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देश के संविधान के निर्माण में बरेली का भी है अहम योगदान, समिति में शामिल थे जिले के दो सदस्‍य

Republic Day 2022 Special भारत का संविधान विश्व के किसी भी संप्रभु देश का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसके निर्माण के लिए देश भर से 389 सदस्य चुने गए थे। बरेली के दो सदस्यों ने संविधान निर्माण में सहयोग किया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 12:35 PM (IST)
देश के संविधान के निर्माण में बरेली का भी है अहम योगदान, समिति में शामिल थे जिले के दो सदस्‍य
बरेली निवासी सतीश चंद्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।

बरेली, जेएनएन। Republic Day 2021 Special विश्‍व का सबसे बड़ा लिखित संविधान हमारे देश का है। जनपदवासियों के लिए यह गर्व की बात है कि संविधान के निर्माण के लिए देश भर से चुने गए 389 सदस्यों में से दो बरेली के भी थे। दोनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे। 

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संविधान की संस्तुति पर सतीश चंद्र के हस्ताक्षर: जिले के आलमगिरीगंज निवासी सतीश चंद्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजों ने इन्हें तीन बार जेल में सलाखों के पीछे भेजा। दो साल तक भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे। संविधान की स्वीकृति के बाद वर्ष 1950 से 1952 तक देश की अंतरिम संसद के सदस्य रहे। इस दौरान इनकी योग्यता, कार्यक्षमता से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1951 में इन्हें अपना संसदीय सचिव नियुक्त कर लिया। वर्ष 1952 में वह बरेली के पहले सांसद बने। इसके बाद अगले ही चुनाव में फिर सांसद चुने गए। तीसरी बार 1971 में सांसद चुने गए। इस दौरान वह कई मंत्रलयों में डिप्टी मिनिस्टर यानी उपमंत्री भी रहे। पंडित नेहरू के अलावा वह पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के भी काफी करीबी थे।

सेठ दामोदर दास स्वरूप अंग्रेजों के खिलाफ चिपकाते थे पर्चे: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और संविधान स्थापक सदस्यों में सेठ दामोदर स्वरूप भी थे। हालांकि स्थापित संविधान पर इन्होंने कुछ कारणों के चलते हस्ताक्षर नहीं किया था। राष्ट्रवादी विचार मंच के सचिव रहे राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि सेठ दामोदर स्वरूप छरहरे बदन के थे, अंग्रेज सरकार के खिलाफ पर्चे चिपकाने के काम इन्हें ही मिलता था। अंग्रेज उन्हें पकड़ने आते तो दुबले-पतले होने की वजह से ये बचकर भाग जाते थे। आजादी के बाद जिले के एक व्यक्ति ने इनकी प्रतिमा बनवाई थी। यह प्रतिमा उन्होंने सेठ त्रिलोकचंद्र को पार्क में लगवाने के लिए भेंट की थी। वैचारिक मतभिन्नता के कारण प्रतिमा नहीं लगी। बल्कि कैदखाने में बंद कर दी। बाद में राष्ट्रवादी विचार मंच ने संघर्ष किया। संस्थापक रमेश चंद्र गुप्त के नेतृत्व में आंदोलन हुआ। तत्कालीन महापौर राजकुमार अग्रवाल ने सेठ दामोदर राव की प्रतिमा को कलेक्ट्रेट के पास पार्क में लगवाया। यह पार्क पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सेठ दामोदर राव के नाम पर ही था।


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