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Jagran Special : बरेली के साहूकार कभी ब्रि‍ट‍िश सरकार को देते थे कर्ज Bareilly News

शहर का साहूकाराें रईसों और सेठों का मुहल्ला हुआ करता था। आलम यह था कि ब्रिटिश सरकार को जब पैसों की कमी होती थी तो मुहल्ले के रईस कर्ज देते थे।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sun, 02 Feb 2020 09:58 AM (IST)Updated: Sun, 02 Feb 2020 05:58 PM (IST)
Jagran Special : बरेली के साहूकार कभी ब्रि‍ट‍िश सरकार को देते थे कर्ज Bareilly News
Jagran Special : बरेली के साहूकार कभी ब्रि‍ट‍िश सरकार को देते थे कर्ज Bareilly News

शैलेष उपाध्याय, बरेली :  शहर कई मायनों में खास है। द्वापरयुगीन इतिहास की थाती को अपने दामन में समेटे इस शहर के कई रंग देखने को मिलते हैं। हर शहर की तरह यहां भी समय के साथ बदलाव हुआ। इनमें से कुछ बदलाव सुखद रहे तो कुछ अनमोल विरासतों की स्मृतियां की शेष हैं। लोगों को रोजगार देने वाली कुछ फैक्ट्रियां बंद हो गईं तो कुछ नई स्थापित हुई हैं। शहर ने शिक्षा एवं मेडिकल के क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। हालांकि पतंग एवं पतंगबाजी के लिए याद किए जाने वाले शहर में यह शौक अब लोगों से छूटता जा रहा है।

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यह कहना है बरेली बार एसोसिएशन के अध्यक्ष घनश्याम शर्मा का। अतीत की यादों को सहेजते हुए वह बताते हैं कि शहर का साहूकारा रईसों और सेठों का मुहल्ला हुआ करता था। आलम यह था कि ब्रिटिश सरकार को जब पैसों की कमी होती थी, तो मुहल्ले के रईस कर्ज देते थे। एक दौर था जब यहां चांदी के सिक्के धूप में सुखाए जाते थे। सुरक्षा के लिहाज से मुहल्ले में सात फाटक लगे हुए थे, जो आज भी हैं। हालांकि इनमें से कुछ जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं।

आज भी शहर में किसी तरह का तनाव होने पर इन फाटकों को बंद कर दिया जाता है। अंदर लोग पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं। मुहल्ले में ही लोगों के बाग एवं फार्म हाउस हुआ करते थे। डेलापीर स्थित फतेह बगिया कभी पतंगबाजी का बड़ा केंद्र हुआ करती थी। बरेली में बनीं पतंगों व मांझे का निर्यात आस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों को होता था। अब यह कारोबार अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। इसी तरह हैंडलूम उद्योग भी समाप्ति की कगार पर है।

यहां बनी दरी काफी मशहूर थी। जरदोजी के कारोबार में कुछ तरक्की जरूर हुई है। यहां का फर्नीचर उद्योग भी काफी मशहूर था। यहां से फर्नीचर मुंबई, चेन्नई, कोलकाता समेत देशभर में भेजे जाते थे और विदेश तक निर्यात भी किया जाता था। यह भी अब समाप्ति की कगार पर है। पहले बरेली से असोम तक माला जंगल फैला हुआ था। आबादी बढ़ी तो जंगल कटते गए। एशिया में मशहूर रबर फैक्ट्री, कत्था फैक्ट्री भी बंद हो गईं। पहले स्थानीय मंडी में ही ताजे फल व सब्जियां आदि मिल जाती थीं। अब सब कुछ बाहर से आता है।

शिक्षा व मेडिकल के क्षेत्र में हुए सुखद बदलाव : शिक्षा व मेडिकल के क्षेत्र में शहर ने अभूतपूर्व तरक्की की है। पहले जहां केवल बरेली कॉलेज ही एक मात्र उच्च शिक्षण संस्थान था, अब रुहेलखंड विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद महाविद्यालयों के अलावा कई मेडिकल, इंजीनियङ्क्षरग एवं मैनेजमेंट कॉलेज खुले हैं। पहले जहां शहर में गिने-चुने चिकित्सक हुआ करते थे, आज रामपुर गार्डन, पीलीभीत बाईपास एवं स्टेडियम रोड पर हाईटेक अस्पतालों की भरमार है। जाम की समस्या जस की तस बरकरार है। पहले किला क्रॉसिंग पर जब जाम लगता था तो लखनऊ रोड पर फरीदपुर व रामपुर रोड पर फतेहगंज तक वाहनों की कतार लग जाती थी। आज भी शहर जाम की समस्या से जूझ रहा है।

समय के साथ जीवन मूल्यों में भी बदलाव हुआ है। पहले लोगों में आत्मीयता होती थी। लोग एक दूसरे के सुख-दुख में शरीक होते थे। अब आपस का यह प्रेम एवं सद्भाव समाप्त हो गया है। न्याय व्यवस्था भी तेजी से बदली है। पहले वास्तविक न्याय पर जोर दिया जाता था। अब कागज पर न्याय हो रहा है। मजिस्ट्रेट मौका मुआयना करने भी जाते थे। सुविधाएं कम थीं। एक जमाना था जब जज पैदल या साइकिल से ही कोर्ट आते थे। अब अपराधों की प्रवृत्ति भी बदली है। पहले चोरी-डकैती, जमीन-जायदाद के झगड़े होते थे। आज जालसाजी और ठगी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। महिला अपराधों की भी बाढ़ सी आ गई है। नैतिकता का तेजी से पतन हुआ है 


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