Jagran Special : शाहजहांपुर की इस शिक्षिका ने अविवाहित रहकर बेटियों की जिंदगी को किया रोशन Shahjahanpur News
60 का दशक। वह दौर जिसमें रूढ़िवादिता के चलते लड़कियों को शिक्षा से दूर रखा जाता था। उनकी भूमिका घर में चौका-चूल्हा संभालने तक सीमित थी।
शाहजहांपुर, नरेंद्र यादव : 60 का दशक। वह दौर, जिसमें रूढ़िवादिता के चलते लड़कियों को शिक्षा से दूर रखा जाता था। उनकी भूमिका घर में चौका-चूल्हा संभालने तक सीमित थी। उस दौर में महज 17 साल की उम्र में उर्मिला श्रीवास्तव ने महिला शिक्षा से नारी सशक्तीकरण की ऐसी नींव रखी। जो आज किसी नजीर से कम नहीं है। पुवायां जैसे छोटे से कस्बा में जन्मीं उर्मिला ने आजीवन अविवाहित रहकर बालिका शिक्षा का दीप जलाए रखा। बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ के प्रति उनका जुनून और जज्बा ऐसा था कि उन्हें कभी थकने व ठहरने नहीं दिया।
खुद पढ़ाकर की पढ़ाई : उर्मिला बचपन में मां सरस्वती को खो चुकी थी। इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान पिता श्याम सुंदर श्रीवास्तव की भी मौत हो गई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। त्याग रूपी तेल व पुरुषार्थ रूपी बाती से शिक्षा का दीप जलाए रखा। महज 17 साल की उम्र में खुद की पढ़ाई के लिए आर्य समाज के स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया।
उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, गणित, जीव विज्ञान, गणित समेत 12 विषय से इंटरमीडिएट की पास की। पांच विषय से व्यक्तिगत छात्र के रूप में परास्नातक किया। 1972 में एसएस कॉलेज से बीएड, 1983 में अवध विश्वविद्यालय से डॉ. हौसला प्रसाद के निर्देशन में चंद्रसखी कृतित्व और व्यक्तित्व विषय पर पीएचडी की उपाधि हासिल कर डीलिट के लिए भी नाम दर्ज करा लिया।
उर्मिला पांच दशक में करीब तीन पीढ़ियों को शिक्षित बना चुकी है। इनमें से करीब तीन दर्जन बेटियों को शिक्षक बना दिया। राज्य स्तर पर उत्कृष्ट शिक्षण के लिए दो बार पुरस्कृत अमिता शुक्ला उनकी ही शिष्या है। बाल कल्याण समिति मजिस्ट्रेट सुयश सिन्हा बुआ उर्मिला से प्राप्त शिक्षा की बदौलत ही यहां तक पहुंचे।
1981 में बेटियों के लिए खोला स्कूल
बेटियों की बदहाल शिक्षण व्यवस्था देख 1981 में बेटियों के लिए अपने घर में आदर्श बालिका विद्यालय के नाम से स्कूल खोल दिया। आजीवन अविवाहित रहते हुए उन्होंने 2010 तक शिक्षण कार्य किया। वृद्धावस्था पर उन्होंने प्रबंध समिति के सदस्य को विद्यालय सौंप दिया।