएं आज तक भदोही को नसीब नहीं हो सकीं। जबकि इस संबंध में औद्योगिक संगठनों द्वारा सरकार के समक्ष कई बार मांग रखी जा चुकी है। बता दें कि जीआई के दायरे में भदोही, वाराणसी, चंदौली, मीरजापुर, जौनपुर, इलाहाबाद, कौशांबी और सोनभद्र जनपद को शामिल किया गया था। उत्पादों के प्रचार प्रसार व ब्रांडिग के लिए धन न मिलने के कारण जीआई की मान्यता महज कागजों तक सिमट कर रह गई। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दौर में उत्पादों की ब्रांडिग का महत्व बढ़ गया है। ऐसे में जीआई के अंतर्गत विशेष पैकेज की मांग उठने लगी है। निर्यातकों का कहना है कि विदेश में भारतीय कालीन उत्पादों के प्रचार प्रसार के लिए धन व निर्यातकों को प्रोत्साहित करने के लिए कम से कम पांच फीसद इंसेंटिव मिलना चाहिए। इस संबंध में अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एकमा) ने फिर से पहल शुरू की है। अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ एकमा के पूर्व मानद सचिव पीयुष बरनवाल का कहना है कि रविवार को वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल से इस संबंध में बात हुई थी। उन्हें भदोही आमंत्रित किया गया है। उनके सामने विस्तार से चर्चा की जाएगी।


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