वन नीति में विसंगतियों से किसान परेशान
कटान व ढुलान के लिए अलग अलग परमिट भी परेशानी का कारण
जागरण संवाददाता बस्ती: वानिकी को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा नीतियों में विसंगतियां बड़ी वजह है। पौधारोपण को लेकर पहले जैसा उत्साह अब लोगों में नहीं रहा। पेड़ को जरूरत पर काटने के लिए बनाए गए नियम सरल नहीं हैं। प्रत्येक वर्ष बड़े पैमाने पर जिले में पौधारोपण किया जाता है। पिछले कुछ वर्षो से इसमें किसानों को भी जोड़ा गया है। उन्हें खेतों के किनारे पौधारोपण के लिए वन विभाग की ओर से पौधे भी उपलब्ध कराए जाते हैं, मगर किसानों में पौधारोपण की ललक नहीं दिखी। वनस्पतिशास्त्री नियमों में फेरबदल करने और पौधरोपण के फायदे से लोगों को जागरूक किए जाने पर जोर दे रहे हैं।
वन नीति में खामियों से बढ़ी परेशानी
प्रदेश की वन नीति में कई खामियां है। किसान पेड़ लगाता है यह सोचकर कि जब उसे जरूरत होगी उसे काटकर लाभ ले लेगा, मगर नई वन नीति के अनुसार किसान को एक पेड़ काटने के बदले 10 नए लगाने होंगे। यदि उसके पास उतनी भूमि न हो तो वह पौध कहां लगाएगा। यदि वह पौध नहीं लगा सकता है तो 10 पेड़ के रखरखाव का पैसा जमा करे। इसको लेकर लोग काफी असहज महसूस कर रहे हैं। एक पेड़ के रखरखाव का खर्चा तकरीबन एक हजार आता है। कटान प्रक्रिया भी सरल नहीं है। एक पेड़ काटने के लिए कई अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते है। कटान का अलग तो लकड़ी के ढुलान का अलग अलग परमिट बनवाना भी विसंगति में शामिल है।
देखभाल न किए जाने से सूख जाते हैं पौधे
वन विभाग के सभी रेंजों में एसडीएम को फारेस्ट सेटलमेंट अफसर बनाया गया है,जो वन विभाग और किसानों की भूमि को लेकर उपजे विवादों का निपटारा करेंगे, मगर अब तक किसी भी एसडीएम ने ऐसे विवादों के संबंध में वन विभागों के अधिकारियों से बात तक नहीं की। वनस्पति शास्त्री संजय पाठक का कहना है कि हर साल बड़े पैमाने पर पौधारोपण होता है, मगर पौधों के देखभाल और रखरखाव की व्यवस्था न होने के कारण इनमें से अधिकांश सूख जाते हैं। ग्राम पंचायतों में पौधारोपण के लिए प्रधानों को पौधा उपलब्ध कराया जाता है, मगर यह लगे कि नहीं इसकी मानीटरिंग तक नहीं की जाती है।
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