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Tantra Ke Gan : कोरोना काल में खाकी ने बदली सोच, बरेली के इस दारोगा ने प्रवासियों व जरूरतमंदों के नाम किया आधा वेतन

Tantra Ke Gan मार्च के अंतिम सप्ताह में अदृश्य मुसीबत ने घेरा तो मदद के लिए वर्दी वाले सबसे आगे थे। कोरोना वायरस के डर को दरकिनार करते हुए वे कभी प्रवासियों को भोजन का इंतजाम करते दिखे तो कभी उनके ठहरने की व्यवस्था करने में लगे रहे।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 08:38 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 08:38 AM (IST)
Tantra Ke Gan : कोरोना काल में खाकी ने बदली सोच, बरेली के इस दारोगा ने प्रवासियों व जरूरतमंदों के नाम किया आधा वेतन
कोरोना काल में खाकी ने बदली सोच, बरेली के इस दारोगा ने प्रवासियों व जरूरतमंदों के नाम किया आधा वेतन

बरेली, अंकित गुप्ता। Tantra Ke Gan : मार्च के अंतिम सप्ताह में अदृश्य मुसीबत ने घेरा तो मदद के लिए वर्दी वाले सबसे आगे थे। कोरोना वायरस के डर को दरकिनार करते हुए वे कभी प्रवासियों को भोजन का इंतजाम करते दिखे तो कभी उनके ठहरने की व्यवस्था करने में लगे रहे। इन्हीं में दारोगा सिद्धांत वर्मा भी थे। प्रवासियों व शहर के जरूरतमंदों की तकलीफ देखी तो उन्हें अपने वेतन का आधा हिस्सा उन्हीं के नाम कर दिया।

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कोरोना संक्रमण के कारण 22 मार्च के बाद लाकडाउन में प्रवासियों को घर जाने की फिक्र थी। 27 व 28 मार्च को पहली बार पैदल प्रवासियों के जत्थे शहर की सीमा से गुजरते दिखे। उस समय सिद्धांत शर्मा स्टेशन रोड चौकी के इंचार्ज थे। वह बताते हैं कि उन दोनों दिन कई प्रवासी दिल्ली से चलकर पैदल यहां तक आ गए। स्टेशन के पास किसी वाहन की आस में भटक रहे थे। भूख से बेहाल थे।

कई की जेब खाली, जिनके पास रकम थी, वे भी कुछ खरीद नहीं सकते क्योंकि दुकानें बंद थीं। उन लोगों के लिए एक दुकान खुलवाकर बिस्किट आदि का इंतजाम किया। मुझें संतोष था कि मुसीबत से घिरे लोगों की मदद कर सका। उस दिन के बाद नियम बना लिया। आवश्यक वस्तु के तहत ब्रेड आदि की सप्लाई हो रही थी, इसलिए वितरक को 10 हजार रुपये एडवांस दे दिए कि रोज सुबह को चौकी पर पर्याप्त मात्र में ब्रेड दे जाएं।

प्रवासियों के साथ मोहल्ले वालों की मदद

10 दिन तक स्टेशन रोड चौकी पर यही सिलसिला चलने लगा। इस बीच प्रवासियों के साथ-साथ मोहल्ले में रहने वाले मजदूरों आदि के सामने भी खाने का संकट होने लगा था। उनकी मदद के लिए सिद्धांत ने एक होटल वाले से संपर्क किया। तय किया कि रोजाना 300 पैकेट बनाकर दे दें। ये पैकेट मोहल्ले के जरूरतमंदों को बांट दिए जाते थे। इस बीच प्रशासन की ओर से भी भोजन वितरण होने लगा था, मगर सिद्धांत ने यह व्यवस्था लागू रखी।

अप्रैल में वेतन आया तो उसमें से आधा हिस्सा यानी करीब 25 हजार रुपये किराना दुकानदार को दे दिया। यह कहते हुए कि भोजन पैकेट बनाने वाला हलवाई राशन लेकर जाया करेगा। बाद में वितरण के लिए राशन पैकेट भी बनवाने शुरू कर दिए। प्रवासियों की आवाजाही थम कई, तब भी वह जुलाई, अगस्त तक वितरण करते रहे।

सूचना मिलते ही पहुंच गए रक्तदान करने के लिए

कोविड काल मे ही उत्तराखंड के एक व्यक्ति को बीमारी हालत में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसकी पत्नी ने बरेली पुलिस को ट्वीट कर मदद मांगी। ओ पॉजिटिव ब्लड की मांग थी। सिद्धांत को पता चला तो वह रक्तदान करने के लिए अस्पताल पहुंच गए।

डीएम ने खुद संभाली स्वास्थ्य विभाग की कमान  

कोरोना महामारी अप्रत्याशित थी, आला अफसरों को भी समझ में नहीं आ रहा था, क्या करना है..? ऊपर से जैसा फरमान मिलता रहा था, उसका अनुपालन कराया जाता रहा था। जब अस्पतालों में बड़ी संख्या में कोरोना मरीज भर्ती होने लगे तो व्यवस्था बनानी मुश्किल होने लगी थी। हालत यह हो गई थी कि सामान्य जरूरतें सब्जी, दूध और पानी की सप्लाई देने वाले भी कोरोना अस्पताल परिसर में जाने से कतराने लगे थे। सेहत महकमे के अफसरों के भी हाथ-पांव फूलने लगे थे। इन हालातों में डीएम कुमार प्रशांत ने धैर्य से काम लिया। स्वास्थ्य विभाग और पुलिस अधिकारियों को साथ लेकर कमान खुद संभाली। खुद अस्पताल पहुंचकर वीडियो काल कर मरीजों की समस्याएं सुनी और तत्काल उनका निदान करवाया। सामाजिक और आर्थिक गतिविधियां ठप होने से समाज में अफरा-तफरी का माहौल न बने, इसके लिए प्रशासनिक कार्यो के साथ सामाजिक दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन करते रहे।पिछली साल मार्च में जिलों में भी कोरोना संक्रमण फैल चुका था, तब तक जिले में कोई केस नहीं था।

सिस्टम लड़खड़ाया तो प्रशासन व पुलिस ने संंभाला 

कोरोना काल में जब सिस्टम लड़खड़ाया तो प्रशासन व पुलिस आगे आई। रात दिन डयूटी लोगों की मदद की। किसी ने जरूरतमंदों के लिए भोजन बनाया तो तो कोई खून देने पहुंच गया। अगर धन की कमी सामने आई तो अपनी तनख्वाह खर्च कर दी। लाकडाउन के दौरान ऐसी कई तस्वीरें सामने आती रहीं।

जलालाबाद के प्रभारी निरीक्षक जसवीर सिंह लाकडाउन के दौरान पुवायां में तैनात थे। उन्होंने बाहर से आ रहे प्रवासियों की मदद के लिए अपना वेतन दान दे दिया। अपील की तो थाने में तैनात अन्य पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ प्रशासन के फंड में वेतन दिया, बल्कि जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े, दवा आदि सामान मुहैया कराया। रक्तदाताओं की कमी के कारण जरूरतमंद मरीजों को खून मुश्किल से मिल पा रहा था। यहां भी पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी निभाई। 


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