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गायब पुत्र से मिलक निहाल हुए परिजन

कोइरौना थाना क्षेत्र के सोनैचा गांव से करीब एक वर्ष पहले गायब हुए पुत्र मोनू यादव को अचानक सामने पाकर परिजन निहाल हो उठे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2020 11:42 PM (IST)Updated: Sun, 22 Nov 2020 11:42 PM (IST)
गायब पुत्र से मिलक निहाल हुए परिजन

जागरण संवाददाता, ऊंज (भदोही) : कोइरौना थाना क्षेत्र के सोनैचा गांव से करीब एक वर्ष पहले गायब हुए पुत्र मोनू यादव को अचानक सामने पाकर परिजन निहाल हो उठे। उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे।

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गांव निवासी सुरेंद्र यादव का पुत्र मोनू यादव छांगुर (21) अपने साथियों संग 19 नवंबर 2019 को सेना की भर्ती में शामिल होने के नाम से निकला था। उसके सभी साथी वापस आ गए लेकिन वह लौटकर नहीं आया। वह ट्रेन में सफर के दौरान ही बिछड़ गया था। परिवार के लोग होटल से लेकर रिश्तेदारी तक काफी खोजबीन की। थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन कोई पता नहीं चल सका था। सब थक हारकर बैठ चुके थे। संयोग था कि अयोध्या के जगदीशपुर गांव निवासी डा. विकास सिंह के यहां शनिवार को आयोजित एक तिलकोत्सव कार्यक्रम में प्रतिभाग पहुंचे सोनैचा से सटे बैरीबीसा (केवलपुर) निवासी प्रकाश तिवारी की नजर वहां उपस्थित एक युवक पर पड़ गई। जिसे वह पहचान गए और बुलाकर पूछताछ करनी शुरू कर दी। मोनू के रूप में उसकी पुष्टि होने पर परिजनों को सूचना दी। रात में अयोध्या पहुंचे परिजन उसे सही सलामत पाकर निहाल हो उठे। परिजनों के अनुसार वह थोड़ा मंदबुद्धि है, जिसके चलते बिछड़ गया था। बच्चों को बचपन से ही देनी चाहिए भक्ति की प्रेरणा

जागरण संवाददाता, ऊंज (भदोही) : भक्ति के लिए कोई उम्र नहीं है। बच्चों को बचपन से ही भक्ति की प्रेरणा देनी चाहिए। क्योंकि वह कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। उन्हें जिस तरह चाहिए ढाला जा सकता है। डीघ ब्लाक के सोनैचा गांव में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन रविवार को संगीतमय प्रवचन में अयोध्या से आए स्वामी निर्मल शरण जी महराज ने उपस्थिति श्रद्धालुओं को भक्ति का रसपान कराते हुए यह बातें कही। श्रद्धालु श्रोता जयकारे लगाते रहे।

उन्होंने ध्रुव चरित्र कथा का वर्णन किया। कहा कि जब तक किसी कार्य को लेकर संतुष्टि न हो तो वह करना बेकार है। दु:ख-सुख के चक्कर में न पड़ने वाला ही सच्चा संत है। कहा कि जो मित्र के दुख में दु:खी न हो वह सच्चा मित्र नहीं होता। बताया कि दुर्योधन और अश्वत्थामा की गहरी मित्रता थी। इसी के चलते अश्वत्थामा ने पांडवों के चक्कर में पांडव पुत्रों को मार दिया। पांडव पुत्रों की अश्वत्थामा द्वारा हत्या करने के बाद दुर्योधन का प्राणांत हो गया, क्योंकि दुर्योंधन इसलिए दु:खी था कि उसके वंश में कोई पूर्वजों को पानी देने वाला नहीं बचा। मां-बाप की अनादर करने वालों का कोई भी पुण्यकर्म फलित नहीं होता है।अंत में आरती व प्रसाद वितरण किया गया। इस मौके पर शीतला प्रसाद पांडेय, देवीप्रसाद, पांडेय अजय दुबे, राजेश पांडेय, आनंद, रामसागर, पंकज, सरस पांडेय व अन्य थे।


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