कोरोना संक्रमण से बचने के लिए रुमाल और गमछा काफी नहीं, मास्क लगाना है जरूरी
कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जिले में भी बड़ी संख्या में लोग रुमाल या अंगोछे के ही भरोसे हैं। लेकिन खांसने और छींकने के समय ये मास्क या अंगोछा ड्रापलेट्स (बूंदों) को पूरी तरह बाहर जाने से रोकने में सक्षम नहीं है। इस बारे में टेस्ट चल रहा है।
बरेली, जेएनएन। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जिले में भी बड़ी संख्या में लोग रुमाल या अंगोछे के ही भरोसे हैं। लेकिन खांसने और छींकने के समय ये मास्क या अंगोछा ड्रापलेट्स (बूंदों) को पूरी तरह बाहर जाने से रोकने में सक्षम नहीं है। इस बारे में जागरूक करने के लिए इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर कैंडल या लाइटर टेस्ट चल रहा है। इस बारे में जागरूक करने के लिए इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर कैंडल या लाइटर टेस्ट चल रहा है। जागरण ने विशेषज्ञों से इस टेस्ट की तकनीकी जानकारी ली।
जानकार बताते हैं कि कॉटन के रुमाल की बिनाई के समय इसमें दो धागों के बीच काफी स्पेस रहता है। यही वजह है कि गर्मी के दौरान ये कपड़े काफी हद तक राहत देते हैं। ऐसे में जब हम छींकते या खांसते हैं तो पार्टिकल इन कपड़ों के स्पेस से तेजी से बाहर निकलते हैं। सामने वाले शख्स के भी मुंह पर रूमाल होने के बावजूद प्रेशर की वजह से संक्रमित ड्रापलेट उसके नाक या मुंह तक पहुंचने के लिए जरूरी होती हैं। यानी, मुंह पर रुमाल बांधना कोरोना से बचाव न के बराबर ही करता है।
कपड़े के मास्क खरीदें तो उसकी लेयर जरूर देखें: बाजार में कपड़े से बने डिजाइनर मास्क भी बिक रहे हैं। इसमें लोकल के अलावा कंपनी के भी मास्क आ चुके हैं। लोग बड़ी संख्या में इन्हें खरीद भी रहे। ऐसे में जरूरी है कि जब भी कपड़े के मास्क लें तो पहले चेक कर लें कि इसमें दोहरी या तीन परत हैं या नहीं। अगर दो या तीन परत का मास्क है तो वो ही छींकने की स्पीड से निकलने वाले पार्टिकल को रोक पाएंगे। केवल अच्छी कंपनी के मास्क ही कैंडल टेस्ट में पास होते हैं।
सर्जिकल या एन-95 मास्क सबसे कारगर: कैंडल टेस्ट में भी चेहरे पर सर्जिकल मास्क लगाकर फूंकते हैं तो मोमबत्ती काफी तेज फूंकने पर बुझती है। वहीं, एन-95 मास्क लगाकर काफी तेज फूंकने के बावजूद मोमबत्ती की लौ पर किसी तरह का असर नहीं पड़ता। आइवीआरआइ वैज्ञानिक डॉ.वीके गुप्ता बताते हैं कि अभी तक देश-दुनिया पर हुए अध्ययन में सर्जिकल और इससे भी बेहतर एन-95 मास्क ही सबसे कारगर बताए गए हैं। क्योंकि इसमें कई लेयर होती हैं।
50 मीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से निकलते हैं ड्रॉपलेट्स : सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की रिपोर्ट की बात करें तो छींकते समय अमूमन लोगों के मुंह से 50 मीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से ड्रॉपलेट्स निकलते हैं। ये छह मीटर की दूरी तक पहुंच सकते हैं। ऐसे में अगर बेहतर मास्क नहीं है तो संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है।