बीमारी की जानकारी न होने पर हुई थी पिता की मौत, दूसरों के साथ ऐसा न हो इसलिए मदद को बनाई कंपनी
कठिन समय से निकलने वाले अक्सर सही फैसले लेते हैं। ऐसा ही एक निर्णय जिले की फरीदापुर चौधरी की रहने वाली शबनम ने 2019 में लिया। उन्होंने पिता की मौत के बाद चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी 750एडी हेल्थ केयर नाम की कंपनी बनाई।
बरेली, जेएनएन। कठिन समय से निकलने वाले अक्सर सही फैसले लेते हैं। ऐसा ही एक निर्णय जिले की फरीदापुर चौधरी की रहने वाली शबनम ने 2019 में लिया। उन्होंने पिता की मौत के बाद चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी 750एडी हेल्थ केयर नाम की कंपनी बनाई। इसकी वेबसाइट भी लॉंच की। जिसमें देश भर के कई डाक्टरों और उनकी विशेषज्ञता की जानकारी शामिल की गई है। इसके अलावा वेबसाइट में अस्पताल, नर्स, वार्ड बॉय और दवा आदि की उपलब्धता की जानकारी का डेटा भी डाला है। इसके जरिए व्यक्ति एक ही जगह से चिकित्सा संबंधी कई जानकारी हासिल कर सकता है।
फरीदापुर चौधरी में रहने वाली शबनम खान बताती हैं कि वर्ष 2019 में उनके पिता डा. नबी रजा खां की अचानक तबियत खराब हुई। वह उन्हें लेकर बरेली के ही एक हास्पिटल पहुंची। जहां पिता को आनन फानन भर्ती तो कर लिया गया लेकिन उन्हें क्या दिक्कत है। यह बताने वाला कोई नहीं था। इसके बाद कुछ ही घंटों में उन्हेें बताया गया कि पिता की मौत हो चुकी है। सैकड़ों सवालों के बाद भी उन्हें सही जानकारी नहीं मिल सकी कि पिता को हुआ क्या था। शबनम बताती हैं कि अच्छी सुविधाओं, रोगी देखभाल, रिपोर्टों में पारदर्शिता और एक सक्रिय दृष्टिकोण के साथ एक सहायक अस्पताल प्रबंधन खोजने के भ्रम के उन क्षणों के संघर्ष के बाद उन्होंने 750एडी हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड की शुरूआत की। 750 एडी हेल्थकेयर एक ऐसा माध्यम है जहां मरीज़ अपने आसपास सभी स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जान सकते हैं। वह डॉक्टरों, नर्सों या अस्पतालों पर अपनी प्रतिक्रिया भी साझा कर सकते हैं। लॉकडाउन और कोरोना काल में उनके इस 750एडी हेल्थ केयर के जरिए कई लोगों को मदद मिली। बताती हैं यह उनका एक स्टार्टअप था जो अब सफलता की राह पर है।
कंपनी में 60 फीसद महिलाएं
शबनम कहती हैं कि महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए एक दूसरे का समर्थन करना सबसे आवश्यक है। इसके साथ ही उनकी शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार प्रोत्साहित करना चाहिए। उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें किस तरह का वातावरण मिलता है। उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी में 60 फीसद से ज्यादा महिलाएं ही काम करती हैं। कहती हैं कि मंज़िल मिलेगी, भटककर ही सही.. गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं।