उत्तर प्रदेश दिवस : पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था बरेली के मांझे के बिना अधूरी है गुजरात की पतंंग, माझां, सुरमा, जरी-जरदोजी बने पहचान
उत्तर प्रदेश दिवस गंगा-जमुनी तहजीब अदब और सांस्कृतिक विरासत वाले उत्तर प्रदेश का देश में अलग मुकाम है। फिर बरेली का जिक्र आते ही जहन में मांझा सुरमा जरी-जरदोजी बांस किसी चलचित्र की तरह चलने लगते हैं।
बरेली, जेएनएन। : गंगा-जमुनी तहजीब, अदब और सांस्कृतिक विरासत वाले उत्तर प्रदेश का देश में अलग मुकाम है। फिर बरेली का जिक्र आते ही जहन में मांझा, सुरमा, जरी-जरदोजी, बांस किसी चलचित्र की तरह चलने लगते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बरेली के मांझेंं की तारीफ कर चुके हैं। जरी-जरदोजी दक्षिण अफ्रीका, लंदन, खाड़ी देशों तक निर्यात हो रहा है। बरेली का दूसरा नाम ही बांस बरेली है।
24 जनवरी 1950 को यूनाइटेड प्रॉविन्स बना था उत्तर प्रदेश
वर्ष 1950 की 24 जनवरी को संयुक्त प्रांत से उत्तर प्रदेश नामकरण हुआ। बाद में पुनर्गठन करके उत्तर प्रदेश का मौजूदा स्वरूप तय हुआ। इससे पहले ब्रिटिशकाल में उत्तर प्रदेश को यूनाइटेड प्रॉविन्स के नाम से जाना जाता रहा। पूर्व राज्यपाल राम नाईक की पहल पर वर्ष 2018 से उत्तर प्रदेश का स्थापना दिवस मनाया जाता है।
बरेली ब्रिटिश सैन्य शक्ति का प्रमुख केंद्र था। 1857 की क्रांति की शुरूआत बरेली से हुई। गणतंत्र दिवस से ठीक दो दिन पहले बरेली में एक अलग माहौल बना था। आजादी की खुशी के साथ 1950 के 24 जनवरी को आतिशबाजी उत्तर प्रदेश के गठन को लेकर भी चली थी। 1950 से पहले हेड क्वाटर प्रयागराज हुआ करता था। बाद में मुख्यालय लखनऊ शिफ्ट हुआ था। -गिरिराज नंदन गुप्ता, इतिहासकार, आंवला
24 जनवरी 1950, अचानक लोग अपनी मिट्टी से जुड़ाव महसूस करने लगे थे। मैं बहुत छोटा था। परिवार की बातचीत से अनुभव हुआ कि प्रदेश का नामकरण हुआ है। हम अपनी संस्कृति से जुड़े हुए थे। लेकिन उत्तर प्रदेश का गठन होने के बाद लोगों की अलग ही खुशी थी। दो दिन बाद गणतंत्र दिवस था। बरेली के लोग खुशी से झंडे लहराने लगे थे। -जेसी पॉलीवाल, वरिष्ठ रंगकर्मी, बरेली
मांझा
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बरेली के मांझा के बगैर गुजरात की पतंग अधूरी है.। बरेली में बना मांझा सिर्फ उत्तर प्रदेश में नहीं खपता, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे कई राज्यों के अलावा यूरोप और एशिया के कई देशों मे बरेली का मांझा जाता है। बरेली के मांझा की एक अलग ही पहचान है।
बांस फर्नीचर
बरेली का दूसरा नाम ही बांस बरेली है। यहां बनने वाला बांस का फर्नीचर मजबूती की मिसाल होता है। उत्तर प्रदेश के कई शहरों के लोग सिर्फ बरेली के बांस फर्नीचर की खरीदारी करने के लिए खासतौर पर यहां आते हैं। यहां बनने वाले फर्नीचर की आपूर्ति उत्तर प्रदेश के साथ मध्यप्रदेश, राजस्थान में भी आपूर्ति होती है। बरेली में बांस के फर्नीचर का बड़ा कारोबार है।
सुरमा
आंखों की चमक बढ़ाने वाला सुरमा यहां पर 200 साल से बनता आ रहा है। 200 साल से पहले दरगाह-ए-आला हजरत के पास नीम वाली गली में हाशमी परिवार ने इसकी शुरुआत की थी। अब यहां सुरमे का केवल एक कारखाना है, जिसे एम हसीन हाशमी चलाते हैं। सुरमा बनाने के लिए सऊदी अरब से कोहिकूर नाम का पत्थर लाया जाता है। जिससे सुरमा बनाया जाता है।
जरी-जरदोजी
बरेली के पुराने शहर की गलियों से निकले जरी-जरदोजी की मांग सिर्फ उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि वैश्विक बाजार में भी है। हजारों परिवार कई पीढ़ियों से जरी-जरदोजी के व्यवसाय से जुड़े हैं। उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर में कपड़ों के बाजार में बरेली का जरी जरदोजी जरूर मिल जाएगा। यही बरेली की पहचान है, जो पूरे प्रदेश में फैली हुई है।
उप्र के लोग इनोवेटिव, मेहनत से नहीं डरते : प्रो. रजत मूना
बड़ा गर्व महसूस करता हूं, जब कही यह जिक्र आता है कि मैं उप्र का हूं। मेरे शहर, मेरे जिले और प्रदेश से मेरी पहचान है। वैश्विक पटल पर इसका नाम आने पर काफी अच्छा लगता है। मेरा प्रदेश शुरुआत से ही उत्तम प्रदेश रहा है। बीच में कुछ पिछड़ गया था, लेकिन एक बार फिर प्रदेश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यह कहना है आइआइटी भिलाई के निदेशक प्रो. रजत मूना का।
यूपी दिवस पर यह बातें उन्होंने फोन पर जागरण के संवाददाता को बताई। मूलरूप से शहर के मुहल्ला साहूकारा के रहने वाले प्रो. रजत ने बताया कि देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान उप्र का रहता है। यहां के लोग काफी इनोवेटिव होते हैं। वह किसी भी काम को करने से घबराते नहीं, न ही उससे पीछे भागते हैं।