चौथी बार बदली धौरहरा पुल की डिजाइन, लौटाया प्रस्ताव
दो वर्ष पहले इस पुल का प्रस्ताव भेजा गया था जिस पर आपत्ति लगाकर लौटा दी गई थी। इंजीनियरों ने आपत्ति का निस्तारण ही नहीं किया लिहाजा फाइल एक वर्ष धूल फांकती रही। अप्रैल 2019 में जब इस जर्जर और सकरे पुल के चलते राज्यमार्ग पर 35 से 40 किलोमीटर लंबा जाम लगने लगा तो इसकी फाइल दोबारा खोली गई।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर, भदोही : लुंबिनी-दुद्धी राजमार्ग (स्टेट हाइवे-5) पर भदोही में जाम का सबब बने धौरहरा पुल के जीर्णोद्धार की कोशिशें फिर कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही हैं। वरुणा नदी पर बने जर्जर व सकरे पुल को फ्लाईओवर जैसा आकार तभी मिलेगा, जब सेतु निगम या कोई एक्सपर्ट की राय पीडब्ल्यूडी प्रस्ताव में शामिल करेगा। दो दिन पहले लोक निर्माण विभाग के लखनऊ हेडक्वार्टर ने ब्रिज का प्रस्ताव चौथी बार लौटा दिया है।
दो टुक कहा है कि पीडब्ल्यूडी ब्रिज बनाने की कोई एक्सपर्ट संस्था नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि सितंबर में भेजे गये प्रस्ताव में सेतु निगम अथवा ब्रिज बनाने वाले विशेषज्ञ के सुझाव को शामिल किया जाए। अब पीडब्ल्यूडी ने लखनऊ के दो विशेषज्ञों की राय लेनी शुरू भी कर दी है। ऐसे में डिजाइन एक बार फिर से बदलने की संभावना को बल मिल रहा है। दोबारा प्रस्ताव पर मंथन हो रहा है। पीडब्ल्यूडी के सहायक अभियंता अजय सिंह ने बताया कि एक्सपर्ट ओपेनियन के बाद दोबारा प्रस्ताव मुख्यालय को भेजा जाएगा।
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तो लागत और बढ़ेगी :
दो साल में तीन बार डिजाइन पहले ही बदली जा चुकी है। इस बार पुल का प्रस्ताव कंक्रीट का बनाया गया था। लंबाई पांच मीटर बढ़ाई मगर चौड़ाई में कोई फेरबदल नहीं किया गया। पुल के दोनों तरफ लोगों के पैदल चलने की भी सुविधा होगी। रिटेनिग वॉल का भी निर्माण कराया जाएगा। पुराने प्रस्ताव की तुलना में लागत चार गुना बढ़ी है। यह पुल 12.25 करोड़ रुपये महंगा हो गया है। कुल 17 करोड़ रुपये में निर्माण कार्य पूरा कराया जाएगा।
सिर्फ प्रस्ताव बने, अब पुल भी बना दीजिए :
दो वर्ष पहले इस पुल का प्रस्ताव भेजा गया था, जिस पर आपत्ति लगाकर लौटा दी गई थी। इंजीनियरों ने आपत्ति का निस्तारण ही नहीं किया, लिहाजा फाइल एक वर्ष धूल फांकती रही। अप्रैल 2019 में जब इस जर्जर और सकरे पुल के चलते राज्यमार्ग पर 35 से 40 किलोमीटर लंबा जाम लगने लगा तो इसकी फाइल दोबारा खोली गई। आपत्ति का निस्तारण करते हुए ईंट वाले पुल का स्टीमेट भेजा गया था। लागत करीब 4.75 करोड़ रुपये थी, शासन ने यह कहते हुए स्टीमेट लौटा दिया था कि पुल को आरसीसी पैटर्न पर तैयार करने के लिए स्टीमेट भेजें।