कोरोना आपदा के बीच महिलाओं के लिए सुमन बनीं रोजगार का जरिया, मशरूम की खेती के जरियों महिलाओं को दिया रोजगार
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुमन देवी ने बताया कि वह 2004 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बनीं। गांव में करीब दर्जन भर महिलाओं की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। वह अपने बच्चों के साथ मुश्किल से जीवन यापन कर पा रही थी। गांव की दो महिलाएं मूलो और भूरी दोनों बहुत परेशान थीं।
बरेली, जेएनएन। कोरोना संक्रमण की वजह से 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगा। इसके बाद चंद महीनों में हजारों-लाखों लोग बेरोजगार हो रहे थे। वहीं, फरीदपुर ब्लाक के सरकड़ा गांव में मशरूम की खेती के जरिए रोजगार के सुमन यानी फूल खिल रहे थे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुमन ने मशरूम के जरिए महिलाओं के लिए रोजगार की राह निकाल दी। कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए सुमन ने 11 जरूरतमंद महिलाओं को स्वावलंबी बना दिया। शुरू में घर-घर जाकर मशरूम बेची। अब फरीदपुर के कुछ लोग इनकी जगह से ही माल खरीदते हैं। आज ये महिलाएं क्षेत्र के लिए मिसाल बन गई हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुमन देवी ने बताया कि वह 2004 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बनीं। गांव में करीब दर्जन भर महिलाओं की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। वह अपने बच्चों के साथ मुश्किल से जीवन यापन कर पा रही थी। महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं थी। गांव की दो महिलाएं मूलो और भूरी दोनों बहुत परेशान थीं। मूलो के तीन बच्चे थे, वह खेतों में काम कर उन्हें पाल रही थी। कुछ ऐसे ही हाल भूरी के भी थे। गांव की अन्य महिलाएं भी थोड़े-थोड़े पैसे के लिए दूसरे घरों का चूल्हा-चौका कर रही थीं। सहायक विकास अधिकारी रामनाथ ने बताया कि सुमन देवी बहुत ही मेहनती हैं और आगनबाड़ी कार्यकर्ता के अलावा भी ब्लॉक की सभी लोगों की बहुत सहायता करती हैं। लॉकडाउन में नियमों का पालन करते हुए भी इन्होंने कई महिलाओं को रोजगार मुहैया कराया।
स्वयं सहायता समूह बनाकर दिलवाया प्रशिक्षण
महिलाओं की मदद करने के लिए मार्च 2020 में एक 10 महिलाओं व एक किशोरी को मिलाकर स्वयं सहायता समूह बनाया। महिलाओं को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिलवाया। प्रशिक्षण के बाद एक खेत में छप्पर डालकर मशरूम की खेती के अनुकूल जगह तैयारी की। तब तक कोविड-19 ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे।
घर-घर जाकर पहली बार बेची मशरूम
16 मार्च को पहली बार महिलाओं ने साढे चार हजार रुपए का माल खरीदकर मशरूम की खेती शुरू की। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और तीन दिन बाद लॉकडाउन लग गया। इससे काम रुक गया, लेकिन महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी। कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए काम में लगी रहीं। ढाई महीने की कोशिशों के बाद अप्रैल में एक हजार किलो मशरूम की पैदावार हुई। अब दिक्कत मशरूम बेचने में थी। महिलाओं ने घर-घर जाकर कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए मशरूम बेची। मई में 15 किलो बीज से जुलाई में करीब ढाई कुंतल फसल तैयार की। अगस्त में 22 किलो बीज बोए और अक्टूबर में करीब चार कुंतल फसल पैदा हुई।