दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन बोले, अच्छे शहरी की जिम्मेदारी निभाएं, ईद सादगी से मनाएं
दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन व टीटीएस के सदर मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने कहा कि कुर्बानी इबादत है। यह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है।
बरेली, जेएनएन। दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन व टीटीएस के सदर मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने कहा कि कुर्बानी इबादत है। यह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। देश और दुनिया के मुसलमान इस सुन्नत को निहायत ही एहतराम और खुशदिली के साथ अदा कर अपने रब को राजी करें ।
दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि आज दरगाह स्थित अपने आवास पर मुफ्ती अहसन मियां ने दीनी मसाइल पर चर्चा करते हुए कहा कि अच्छा मुसलमान व अच्छा शहरी होने की जिम्मेदारी निभाते हुए कुर्बानी देते वक्त दूसरे मजहब की भावनाओं का खास ख्याल रखें। कोरोना महामारी के चलते ईद-उल-अजहा का त्योहार बेहद सादगी के साथ मनाए। कुर्बानी का गोश्त पास-पड़ोस, गरीब-मिस्कीन में जरूर बांटे। कुर्बानी हर बालिग मालिक ए निसाब (शरई मालदार) मर्द औरत पर वाजिब है। आगे कहा कि घर में सबकी तरफ से एक कुर्बानी कर देना काफी नहीं। बल्कि जितने बालिग साहिबे निसाब है, उतनी कुर्बानी करें। जानवर खरीदते वक्त उसे अच्छी तरह परख ले। ऐसा लंगड़ा जानवर जो अपने पैरों से माजूर हो या किसी भी तरह से माजूर हो उस पर कुर्बानी जाया नहींं। अल्लाह कुरआन में इरशाद फरमाता है कि ऐ महबूब अपने रब के लिए नमाज पढ़ों और कुर्बानी करो दूसरी हदीस में पैगंबर-ए-आजम ने फरमाया कि जिस पर कुर्बानी वाजिब हो और वह कुर्बानी न करें। वह हमारी ईदगाहों हरगिज करीब न आये।
इस्लामी माह जिलहिज्जा की 10, 11, 12 तारीख कुर्बानी के लिए खास दिन है। इसके अलावा और दिन कुर्बानी नही की जा सकती । कुर्बानी का वक्त 10 जिलहिजा की सुबह ईद की नमाज के बाद से 12 वी जिलहिजजा को मगरिब (सूर्यास्त) के वक्त से पहले तक है । कुर्बानी में भेड़, बकरा-बकरी, दुम्बा सिर्फ एक आदमी की तरफ से एक जानवर होना चाहिए और बड़े जानवर में सात लोग शिरकत कर सकते हैं।