ऊसर भूमि उगल रही 'लाला सोना'
डमरुआ जंगल में तैयार हो गए हैं एक हजार पेड़
जागरण संवाददाता, बस्ती: लाल सोना कहे जाने वाले खैर (कत्था) के पौधों के लिए बस्ती सदर रेंज के डमरुआ जंगल की ऊसर भूमि उपयुक्त साबित हो रही है। यहां खड़े एक हजार खैर के पेड़ इस बात की गवाही दे रहे हैं तो बता रहे हैं कि ऊसर भूमि में भी खैर की व्यावसायिक खेती की जा सकती है।
10 साल पहले रोपित किए गए थे 1500 पौधे दस साल पहले डमरुआ जंगल के कुछ हिस्सों में वन विभाग की ओर से बबूल के पौधों के साथ ही खैर के 1500 पौधे रोपे गए थे। यह प्रयोग के तौर पर पहली बार जिले के किसी वन्य क्षेत्र में किया गया था। यहां की ऊसर भूमि खैर के पौधों के लिए उर्वरा साबित हुई। एक हजार पौधे पेड़ के रूप में तैयार हुए। वन विभाग के सेवानिवृत्त क्षेत्रीय वन अधिकारी अमरनाथ यादव ने बताया कि खैर का पेड़ 40 साल बाद कत्था निकालने लायक होता है।
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औषधीय गुणों से भी युक्त है खैर जानकारों का कहना है कि खैर की छाल कुष्ठ रोगनाशक है। इसके पत्ते से तैयार काढ़ा खून को शुद्ध करता है, मूत्र रोग में लाभदायक होता है। पुराने घाव, फोड़े-फुंसी में भी इसकी छाल लाभदायक होती है। दांत के रोगों में भी यह लाभदायक होता है।
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प्रयोग के तौर पर डमरुआ जंगल में खैर के पौधे रोपित किए गए थे, जो अब बड़े हो चुके हैं। यहां की ऊसर भूमि खैर के पेड़ों के लिए उपजाऊ है। विभाग द्वारा इन पेड़ों का संरक्षण किया जा रहा है।
नवीन प्रकाश शाक्य, डीएफओ, बस्ती।