कमरे के अंदर ठंडक, बाहर दो डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ा रहे एसी
कमरे में ठंडी हवा में चैन की सांस जरूर आती होगी मगर क्या आप जानते हैं कि एसी के अंधाधुंध उपयोग का इसका कितना खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
बरेली, जेएनएन। कमरे में ठंडी हवा में चैन की सांस जरूर आती होगी मगर क्या आप जानते हैं कि एसी के अंधाधुंध उपयोग का इसका कितना खामियाजा भुगतना पड़ेगा। लगातार एसी चलने से तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो रही। जितनी तेजी से ऊष्मा उत्सर्जित हो रही, वह ग्लोबल वार्मिग की वजह बनती जा रही। अभी बरेली के हालात तो कम से कम ऐसे नहीं हुए कि बिना एसी के काम न चल सके। इसलिए, जरूरत न हो तो महज स्टेटस या शौक के लिए एसी मत चलाइए। हम आपको बताते हैं कि कमरे को ठंडा करने वाले ये एसी बाहर कैसे आग उगल रहे।
ऐसे तापमान बढ़ा रहे एसी
विशेषज्ञों के अनुसार, एसी बाहर की तरफ गर्म हवा फेंकते हैं, जिससे उस जगह के तापमान में .5 से दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है। एसी से रात में तापमान वृद्धि दिन की तुलना में अधिक होती है। यदि पूरे दिन में एक टन का एसी यदि आठ घंटे चलता है, तो उससे 19 हजार किलो जूल उष्मा उत्सर्जित होती है। डेढ़ टन के एसी से लगभग 29 हजार किलो जूल उष्मा उत्सर्जित होती है।
क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस ग्लोबल वार्मिंग में सहायक
बढ़ते तापमान से शहरी क्षेत्र ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि यहां बनी कंक्रीट की सड़कें और पक्के मकान दिन के समय सूर्य के प्रकाश की गर्मी को सोखते हैं और फिर ताप को छोडऩे लगते हैं, जिससे तापमान बढऩे लगता है। इस क्रिया से शहरों के तापमान में औसतन दो से चार डिग्री सेल्सियस वृद्धि की गणना विभिन्न शोधों में आंकी गई है। शहरों में अंधाधुंध एसी का प्रयोग मकानों को ठंडा तो करता है, लेकिन वह आसपास के तापमान में वृद्धि करने का काम भी करता है, क्योंकि इनमें प्रयोग होने वाली क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस ग्लोबल वार्मिंग में सहायक है। जहां दूर-दूर तक पेड़ नहीं हैं और बहुमंजिला इमारतें होने के साथ साथ बड़ी संख्या में एसी और वाहन चल रहे हैं, वहां का तापमान बढऩा लाजिमी है।
24 डिग्री से नीचे चलाया तो बिजली की खपत ज्यादा
एसी चलाने का आदर्श तापमान 24 से 27 डिग्री सेल्सियस है, लेकिन ज्यादातर लोग 20 डिग्री सेल्सियस पर चलाते हैं। यदि 20 डिग्री सेल्सियस पर एसी लंबे समय तक चलता है तो ऊष्मा उत्सर्जन ज्यादा होता है, बिजली की खपत भी 14 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
लगातार एसी की ठंडक में बैठे तो डिहाइड्रेशन के शिकार होंगे
कम तापमान पर एसी चलाने से बिजली खर्च तो बढ़ता ही है, स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। लोग ठंडक की वजह से पानी नहीं पीते हैं। उन्हें एहसास भी नहीं होता और शरीर में पानी की कमी होती जाती है। ऐसे लोग जब घरों से बाहर निकलते हैं, तो अक्सर डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाते हैं।
बचाव का रास्ता है यह पौधा
ईएचएस विशेषज्ञ एसके सूरी बताते हैं कि बाहर की तरफ जहां एसी गर्म हवा फेंक रहा है, वहां पर प्राकृतिक ग्रीन शेडो करें। इसके लिए कोई बेल लगाएं या फिर फर्न या एलोवेरा का पौधा लगाए। यह गर्म हवा को अवशोषित कर लेगा। इससे एसी चलाने पर आने वाले बिजली खर्च में भी 15 प्रतिशत की कमी आएगी।
एसी के लिए चाहिए होता है पांच किलोवाट का कनेक्शन
एक औसत के अनुसार डेढ़ टन के एसी में प्रति घंटा दो किलोवाट यानी दो यूनिट बिजली का खर्च माना जाता है, इसलिए विभाग पांच किलोवाट के कनेक्शन पर ही एसी लगाने की अनुमति देता है।
लगातार बढ़ रही है एसी की मांग
शहर में एसी की मांग लगातार बढ़ रही है। बिजली विभाग के एसई अर्बन एनके मिश्रा ने बताया कि फिलहाल विभाग के पास शहर में लगे कुल एसी का निश्चित आंकड़ा नहीं है। फिर भी एक औसत अनुमान के मुताबिक, शहर में करीब पंद्रह फीसद घरों में एसी लगा है। वहीं बाजार के जानकारों के अनुसार अब एसी की खरीद पूरे वर्ष होती है, जो कि गर्मियों में बढ़ जाती है।
बिजली खपत बन रही ग्लोबल वार्मिग का कारण
विशेषज्ञ कहते हैं कि एसी चलने पर होने वाली बिजली खपत ग्लोबल वार्मिग का बड़ा कारण बन रही है, क्योंकि इतनी बिजली उत्पादन में काफी मात्रा में पानी आदि की जरूरत होती है। एक मानक के अनुसार एक टन के एसी को आठ घंटे चलाने पर 19500 किलो जूल और डेढ़ टन पर 29500 किलो जूल उष्मा उत्सर्जित होती है। बिजली विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 15 फीसदी यानी शहर के 25 हजार घरों में एसी लगे हैं। यदि यह माना जाए कि आधे घरों में एक टन और आधे घरों में डेढ़ टन का एसी लगा है, तो आठ घंटे चलने की स्थिति में इनसे कुल 514500000 किलो जूल उष्मा उत्सर्जित होगी।
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