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खुले में शौच से आई शर्म तो लगाई मानवाधिकार आयोग से गुहार

आंवला तहसील के इस गांव की इन महिलाओं को खुले में शौच से शर्म आई तो कच्चे घरों में रहने वाली इन महिलाओं ने पक्के शौचालय निर्माण के लिए प्रधान से लेकर ब्लॉक तक गुहार लगाई।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 17 Feb 2018 09:26 AM (IST)Updated: Sat, 17 Feb 2018 12:10 PM (IST)
खुले में शौच से आई शर्म तो लगाई मानवाधिकार आयोग से गुहार
खुले में शौच से आई शर्म तो लगाई मानवाधिकार आयोग से गुहार

बरेली (शिवओम पाठक)। उत्तरप्रदेश के देवचरा गांव की नौ महिलाओं की शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जिलाधिकारी को निर्देश जारी कर इन्हें जल्द से जल्द शौचालय उपलब्ध कराने को कहा है। आंवला तहसील के इस गांव की इन महिलाओं को खुले में शौच से शर्म आई तो कच्चे घरों में रहने वाली इन महिलाओं ने पक्के शौचालय निर्माण के लिए प्रधान से लेकर ब्लॉक तक गुहार लगाई। लेकिन किसी ने इनकी नहीं सुनी। हार थक कर महिलाओं ने मानवाधिकार आयोग के सामने गुहार लगाई।

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शौचालय मेरा मूल अधिकार

जाहिर है, इन अनपढ़ महिलाओं को इस बात की समझ है कि शौचालय इनका मूल अधिकार है। इन्हें पता है कि हमारे संविधान में जीने का मूल अधिकार सभी को प्राप्त है। इस कड़ी में इन्होंने शौचालय को भी जोड़ दिया है। किसी महिला के लिए खुले में शौच जाना समता और सम्मान से जीने के उसके मूल अधिकार का भी तो हनन है। लिहाजा, मानवाधिकार आयोग ने बरेली डीएम (जिलाधिकारी) को निर्देश जारी करने में देर नहीं लगाई। महिलाओं का प्रयास सफल रहा। राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एस रफत आलम ने बरेली डीएम को जल्द से जल्द आवश्यक कार्रवाई कर शिकायत निस्तारण के आदेश दिए और इसकी रिपोर्ट मांग ली है।

शबीना की जिद और कोशिशों का असर

देवचरा ग्राम पंचायत की नई बस्ती में डेढ़ सौ से अधिक परिवार रहते हैं। गरीबी की सिलवटें इनके चेहरों से लेकर कच्चे घरों पर छत के रूप में पड़ी पन्नी की चादर तक पर साफ देखी जा सकती हैं। सालों से शौच के लिए खेतों में जाने को मजबूर महिलाओं की स्थिति को इसी बस्ती में रह रहीं शबीना बेगम ने बदलने की ठानी। महज दो-तीन कक्षा तक ही पढ़ी शबीना केवल नाम लिख पाती हैं।

उन्होंने गांव के उन घरों की महिलाओं से बात की जिनके पास न घर है और न ही शौचालय। प्रधान से बात कर सूची में नाम लिखवाए, लेकिन दो साल से इंतजार ही करती रहीं। कोई जतन न दिखने पर गांव में आने-जाने वाले शिक्षकों, पोलियो पिलाने वाली टीमों आदि से मानवाधिकार आयोग का पता चला। शबीना ने खुद बस्ती की महिलाओं के नाम के साथ आयोग का दरवाजा खटखटाया।

इन्होंने उठाई आवाज

आवाज उठाने वालों में नई बस्ती निवासी शबीना के पति मूंगफली का ठेला लगाते हैं। शौचालय न होने से खेतों में जाना पड़ता है। रिजवाना के पति फल के ठेले से फेरी लगाते हैं। इतना पैसा नहीं कि कमरा और शौचालय बनवा सकें। नूरबानो को ससुराल ने अलग कर दिया है। नई बस्ती में जैसे-तैसे कच्चा घर खड़ा किया, लेकिन शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। देवचरा की खातून की पांच बेटियां हैं। परिवार बंटाई में खेती लेकर किसी तरह गुजर-बसर करता है। शौच के लिए इन्हें बाहर जाना पड़ता है। इन सभी का कहना है कि अब उन्हें बाहर जाने में शर्म आती है।

गांव में जिन परिवारों के आवास कच्चे हैं और शौचालय नहीं हैं, उनकी सूची बनवाकर ब्लॉक में भेजी थी। 167 लोगों के नाम ब्लॉक वालों ने शामिल किए। दो बार सरकारी टीम गांव में सर्वे कर चुकी है, लेकिन अभी न धन आया और न ही इस बारे में कोई सूचना दी गई। लगातार प्रयास कर रहे हैं।

-मनोरमा गुप्ता, ग्राम प्रधान 


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