बरेली मंडल में माननीयों को क्यों डराता है 18, 45, 97 का आंकड़ा
UP Assembly Elections 2022 अगर मैं वोट नहीं करूं तो क्या फर्क पड़ेगा.... लोकतंत्र के लगभग हर उत्सव में यह बात आपने भी किसी न किसी के मुंह से सुनी होगी। लेकिन स्वस्थ राजनीति के लिए अधिकतम मतदान बेहद आवश्यक है। चुनावों में ऐसा कई बार हुआ है।
बरेली, जेएनएन। UP Assembly Elections 2022 : अगर मैं वोट नहीं करूं, तो क्या फर्क पड़ेगा.... लोकतंत्र के लगभग हर उत्सव में यह बात आपने भी किसी न किसी के मुंह से सुनी होगी। लेकिन स्वस्थ राजनीति के लिए अधिकतम मतदान बेहद आवश्यक है। चुनावों में ऐसा कई बार हुआ है जब उम्मीदवारों को मामूली मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ता है। इससे साफ जाहिर होता है कि चुनावी महासमर में हर वोट मूल्यवान होता है। बरेली जिले में सिर्फ बहेड़ी विधानसभा सीट पर ही सबसे कम वोटों की हार जीत हुई है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के प्रत्याशी अताउर्रहमान अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के छत्रपाल सिंह से मात्र 18 वोटों से जीते थे। अताउर्रहमान को 48,172 और छत्रपाल सिंह को 48,154 वोट मिले थे। हालांकि वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में वहेडी विधानसभा से छत्रपाल सिंह ही विधायक चुने गए। लेकिन वर्ष 2012 में 18 मतों की हार से माननीय बनने का इंतजार पाँच साल बढ़ गया।
महज 45 मतों से हारे थे दिग्गज हरनरायन
पीलीभीत जिले में वर्ष 1980 में पूरनपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के डा. विनोद तिवारी व कांग्रेस(संयुक्त) से हरनरायन के बीच करीबी मुकाबला हुआ था। डा. तिवारी राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय में पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में सक्रिय रहे थे और पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे। वही हरनरायन को उस क्षेत्र के प्रभावशाली राजनीतिक नेता के तौर पर पहचाना जाता था। वह कई बार चुनाव जीतकर विधायक बन चुके थे। इस चुनाव में तत्कालीन विधायक हरनरायन डा. तिवारी से महज 45 मतों के अंतर से चुनाव हारे। डा. तिवारी को 24,339 और हरनरायन को 24, 294 वोट मिले थे। हरनरायन ने प्रशासन पर धाधली का आरोप लगाया था। हरनरायन का निधन हो चुका, वहीं डा. तिवारी फिलहाल भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं।
97 मतों से चुनाव हार गए थे राम विलास
शाहजहांपुर जिले के विधानसभा चुनावों में अब तक सबसे नजदीकी हार 1957 में जमौर विधानसभा में हुई। यहां से पीएसपी के देवनारायण भारतीय को 8,160 मत मिले। वहीं निर्दलीय लडे रामविलास सिंह 8,063 वोट ही पा सके थे, उन्हें 97 मतों से हार झेलनी पड़ी। इसी चुनाव में खेड़ा बझेड़ा विधानसभा से पीएसपी के प्रत्याशी रूम सिंह को 10, 117 मत मिले थे। दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के सुरेंद्र विक्रम सिंह को 9,922 वोट मिले थे। वहीं, शाहजहापुर विधानसभा पर इसी वर्ष निर्दलीय दर्शन सिंह को करीबी हार देखनी पड़ी थी। उन्हें 10,744 मत मिले थे। जबकि अशफाक 11,021 मत पाकर 272 वोटों से चुनाव जीते। 1989 में निगोही विधानसभा के चुनाव में अहिवरन लाल को 23,664 और निर्दलीय जगदीश सिंह 23, 456 मत मिले। महज 208 मतों से जगदीश विधायक बनने से चूके।
हीरालाल और ओमकार की तब हुई थी हार
बदायूं जिले में वर्ष 1991 के चुनाव में बिल्सी विधानसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा में बहुत करीबी मुकाबला हुआ था।कांग्रेस के भोलाशंकर मौर्य 31,546 वोट पाकर चुनाव जीत गए थे, जबकि भाजपा के हीरालाल वर्मा को 31,430 वोट मिले थे। भाजपा के प्रत्याशी महज 116 वोट से चुनाव हार गए थे। इसी तरह वर्ष 2007 के चुनाव में सहसवान सीट पर राष्ट्रीय परिवर्तन दल से डीपी यादव ने समाजवादी पार्टी के ओमकार सिंह यादव को 107 व से हराया था। डीपी यादव ने 33,881 मत पाए थे, जबकि ओमकार को 33,774 वोट मिले थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि ओमकार सिंह सहसवान से मौजूदा विधायक हैं, जबकि डीपी यादव एक बार फिर सहसवान से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।