पर्यटन की व्यापक संभावनाओं से भरपूर है पीलीभीत टाइगर रिजर्व क्षेत्र
उत्तर प्रदेश का रुहेलखंड क्षेत्र पर्यटन की संभावनाओं से भरपूर है परंतु सुविधाओं के अभाव में यह क्षेत्र पर्याप्त संख्या में पर्यटकों से वंचित रहा है जिसमें सुधार आवश्यक है। योगी सरकार ने सोरों को पर्यटन क्षेत्र घोषित कर दिया है ऐसे में रुहेलखंड को इसका लाभ उठाना चाहिए।
बरेली, अवधेश माहेश्वरी। Pilibhit Tiger Reseve : पीलीभीत टाइगर रिजर्व के पास किसी स्थान पर यदि बतौर पर्यटक आप ठहरेंगे तो रोमांच पैदा करने वाली बाघों की कहानियां आपको सुनने को मिल सकती हैं। शाम ढलने के बाद बाघ अक्सर सड़क पार करते हुए दिख जाते हैं। कई बार वहां बने हुए ढाबे के सामने भी आ जाते हैं। ऐसा अनुभव ही तो जंगल पर्यटन वालों को पसंद आता है।
उत्तर प्रदेश में पर्यटन की बात की जाए तो वाराणसी, मथुरा-वृंदावन और आगरा ही कुछ वर्ष पहले तक इस श्रेणी में नजर आते थे। पिछले वर्षो में देसी पर्यटकों की बढ़ती संख्या ने नए पर्यटन स्थलों की जरूरत को बढ़ाया है। ऐसे में अयोध्या और चित्रकूट जैसे स्थलों पर तेजी से पर्यटन बढ़ा है। इसी क्रम में रुहेलखंड ऐसा क्षेत्र है जिसमें संभावनाओं की शाखाएं तो बहुत हैं, परंतु इसको प्रचार-प्रसार के पोषक तत्व न मिलने से फूल नहीं खिलते। ऐसे में पीलीभीत का चूका क्षेत्र भी नजरों से चूक जाता है।
रुहेलखंड के पर्यटन पर इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन और पर्यटन उद्यमियों से लेकर मंत्री तक स्वीकार करते हैं कि संभावनाएं ऐसी हैं कि पीलीभीत को तो प्रदेश के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शुमार होना चाहिए। आखिर सब ऐसा क्यों मानते हैं? पीलीभीत टाइगर रिजर्व में लगभग 80 बाघ हैं। वहां से लगे अमरिया क्षेत्र में सात-आठ बाघ अपना डेरा बनाए हुए हैं। वे टाइगर रिजर्व की ओर रुख नहीं करते। यहां पर्यटकों के लिए बाघों को जंगल में विचरण करते हुए देखने की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं। यदि सरिस्का और पन्ना जैसे टाइगर उद्यान से तुलना की जाए तो यहां आने वाले पर्यटकों का बहुत कम प्रतिशत ऐसा होता है जो एक दिन के पर्यटन में बाघ देख पाते हैं। साथ ही टाइगर रिजर्व तक ही पीलीभीत के पर्यटन की सीमा नहीं है। यहां मिट्टी से बना शारदा सागर डैम गोवा का समुद्रतल जैसा अहसास कराता है। फिर भी यहां के पर्यटकों की भागीदारी में रुहेलखंड की ही प्रमुखता है। बाहरी पर्यटकों की इस क्षेत्र में आवाजाही बहुत ही कम संख्या में होती है।
नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा का स्वयं में अपना एक आकर्षण है। ‘नो मैंस लैंड’ के दूसरी ओर की जिंदगी देखने के लिए अक्सर पर्यटक यहां पहुंचते हैं। बाढ़ से बचने के लिए लकड़ी की बल्लियों पर बसी मिट्टी की झोपड़ियों में पूरी जिंदगी कट जाती है। परिवारों के जीवन-यापन का जरिया मुख्य रूप से खेती और कच्ची शराब है। यहां पर्यटकों को थकान महसूस होती है, लेकिन एक अच्छी चाय-काफी की दुकान का मिलना मुश्किल है। ऐसे में पर्यटक यही कहते मिलते हैं कि एक अच्छी चाय शाप का स्कोप है।
विलेज टूरिज्म के लिहाज से भी यह क्षेत्र बेहतर है। टाइगर रिजर्व से कुछ ही दूर माधोटांडा में गोमती उद्गम स्थल है। एक विदेशी पर्यटक को कुछ नया अनुभव कराने के लिए फ्रांस के दो पर्यटकों को उदयपुर की एक निजी ट्रैवल एजेंसी ने टाइगर रिजर्व और अन्य स्थलों के भ्रमण को भेजा था, लेकिन यहां पर्यटन सुविधाओं की कमी के चलते वह अपना दौरा बीच में ही छोड़ गए। प्रशासन ने इसके बाद होम स्टे की सुविधा विकसित की, लेकिन यह भी सफल कहां हुई।
टाइगर रिजर्व के बावजूद रिसार्ट या होटल विकसित क्यों नहीं हो सके हैं, जबकि मध्य प्रदेश में ज्यादातर टाइगर रिजर्व के पास अच्छे होटल और रिसार्ट की बड़ी संख्या है। यह सवाल परेशान कर रहा था। उद्यमियों से बात हुई तो पता चला कि यहां पर्यटन की संभावना के चलते बाहरी उद्यमी निवेश करना चाहते हैं, परंतु जमीन की तलाश कठिन है। जिला प्रशासन और यूपी टूरिज्म को मिलकर ऐसा क्षेत्र विकसित करना चाहिए जहां निवेशकर्ताओं को आसानी से जमीन उपलब्ध हो। इसके लिए शारदा सागर डैम के पास जमीन प्रचुर संभावना वाली नजर आती है। पर्यटन का विकास यदि एक बार हो जाए तो कोई वजह नहीं कि यहां विशाल कच्चे बांध के आकर्षण और विलेज टूरिज्म से पूरी एक कड़ी न बन जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते माह 594 किमी लंबे गंगा एक्सप्रेसवे का शिलान्यास किया। यह रुहेलखंड और विशेष रूप से पीलीभीत और आंवला के अहिच्छत्र में पर्यटन विकास को नई दिशा दे सकता है। यह दूसरे क्षेत्र के पर्यटकों के लिए पहुंच आसान करेगा। पर आधारभूत ढांचा बनाने में उद्यमियों की मदद तो कीजिए। इसमें निवेश को मौका दीजिए।
पीलीभीत के पर्यटन का प्रचार हो तो सबसे बड़ा लाभ नैनीताल आने वाले पर्यटकों से मिल सकता है। इनमें कुछ पर्यटक ऐसे होते हैं, जो दूसरी जगह भी जाना चाहते हैं। आखिर में चूका घूमकर लौटे एक पर्यटन उद्यमी की बात याद आती है कि उन्होंने पीलीभीत जैसी संभावनाओं वाली जगह नहीं देखी। वे यह देखकर हैरान हुए कि यहां अब तक पर्यटन विकसित क्यों नहीं हुआ। रुहेलखंड में बरेली का अहिच्छत्र है। महाभारतकालीन यह क्षेत्र संयुक्त पांचाल की राजधानी था। मुरादाबाद से लेकर इटावा और एटा तक का क्षेत्र इसमें शामिल था। जैन धर्म के 23वें र्तीथकर पाश्र्वनाथ को यहां कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। परंतु यहां जैन भी बहुत संख्या में नहीं आते हैं, क्योंकि अहिच्छत्र तक अच्छी सड़क अभी तक नहीं बनी है। बदायूं के कछला और सटे हुए कासगंज के सोरों में गंगा आरती का आकर्षण है। वैष्णव मतावलंबी सोरों की महाप्रभु जी की बैठक को बहुत मानते हैं। योगी सरकार ने सोरों को पर्यटन क्षेत्र घोषित कर दिया है, ऐसे में रुहेलखंड को इसका लाभ उठाना चाहिए।