बरेली कॉलेज के प्रोफेसर का दावा, पांच प्रजातियों की मछली पालने से साफ रहेगा तालाब नहीं मरेंगी मछलियां
मछली पालकों के लिए तालाब साफ रखना एक चुनौती है। गंदे तालाब में बड़ी संख्या में मछलियां बीमार या मर रही हैं। इस समस्या से काफी हद तक स्वतः निजात के लिए बरेली कॉलेज के जंतु विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.सुनील कुमार ने कंपोजिट फिश कल्चर का प्रयोग किया।
बरेली, जेएनएन। मछली पालकों के लिए तालाब साफ रखना एक चुनौती है। गंदे तालाब में बड़ी संख्या में मछलियां बीमार या मर रही हैं। इस समस्या से काफी हद तक स्वतः निजात के लिए बरेली कॉलेज के जंतु विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.सुनील कुमार ने कंपोजिट फिश कल्चर का प्रयोग किया।
उन्होंने पाया कि मछलियों की विशेष प्रजातियों को तालाब में एक साथ पाला जाए तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं। इससे मछलियों की सेहत ठीक होगी ही, साथ में तालाब की गंदगी भी साफ हो जाएगी। कंपोजिट फिश कल्चर के तहत तालाब में कतला, रोहू, सिल्वर कार्प, काॅमन कार्प व मृगाल मछली पालीं। उन्होंने पाया कि अपने-अपने रहने के तरीके और खानपान से तालाब 30 फीसद ज्यादा साफ रहा। यही नहीं, मछलियों की सेहत भी ज्यादा बेहतर हुई।
इस तरह काम करता है कल्चर
दरअसल, कतला मछली तालाब की सबसे ऊपरी हिस्से में तैरती हैं। तालाब के ऊपरी हिस्से पर बैठने वाले कीड़े-मकोड़े, या खाने-पीने के सामान का सेवन करती हैं। बीच के हिस्से में रोहू मछली और सिल्वर कार्प रहती हैं। वहीं, सबसे नीचे यानी तली के हिस्से में मृगाल मछली और कॉमन कार्प पाई जाती है। ये मछली तालाब के नीचे जमी काई आदि खाती है। इससे मछलियों को आहार मिलता है। वहीं, तालाब की बीस फीसद तक प्राकृतिक रूप से सफाई हो जाती है।
फिश फार्मिंग से 47 फीसद मछलियां
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि कार्यक्रम के मुताबिक दुनिया भर में 1961 से 2016 के बीच मछलियों की खपत 3.2 फीसद बढ़ी। रिपोर्ट के मुताबिक जानवरों से मिलने वाले प्रोटीन में मछलियों की हिस्सेदारी 17 फीसद। इनमें से 47 फीसद मछलियां फिश फार्मिंग से आती हैं।
मछलियों की पांच से छह विशेष प्रजाति तालाब में एक साथ पालने से तालाब काफी हद तक खुद साफ हो जाते हैं। यही नहीं मछलियों की सेहत भी सुधरती है। इससे मछली पालकों को काफी लाभ मिलेगा। - डॉ. सुनील कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर (जंतु विज्ञान) , बरेली कॉलेज