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बरेली में तस्कर की हनक के आगे एसओजी, चौकी व थाना नतमस्तक

शराब तस्कर की हनक के सामने एसओजी थाना और पूरी पुलिस चौकी नतमस्तक थी। थाना प्रभारी चौकी इंचार्ज थाने का हेड मोहर्रिर और सिपाही उस तक हर सूचना पहुंचाते थे। पिछले साल हुए इस प्रकरण की परतें आरोपितों की काल डिटेल ने खोलीं। जिसमें साबित हुआ कि 14 पुलिसकर्मी तस्कर से लगातार बात करते थे। शासन तक मामला पहुंचने के बाद आरोपितों पर कार्रवाई शुरू हो चुकी है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Dec 2021 05:24 AM (IST)Updated: Fri, 17 Dec 2021 05:24 AM (IST)
बरेली में तस्कर की हनक के आगे एसओजी, चौकी व थाना नतमस्तक
बरेली में तस्कर की हनक के आगे एसओजी, चौकी व थाना नतमस्तक

जागरण संवाददाता, बरेली: शराब तस्कर की हनक के सामने एसओजी, थाना और पूरी पुलिस चौकी नतमस्तक थी। थाना प्रभारी, चौकी इंचार्ज, थाने का हेड मोहर्रिर और सिपाही उस तक हर सूचना पहुंचाते थे। पिछले साल हुए इस प्रकरण की परतें आरोपितों की काल डिटेल ने खोलीं। जिसमें साबित हुआ कि 14 पुलिसकर्मी तस्कर से लगातार बात करते थे। शासन तक मामला पहुंचने के बाद आरोपितों पर कार्रवाई शुरू हो चुकी है।

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रामपुर के शाहजादनगर क्षेत्र के कमोरा गांव में 12 जून, 2020 को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने एल्कोहल तस्कर राजेंद्र सक्सेना व दो अन्य को गिरफ्तार किया था। वह इस एल्कोहल का उपयोग अवैध शराब बनाने में करता था। प्रकरण में क्षेत्रीय पुलिस की भूमिका संदिग्ध पाए जाने पर बरेली के तत्कालीन आइजी राजेश पांडेय को जांच सौंपी गई। जिसकी रिपोर्ट बीते दिनों एडीजी अविनाश चंद्र ने शासन को भेज दी। जांच में कारवाई का आधार आरोपित पुलिसकर्मियों की काल डिटेल बनी। चूंकि प्रकरण में क्षेत्रीय पुलिस की भूमिका पहले ही संदिग्ध पाई गई थी, इसलिए कार्रवाई से एक महीने पहले तक की काल डिटेल भी रामपुर के बजाय बिजनौर से निकलवाई गई थी। घटनाक्रम के बाद पुलिस पर रुपये लेकर साठगांठ का आरोप लगा, हालांकि जांच रिपोर्ट में यह तथ्य नहीं था।

तस्कर के मददगार पुलिसकर्मी

एसओजी की भूमिका- जांच के अनुसार, स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) के दारोगा पंकज चौधरी की काल डिटेल से पता चला कि तस्कर राजेंद्र सक्सेना से लगातार बात की। दोनों के बीच संवाद के 42 काल रिकार्ड निकाले गए। माना गया कि पंकज ने गुप्त सूचनाएं लीक कीं।

पुलिस चौकी की साठगांठ

जिस क्षेत्र में तस्कर राजेंद्र गतिविधियां करता था, वह धमोरा क्षेत्र में आता है। जांच में पाया गया कि चौकी प्रभारी अनुराग चौधरी की भी तस्कर से साठगांठ थी। सिपाही अफजाल अहमद फोन पर राजेंद्र को पुलिस गतिविधियों की जानकारी देता था। हेड कांस्टेबल विपिन कुमार के भी कई बार राजेंद्र से बात करने की पुष्टि हुई। उसे भी सूचनाएं लीक करने का आरोपित माना गया। चौकी पर तैनात सिपाही चंद्रशेखर की काल डिटेल में तस्कर से लंबा संवाद पाया गया। इसी तरह सिपाही महिपाल व सत्येंद्र भी पुलिस की हर गतिविधि की जानकारी उस तक पहुंचाता था। यह सभी बिंदु जांच रिपोर्ट में शामिल हैं। जिस दिन राजेंद्र पर कार्रवाई हुई, उससे कुछ देर पहले सिपाही अमित कुमार ने उससे फोन पर बात की थी। आशंका जताई जा रही कि उसे भनक लग गई थी, इसलिए सचेत करने के लिए फोन किया था। हालांकि तीनों आरोपित पकड़े गए थे।

थाने तक तस्कर का दबदबा

काल डिटेल में शाहजादनगर के तत्कालीन थाना प्रभारी सत्येंद्र कुमार की करतूत से भी पर्दा उठ गया। उन्होंने भी तस्कर के फोन पर कई बार काल कीं। 15 दिन का ब्योरा निकाला गया, जिसमें उनके निरंतर संवाद की पुष्टि हुई। थाने का हेड मुहर्रिर जागेश सिंह को तस्कर के बारे में सबकुछ पता था मगर, जांच के दौरान कुछ नहीं बताया। उसकी काल डिटेल ने भी पुष्टि की कि वह आरोपित से मिला हुआ था। दूसरे हेड मुहर्रिर वेदप्रकाश के बयान हुए तो कहता रहा कि उसे एल्कोहल तस्करी के बारे में कोई जानकारी नहीं। उसके झूठ से भी काल डिटेल ने पर्दा हटाया। वह राजेंद्र से फोन पर लगातार संपर्क में रहता था। थाने का चालक इरशाद अली तस्कर को जानकारी देता था कि कब, क्या कार्रवाई होने वाली है।

इसलिए फंसे शगुन गौतम

जांच रिपोर्ट में तत्कालीन एसपी शगुन गौतम का नाम भी शामिल है। माना गया कि थाना व चौकी पुलिस की कारगुजारी सामने आने के बावजूद उन्होंने कार्रवाई में लापरवाही की। इस संदर्भ में एसटीएफ के अपर पुलिस अधीक्षक सत्यसेन यादव ने भी पत्र भेजकर पुलिसकर्मियों की भूमिका संदिग्ध बताई थी। सीओ अशोक कुमार पांडेय, थाना प्रभारी सत्येंद्र कुमार को इसमें संलिप्त बताया था। थाने के पुलिसकर्मी की काल रिकार्डिंग उपलब्ध कराई गई। हालांकि प्रकरण के तुरंत बाद थाना व चौकी पुलिस पर कार्रवाई नहीं हुई। एक महीने बाद तत्कालीन थाना प्रभारी सत्येंद्र कुमार को हटाया गया था। कार्रवाई में देरी पर तर्क दिया गया था कि तत्कालीन आइजी ने एसएसपी से जांच शुरू करा दी थी। बाद में बरेली के तत्कालीन आइजी राजेश पांडेय को जांच सौंप दी गई। ऐसी स्थिति में जांच पूरी होने के बाद कार्रवाई का इंतजार किया जा रहा था। यही वजह रही कि आरोपितों को तुरंत नहीं हटाया गया।


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