अनूप जलोटा की सरगम धुन के साथ बही भक्ति की बयार
राम-कृष्ण की स्तुति में देर रात तक भजनों की बौछार
बस्ती : महोत्सव की तीसरी रात शास्त्रीय संगीत के शिखर साधक अनूप जलोटा के नाम रही। उनके सुर, लय, तान श्रोताओं के लिए कर्ण प्रिय रहा। उनके संगीत के हर रियाज में भक्ति की अविरल गंगा देर रात बही। मंच आते ही जलोटा ने बस्ती की पावन धरा को अदब के साथ नमन किया। कहा कि यहां तमाम संतों ने समय बिताए है। इस भूमि को हम तपवन मानते है।
सांस्कृतिक संध्या की शुरूआत जलोटा ने अपने सुप्रसिद्ध भजन ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन, वो गली-गली हरि गुन गाने लगी। बीच सरगम की तान पर उनके मुक्त कंठ का रियाज शास्त्रीय संगीत के किसी शास्त्री से कम नहीं था। उपस्थिति भीड़ उनके गायन के इस कला की मुरीद बन गई। है आंख वो जो श्याम का दर्शन किया करे, है शीश तो प्रभु चरण में नमन किया करे. सुनाकर लोगों को भक्ति में डूबने पर विवश कर दिया। जलोटा ने अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम, राम नारायणम जानकी वल्लभनम भजन सुनाकर तो लोगों के मन मयूर पर छा गए। फिर तो जैसे चाहे वैसे ही श्रोताओं को रिझाए रखे। कौन कहता है भगवान आते नहीं, तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं. भजन पर लोग झूमते रहे। जलोटा के संगीत करिश्मा से भक्ति की अविरल गंगा प्रवाहित होती रही। उनके निरगुन रस की यह भजन तेरे मन में राम मेरे मन में राम, रोम-रोम में राम रे, माया में तू उलझा-उलझा. भी खूब सराहा गया। बचपन बीता खेल-खेल में, भरी जवानी सोया, देख बुढापा अब क्या सोचे क्या पाया क्या खोया. भजन की प्रस्तुति पर भीड़ सिर हिलाकर सोचने पर विवश हो गई। सबसे खास बात यह रही कि जलोटा के संगीत विधा पर भीड़ चुपचाप कान लगाए रखी। भजन समाप्ति के बाद उनके उत्साहवर्धन के लिए तालियों की गूंज हो रही थी। इसके पहले रामायण पर आधारित लेजर शो और रोहित ठाकुर के मिमिक्री शो का भी अनोखा मंचन हुआ। गांधी की सोच पर आधारित नृत्य भी काबिले तारीफ रहा।