कहीं मरहम तो कहीं कुरेद रहे पुराने जख्म
पंचायत चुनाव पुरानी तकरार को याद दिला साध रहे निशाना
जागरण संवाददाता, दुबौला, बस्ती : गांव का मुखिया बनने का सपना लेकर पहली बार मैदान में आने वाले दावेदारों को तमाम परीक्षाओं से गुजरना पड़ रहा है। हर दिन मतदाताओं को समझाने से पहले सौ बार खुद को समझना पड़ रहा है। कल तक जो फूटी आंख नहीं सुहाता था, आज वह जब मतदाता के रूप में सामने पड़ रहा है,तो नमस्कार के साथ नतमस्तक होना पड़ रहा है। दोनों टाइम हाल चाल लेने के साथ जीतकर आने के बाद सारी समस्याओं का एक साथ निदान करने का आश्वासन भी थमा दिया जा रहा है। चूंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत है। ऐसे में मतदाता और प्रत्याशी एक दूसरे को बखूबी जानते हैं। जीवन में कई बार ऐसा हुआ जब छोटी- छोटी बातों को लेकर तकरार, कहासुनी और मनमुटाव हुआ होगा। ऐसा करने वाले में यदि कोई मतदाता है तो कोई बात नहीं लेकिन यदि संयोग से वह प्रत्याशी ठहरे तो पुराने जख्मों को हवा देने से कोई चूक नहीं रहा है। बेबस प्रत्याशी उसे गुजरी बात कहकर मान मनौव्वल में जुटे हैं। इस मसले का दूसरा पहलू भी है। मतदाताओं को साधने के लिए दूसरे दावेदार भी इस प्रकार के विवादों को हवा देकर जख्म ताजा करने से नहीं चूक रहे हैं। जिससे मतदाता उन्हीं पुरानी बातों और मसलों को लेकर अपना खेमा बदल लें। इस प्रकार के पुराने विवादों में फंसे प्रत्याशियों के लिए सबसे बड़े बाधक वह परिवार हैं, जहां वोटों की संख्या अधिक है। अब चुनाव नजदीक आया तो जख्म भी ताजे हो गए हैं। फिलहाल प्रत्याशी मरहम लगाकर प्रधानी की कुर्सी पाने के लिए जुटे हैं, तो दूसरी ओर मतदाता हैं कि जख्म कुरेदने से बाज नहीं आ रहे हैं।