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Shravan Special 2020 : अलाखिया बाबा के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए थे मुगल

करीब सवा नौ सौ साल पहले नैनीताल रोड पर किला क्षेत्र के आसपास घनघोर आरण्य (वन) हुआ करता था। उस वक्त नागा अखाड़े के प्रतापी संत बाबा अलाखिया ने वट वृक्ष के नीचे कठिन तप किया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 11:26 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 11:26 PM (IST)
Shravan Special 2020 : अलाखिया बाबा के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए थे मुगल
Shravan Special 2020 : अलाखिया बाबा के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए थे मुगल

बरेली, जेएनएन। करीब सवा नौ सौ साल पहले नैनीताल रोड पर किला क्षेत्र के आसपास घनघोर आरण्य (वन) हुआ करता था। उस वक्त नागा अखाड़े के प्रतापी संत बाबा अलाखिया ने वट वृक्ष के नीचे कठिन तप किया। उन्होंने यहां शिव मंदिर की स्थापना की। इन्हीं के नाम से मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा। 17वीं शताब्दी के आखिर में जब मुगलों का शासन शुरू हुआ तो उन्होंने ङ्क्षहदुओं का काफी प्रताडि़त किया। मुगल शासक लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन करा रहे थे। बेखौफ मंदिर को क्षति पहुंचा रहे थे। ऐसे में तमाम साधु-संतों और अन्य लोगों ने बाबा की इस तपोस्थली में शरण ली। बाबा के प्रताप के कारण इस तपोवन में मुगल प्रवेश नहीं कर पाए थे।

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सप्त नाथ मंदिरों में शुमार अलखनाथ मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र हैै। नागा संप्रदाय के पंचायती अखाड़े द्वारा संचालित इस मंदिर की पहचान दूर-दूर तक है। मौजूदा समय में मंदिर के मुख्य द्वार पर 51 फीट लंबी विशालकाय रामभक्त हनुमान की प्रतिमा है, जो शहर की पहचान है। मंदिर परिसर में रामसेतु वाला पत्थर है जो पानी में तैरता है। यह बात का उल्लेख बरेली के प्राचीन मंदिर पुस्तक में देखने को मिलता है। मंदिर कमेटी के पंडित प्रशांत शर्मा बालाजी बताते हैैं कि मंदिर का इतिहास करीब 925 वर्ष पुराना है और यहां का वट वृक्ष करीब 32 सौ साल पुराना है। वर्तमान में यहां के महंत बाबा कालू गिरि महाराज हैैं।

(धोपेश्वर नाथ मंदिर) धूम्र ऋषि ने की थी भगवान शिव की कठोर तपस्या

सदर कैंट में स्थित धोपेश्वर नाथ मंदिर पांचाल नगरी के पुराने मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बताते हैैं कि एक बार अनुसूइया के पति व अत्रि ऋषि के शिष्य धूम्र ऋषि अपने शिष्यों के साथ तीर्थ यात्रा पर जाते वक्त यहां रुक गए। उन्होंने रामगंगा नदी के किनारे भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उन्होंने भगवान से इस क्षेत्र में विराजमान होने का वर मांगा। तब से यहां शिव लिंग धूम्रेश्वर नाथ के नाम से पूजित है। धीरे-धीरे इसे धोपेश्वर नाथ कहा जाने लगा। यहां अवध के नवाब आसिफउद्दौला ने रुहेलों पर जीत की प्रार्थना भी की थी। बाद में उसने सरोवर के चारों ओर पक्की सीढिय़ां बनवाई। यहां वैष्णो देवी के स्वरूप में बनी गुफा भी है।

(वनखंडीनाथ मंदिर) मुगल शासकों के हथियार साबित हुए कुंद

जोगी नवादा स्थित वनखंडीनाथ मंदिर का संबंध द्वापर युग से है. राजा द्रुपद की पुत्री व पांडवों की पत्नी द्रोपदी ने अपने राजगुरू से इस लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी। मुगल शासकों के समय यहां मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किया गया। बताते हैैं कि आलमगीर औरंगजेब के सिपाहियों ने मंदिर पवित्र लिंग को उखाडऩे के लिए जंजीरों से बांधकर दो-दो हाथियों का जोर लगवाया, लेकिन वह हिला तक नहीं। उनके सारे हथियार कुंद साबित हुए। वन में लिंग को खंडित किए जाने की इस घटना के बाद यहां का नाम वनखंडीनाथ मंदिर पड़ गया।

(त्रिवटी नाथ मंदिर) तीन वृक्षों के बीच में लिंग के दर्शन

पौराणिक कथा के अनुसार विक्रम संवत 1474 में एक चरवाहा त्रिवट वृक्षों की छाया में सो रहा था। उस वक्त महादेव ने उसे स्वप्न देकर बताया कि वह यहां विराजमान हैैं, खोदाई करने पर दर्शन देंगे। चरवाहे ने ऐसा ही किया। तीन वृक्षों के नीचे उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। इस मंदिर का उल्लेख सरकारी कागजों में भी उपलब्ध है। यहां नौ देवियों की प्रतिमा और 12 ज्योतिर्लिंग स्वरूप हैैं।

(तपेश्वर नाथ मंदिर) ऋषियों की तपोस्थली तपेश्वर नाथ

सुभाषनगर के दक्षिण में स्थित तपेश्वर नाथ मंदिर भी प्राचीन मंदिरों में शामिल है। यहां की शक्ति के कारण ही अने ऋषि मुनियों ने यहां कठोर तपस्या की। इस कारण इस लिंग को तपेश्वर नाथ कहकर पुकारने लगे। यहां एक बाबा ने गुफा में रहकर चार सौ साल तक तप किया था। उनके शरीर में भालू के समान बाल थे, इसलिए लोग उन्हें भालू दास बाबा कहकर बुलाते थे। विक्रम संवत 2003 व 2035 में यहां बाबा मुनिश्वर दास और राम टहल दास ने कठोर तपस्या की।

(मढ़ीनाथ) मणिधारी सांप वाले बाबा के नाम पर पड़ा

वर्षों पूर्व एक सिद्ध बाबा यहां आए थे। एक बार साधुओं का जत्था तीर्थ यात्रा पर जाते वक्त यहां विश्राम को रुका। तब सिद्ध बाबा ने सभी साधुओं के लिए तोमि में दूध भरकर लाने को कहा। सभी गाय का दूध निकालने के बाद भी वह नहीं भरी, तो बाबा समझ गए कि संत उनकी परीक्षा ले रहे हैैं। तब उन्होंने साधुओं से मंदिर के कुएं से दूध लेने को कहा तो कुएं में अन्य शिवलिंग प्रकट हुआ। कुएं में दूध भर गया। इसे बाबा ने अपनी तोभि में डाला तो वह भर गई। इसका नाम दूधाधारी मणिनाथ हो गया।

(पशुपतिनाथ मंदिर ) नेपाल की तर्ज पर बनाया

पीलीभीत बाईपास पर स्थित यह मंदिर वर्ष 2003 में शहर के ही एक व्यक्ति ने बनवाया। यहां का शिवलिंग पशुपतिनाथ (नेपाल) के समान ही पंचमुखी है। यहां दक्षिण दिशा में भैरव मंदिर है। मंदिर के चारों ओर सरोवर होने से इसका सौंदर्य बढ़ जाता है। यहां बने कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव व नंदी स्वरूप पर जल की उमड़ती धारा आकर्षित करती है।

मंदिरों में तैयारियां

- साफ-सफाई

- घंटों में बांधे कपड़े

- शारीरिक दूरी को बनाए गोले

- शिवलिंग के चारों ओर घेरा

श्रावण मास में

- सिर्फ दर्शन कर सकेंगे

- बिना मास्क प्रवेश नहीं

- दूर से जलाभिषेक

- एक बार में पांच लोगों का प्रवेश


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