Kargil Vijay Diwas : पांच जांबाजों की जुबानी ये है कारगिल फतह की कहानी Bareilly News
जैसे ही हमें किसी दिशा में हलचल दिखाई देती तो हम उस दिशा में फायर करते थे। जवाब में उधर से भी फायरिंग होती थी।
बरेली, जेएनएन : दुश्मन को मात देने के लिए सबसे जरुरी था, उसकी लोकेशन और उसकी प्लानिंग के बारे में सटीक जानकारी लगाना। इसका जिम्मा सौंपा गया सिग्नल कोर को। जिसने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया। कोर की एक टीम दुश्मन के मैटर को सर्च कर रही थी तो दूसरी टीम मैसेज को सेना को डिलीवर कर रही थी। जैसे ही दुश्मन का कोई मैसेज पकड़ में आता, उसी के हिसाब से प्लानिंग बनाकर उस पर अटैक किया जाता। कुछ यूं लिखी गई कारगिल युद्ध की विजय गाथा।
कारगिल युद्ध में उधमपुर बार्डर पर तैनात सूबेदार मेजर मंजूर अहमद खान ने बताया कि युद्ध में सबसे अहम रोल सिग्नल कोर टीम का होता है। कोर का काम सूचनाओं को पास करना होता, जिनके आधार पर पूरी रणनीति बनाई जाती है। कोर का एक ही मकसद होता है सटीक सूचनाओं को पहुंचाओ, दुश्मन पर विराम लगाओ।
कारगिल युद्ध के दौरान पूंछ सेक्टर में राष्ट्रीय राइफल-25 में तैनात सूबेदार मेजर ऑनरी कैप्टन अरविंद कुमार बताते हैं कि हमारी पहली कोशिश होती थी कि दुश्मन की लोकेशन मिले। गोलीबारी ज्यादातर रात में ही होती थी। इसके लिए नाइट विजन कैमरे का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे ही हमें किसी दिशा में हलचल दिखाई देती तो हम उस दिशा में फायर करते थे। जवाब में उधर से भी फायरिंग होती थी। फायरिंग के हिसाब से उसकी ताकत का अंदाजा लग जाता था और फिर हम उसी हिसाब से दुश्मन पर अटैक करते थे।
वह बताते हैं कि युद्ध के दौरान उनकी ड्यूटी हिल रेंज में लगी थी। इस दौरान घर वालों से महीनों बात नहीं होती थी। एक दिन में सिर्फ पांच लोगों की ही बात हो पाती थी क्योंकि पहले आर्मी एक्सचेंज से बरेली एक्सचेंज में फोन किया जाता। इसके बाद बरेली एक्सचेंज सिविल एक्सचेंज में फोन मिलाता। तब सिविल एक्सचेंज घर में फोन करता, फिर जाकर बात हो पाती थी।
24 घंटे में एक किलोमीटर लंबा पुल बनाने में सक्षम
युद्ध में इंजीनियर रेजीमेंट ने दुश्मन को पटखनी देने के लिए न सिर्फ सेना के लिए अंडरग्राउंड बंकर बनाए बल्कि उसने दुश्मन को रोकने के लिए माइंस भी बिछाई। 106 इंजीनियर रेजीमेंट के हवलदार प्रमथेश गुप्ता ने बताया कि जैसे ही हमें सूचना मिली तो हमने पुल सड़क और बंकर बनाना शुरू कर दिया था। हम 24 घंटे में एक किलोमीटर लंबा पुल बनाकर दे सकते हैं। यह पुल पूरी तरह से लोहे के बने होते हैं जिन्हें ऑपरेशन के बाद खत्म कर दिया जाता है।
ऊपर से गुजर रहे थे गोले और बम
युद्ध के लिए एयरफोर्स को अलर्ट पर रखा गया था। कारगिल एयरपोर्ट पर तैनात एयर डिफेंस लाइट रेजीमेंट के सूबेदार जगदीश यादव ने बताया कि हम एयरपोर्ट की निगरानी कर रहे थे और हमारे ऊपर से गोले और बम गुजर रहे थे। अगर दुश्मन फाइटर प्लेन से अटैक करने की कोशिश करता तो हमारे फाइटर प्लेन उसे मार गिराने के लिए पूरी तरह से तैयार थे। भौगोलिक स्थिति की वजह से दुश्मन हम पर अटैक नहीं कर पा रहा था। जबकि हमारी बोफोर्स तोपें नीचे से ऊंचाई पर बैठे दुश्मन को निशाना बना रही थी।
भगोड़ों की तरह भागे थे पाकिस्तानी
युद्ध के समय द्रास सेक्टर में आर्मी मेडिकल कोर में तैनात हवलदार एके मिश्रा ने बताया कि घायल सैनिकों को कवर करने के लिए इन्फ्रेंट्री के साथ डॉक्टर्स की टीम रहती थी। जहां पर एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती थी वहां पर सिंगल मैन, टूमैन और फोरमैन घायल जवानों को पीठ और स्ट्रेचर पर लेकर उपचार के लिए लाया जाता था। जब हम टाइगर हिल पर पहुंचे और आमने-सामने लड़ाई हुई तो दुश्मन सैनिक भगोड़ों की तरह हथियार छोड़कर भागे थे। उन्होंने बताया कि सिर्फ 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। जब उन्होंने हथियार डालकर हाथ खड़े कर दिए थे। वहां कई घायल पाकिस्तानी सैनिक भी मिले, जिन्हें हमने बचाने की कोशिश की लेकिन बहुत सफलता नहीं मिली। मेडिकल कोर का काम हर सैनिक को बचाना होता है फिर चाहे वह अपने देश का हो या फिर दुश्मन का।
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