लोगों को इतिहास से वाकिफ कराने के लिए बरेली का आइवीआरआइ सहेज रहा अहिच्छत्र की संपदा, महाभारत काल से जुड़ा है अहिच्छत्र
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) की देश-दुनिया में वैसे तो पहचान पशुओं के इलाज वायरस बैक्टीरिया से संबंधित खोज और पशुओं के इलाज की वजह से है। लेकिन आइवीआरआइ की नई पहचान बन रहा है यहां का संग्रहालय।
बरेली, जेएनएन। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) की देश-दुनिया में वैसे तो पहचान पशुओं के इलाज, वायरस, बैक्टीरिया से संबंधित खोज और पशुओं के इलाज की वजह से है। लेकिन आइवीआरआइ की नई पहचान बन रहा है यहां का संग्रहालय। इस म्यूजियम में अहिच्छत्र क्षेत्र में खोदाई से निकलीं कई वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। ये वस्तुएं शहर के कुछ लोगों ने आइवीआरआइ को दान में दी हैं। चूंकि अहिच्छत्र का महत्व जैन धर्म से जुड़े लोगों के साथ ही महाभारत काल से भी जुड़ा है। ऐसे में आइवीआरआइ पशुओं के इलाज के लिए नई नई खोज करने के साथ लोगों को इतिहास से भी वाकिफ करा रहा है।
धातु और मिट्टी की बनीं मूर्तियां हैं मौजूद
संग्रहालय के इंचार्ज डॉ.आर सोमवंशी बताते हैं कि आइवीआरआइ के संग्रहालय में रखी मूर्तियों में से कुछ धातु से बनी हैं। इसके अलावा मिट्टी से बनीं विभिन्न पशु, इंसानी चेहरे, पक्षियों से जुड़ी मूर्ति भी हैं। संग्रहालय के लिए ये मूर्तियां शहर के वीर सावरकर नगर निवासी संजय अग्रवाल और आंवला निवासी राकेश रस्तोगी ने दान में दी हैं।
फूटी कौड़ी देखकर चौंक जाते हैं लोग
संग्रहालय में कौड़ी और फूटी कौड़ी भी सुरक्षित रखी हैं। कौड़ी को ही भारत की पहली करंसी माना जाता है। नई पीढ़ी संग्रहालय में फूटी कौड़ी को देखकर जरूर कुछ सवाल पूछती है।
क्या कहते है म्यूजियम इचार्ज
म्यूजियम में जानवरों से जुड़ी कई रोचक चीज रखने के साथ-साथ दान में मिली अहिच्छत्र की संपदा भी सहेजी गई है। यहां उस काल की धातु और मिट्टी की दर्जनों हैं।
- डॉ.आर सोमवंशी, इंचार्ज, आइवीआरआइ म्यूजियम