जुगाड़ के सहारे मैकेनिक,ठोंक कर चेक की जाती हैं बसें
बस्ती डिपो के बेड़े में बसें है बीएस-4 माडल की और मेंटीनेंस व्यवस्था जुगाड़ू। मशीनीकरण के युग में यहां सब काम हाथ और जुगाड़ से चल रहा है। कर्मचारी रिच से बसों के बोल्ट खोलते हैं। यह हाल है बस्ती डिपो के कार्यशाला की। जीर्ण-शीर्ण हुई इस कार्यशाला में जान जोखिम में डाल कर मैकेनिक काम कर रहे हैं।
बस्ती : बस्ती डिपो के बेड़े में बसें है बीएस-4 माडल की और मेंटीनेंस व्यवस्था जुगाड़ू। मशीनीकरण के युग में यहां सब काम हाथ और जुगाड़ से चल रहा है। कर्मचारी रिच से बसों के बोल्ट खोलते हैं। यह हाल है बस्ती डिपो के कार्यशाला की। जीर्ण-शीर्ण हुई इस कार्यशाला में जान जोखिम में डाल कर मैकेनिक काम कर रहे हैं।
मुख्य गेट पर जलभराव के बीच बसें कार्यशाला में प्रवेश करती हैं। जब बसें आगे बढ़ती है तो पीछे धूल का गुबार उठता है। धूल के बीच बसों के मेंटीनेंस में कर्मचारियों को दोगुना मेहनत करनी पड़ती है। संसाधनों के अभाव के बीच कर्मचारी जूझ रहे हैं। टेक्निकल कर्मी बताते हैं बीएस-4 की बसें यहां ठीक नहीं हो पाती, चूंकि अभी उसका सिस्टम यहां अपडेट नहीं है। बसों में प्रतिमाह 250 लीटर मोबिल की खपत है। बसों की धुलाई खुद चालक करते हैं।
वर्कशाप में 15 बसें मरम्मत के लिए खड़ी मिलीं। किसी की पेंटिग तो किसी का पहिया खुला था। पूछताछ में बताया गया कि एक बस का इंजन खुला है। शेष चलकर आईं हैं थोड़ी-बहुत खामियां हैं उसे दूर कर भेज दी जाएंगी।
बसों की मियाद 10 साल या 11 लाख किमी तय है। सात बसें मियाद पूरी कर चुकी हैं, फिर भी उन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है। दो बसें 10 साल व 11 लाख किमी दोनों पार कर चुकी हैं। हाल ही में दस बसें निष्प्रयोज्य घोषित होने के बाद नीलाम कर दी गई।
कार्यशाला में 125 कर्मचारियों की तैनाती होनी चाहिए। लेकिन यहां 57 कर्मचारी ही हैं जिसमें 27 नियमित 30 संविदा के हैं। इन कर्मियों में अधिकतर कर्मचारी बीएस-4 की बसों में आने वाले फाल्ट को दूर करने में अक्षम हैं।
फोरमैन चंद्रभान भास्कर ने कहा कि बसों में इंजन का काम गोरखपुर से कराया जाता है। उपलब्ध संसाधनों से बेहतर सेवा देने का प्रयास किया जा रहा है। रही बात बीएस-4 बसों की तो इनकी मरम्मत टाटा के अधिकृत सर्विस सेंटर में कराई जाती है।