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बरेली शहर की ये नौ बेटियां नौ देवियों से कम नहीं, जानिये कैसे चीन और फ्रांस में अपनी प्रतिभा दिखाकर देश का नाम रोशन किया

संघर्षों से नहीं डिगीं पथ पर आगे बढ़ती गईं। सुविधा व संसाधन के बिना ही सफलता के उस मुकाम पर पहुंचीं जहां हर कोई पहुंचना चाहता है। वह आज युवा पीढ़ी के लिए मिसाल हैं। बरेली शहर में रहने वाली यह नौ बेटियां भी नौ देवियों से कम नहीं है।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 10:41 AM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 10:41 AM (IST)
बरेली शहर की ये नौ बेटियां नौ देवियों से कम नहीं, जानिये कैसे चीन और फ्रांस में अपनी प्रतिभा दिखाकर देश का नाम रोशन किया
बिना संसाधन नारी शक्ति ने दुनिया में लहराया देश का परचम।

बरेली, जेएनएन। संघर्षों से नहीं डिगीं, पथ पर आगे बढ़ती गईं। सुविधा व संसाधन के बिना ही सफलता के उस मुकाम पर पहुंचीं, जहां हर कोई पहुंचना चाहता है। वह आज युवा पीढ़ी के लिए मिसाल हैं। शहर के कैंट में रहने वाली यह नौ बेटियां भी नौ देवियों से कम नहीं है। उन्होंने अलग अलग खेलों में अपनी प्रतिभा दिखाकर चीन, फ्रांस आदि कई देशों में जिले और देश का नाम रोशन किया है। इनमें से तीन बेटियों की एसएसबी में नौकरी भी लग गई है।कैंट स्थित स्पोर्टस अथॉरिटी ऑफ इंडिया के स्टेडियम से ही सेपक टाकरा के यह खिलाड़ी मेहनत के दम पर आगे बढ़ीं हैं। खिलाडिय़ों का कहना है कि नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ी बनाने तक यह सफर कोच बीएल शर्मा की वजह से पूरा हो पाया है।

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भारत में बढ़ी सेपक टकरा की लोकप्रियता

सेपक टकरा के खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। इस वजह से इस खेल की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। इस खेल में खिलाड़ी गेंद की सर्विस करने के बाद हाथ से नहीं छूता है। इसमें पैर और घुटने का प्रयोग कर अपने सामने वाली टीम के प्वाइंट करता है। जिससे जीत और हार निर्णय अंपायर करता है। सेपक टकरा में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली शहर की खुशबू कन्नौजिया, रश्मि श्रीवास्तव व शिल्पी कुमारी का चयन एसएसबी में भी हो चुका है।

खिलाडि़यों की बात

सेपक टकरा खिलाड़ी डॉली श्रीवास्तव ने बताया कि विश्व सेपक टकरा चैंपियनशिप मेंं हमने चीन को हराकर ब्रांज मेडल जीता है। आर्थिक संकट के चलते काफी परेशानी आईं। लेकिन, अपनी मंजिल से डिगे नहीं और भारत का नाम रोशन किया।

मनीषा कुमारी का कहना है कि एशियन गेम्स 2014 और 2018 में सिल्वर मेडल लाए थे। जब नेशनल प्लेयर थे तब काफी परेशानी आईं थी। जो खर्चा खेलने में और आने-जाने में होता था। वह स्वयं ही करते थे। सरकार की तरफ से काई सुविधा नहीं मिली।

शिल्पी कुमारी ने बताया कि एसएसबी में नौकरी लगने के बाद भी नेपाल में हुई साउथ कोरियन चैंपियनशिप में भाग लिया था। जहां पर भारत का गोल्ड मेडल आया है। अच्छा लगता है,जब बाकि देशों को पछाड़ भारत नंबर वन पर होता है।खुशबू कुमारी ने बताया कि 2008 से सेपक टकरा खेल रही हूं। आर्थिक संकट की वजह से कई बार खेल छोडऩे का मन हुआ। लेकिन घर वालों ने हर मोड़ पर साथ दिया है। इस हौसले की वजह से ही फ्रांस, चाइना जैसे देशों को हराया है।

नेहा खान ने बताया कि साउथ एशिया सेपक टाकरा चैंपियनशिप में भारत ने गोल्ड मेडल जीता है। हमने इसमें प्रतिभाग किया था। मेरे लिए गौरव के क्षण रहे हैं। भारत का नाम जब दूसरे देश के लोग यह कहते हुए लेते ही कि भारत विजयी तो मानों हमारी सभी मेहनत सफल हो जाती है।

शिवानी कुमारी ने बताया कि नेशनल से इंटरनेशनल तक ये सफर काफी लंबा रहा है। आर्थिक संकट होने की वजह से कई बार परेशानी आईं। लेकिन कभी पीछे नहीं हटे हैं। आगे भी भारत का नाम रोशन करना है।रश्मी श्रीवास्तव ने बताया कि छह बार थाइलैंड, चाइना, इंडोनेशिया में सेपक टाकर में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। बेहद गौरव के क्षण रहे हैं, मेरे लिए। आर्थिक संकट की वजह से काफी परेशानी हुई चूंकि नेशनल में हमने खुद रुपये से ही खेलों में प्रतिभाग किया है।

रमा उपाध्याय ने बताया कि कर्नाटक, केरल मणिपुर, उड़ीसा जैसे कई जगहों पर सेपक टकरा खेल राज्य और शहर का नाम रोशन किया है। आगे भी भारत का प्रतिनिधित्व करने का सपना है। जल्द ही वह भी पूरा हो जाएगा। आर्थिक संकट इस खेल में तब आता है, जब नेशनल प्लेयर देश के किसी कोने में अपने रुपये से खेलने जाता है। ऐसी समस्या मेरे आगे भी आई।

हिना खान ने बताया कि झारखंड में ब्रांज, आंध्र प्रदेश में सिल्वर मेडल जीता है। घर में मां की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद से घर का खाना भी देखना होता है और प्रैक्टिस भी करनी होती है। दोनों ही बेहद जरूरी काम है। भविष्य में देश का नाम रोशन करूंगी।

कोच बीएल शर्मा ने बताया कि खिलाड़ी अपनी मेहनत के दम पर इतने आगे आए हैं। भारत का नाम सालों से रोशन करते हुए आ रहे हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे। कोरोना काल में खिलाड़ी सजग होकर अपनी प्रैक्टिस जारी रखे हुए हैं। 


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