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पीलीभीत में पेड़ पर तीन दिन, दाे रात काटने वाले दूधिए बोले- पल-पल मौत से कांपता था कलेजा, ना भूख लगी ना प्यास

Flood Rescue News मैंने 65 साल बाद बुढ़ापे में जिंदगी और मौत की ऐसी जंग देखी। पल-पल यही लगता था कि कि मौत अब झपट्टा मारेगी। परंतु फिर सोचता कि मुझे निराश नहीं होना चाहिए नहीं तो बाकी पाँच साथी भी टूट जाएंगे।

By Ravi MishraEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 09:44 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 09:44 AM (IST)
पीलीभीत में पेड़ पर तीन दिन, दाे रात काटने वाले दूधिए बोले- पल-पल मौत से कांपता था कलेजा, ना भूख लगी ना प्यास
Flood Rescue : पेड़ पर तीन दिन, दाे रात काटने वाले दूधिए बोले- पल-पल मौत से कांपता था कलेजा

बरेली, देवेंद्र देवा । Flood Rescue News : मैंने 65 साल बाद बुढ़ापे में जिंदगी और मौत की ऐसी जंग देखी। पल-पल यही लगता था कि कि मौत अब झपट्टा मारेगी। परंतु फिर सोचता कि मुझे निराश नहीं होना चाहिए, नहीं तो बाकी पाँच साथी भी टूट जाएंगे। वो सब पेड़ पर मेरे आसपास ही थे, जिन्होंने अभी बहुत कम जीवन भी जीया था। भूख-प्यास से परेशान थे। यह कहते हुए वह फफक पड़े। कुछ पल बाद कपड़े से आंसू पोंछे और मुस्कराये। कहा कि देवदूतों की वजह से अब वो समय बीत गया।

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सोमवार शाम छह बजे से बाढ़ के बीच फंसे पांच अन्य साथियों के साथ जलालुद्दीन को गुरुवार की रात साढ़े नौ बजे पुलिस सुरक्षित निकालकर ले आई। वह और उनके साथी खौफनाक पलों को याद कर बार-बार आंसुओं से गले मिलते और रो पड़ते। गांव नहरोसा निवासी जलालुद्दीन ने बताया कि सोमवार की शाम पांच बजे शारदा नदी में भीषण बाढ़ आने पर वह मोहिद खान, मोईनउद्दीन, मोहम्मद हसन, रमजानी तथा अरशद के साथ जंगल में स्थित गौढ़ी (डेयरी) पर फंस गए। किसी तरह परेशान हाेकर लगभग दो किलोमीटर दूर पानी पार कर लिया। आगे रास्ता नहीं दिखा तो वहां एक शीशम के पेड़ पर सभी लोग रात दो बजे चढ़ गए।

जलालुद्दीन ने गुरुवार की रात लगभग साढ़े नौ बजे रेस्क्यू आपरेशन खत्म होने के बाद जागरण संवाददाता को बताया कि सुबह तो चारों तरफ पानी ही पानी था। मौत का खौफ था। ऐसे में ना भूख और ना प्यास लगी। हमारे पास चार मोबाइल फोन थे। स्वजन को जानकारी दे दी। जब तक. बैटरी रही, तब तक लोगों से बचाने की गुहार लगाते रहे। इस दौरान अरशद ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर कई लोगों को भेज दी। परंत एक गलती हो गई। हमको मोबाइल बैटरी का धीरे-धीरे उपयोग करना चाहिए था। बुधवार काे चारों मोबाइल फोन बैटरी डिस्चार्ज होने से बंद हो गए।

मुश्किल वक्त में धैर्य से कैसे काम लें हम सबके लिए सीख

जिंदगी की मुश्किलों के समय पर संघर्ष कैसे करना चाहिए। बड़े लोगों को कैसे अनुभव से सीख देनी चाहिए। बाढ़ में 75 घंटे तक फंसे रहे छह लोगों की यह कहानी ऐसा सबको सिखाती है। इनमें सबसे बड़े 65 साल के जलालुद्दीन थे। वह कई बार थोडे घबराये तो लेकिन उनके पके हुए बालों के साथ परिपक्व अनुभव जानता था कि यदि वही हिम्मत खाे देंगे ताे हिम्मत वैसे ही टूट जाएगी। ऐसे में कई बार निराश होने के बाद भी उन्होंने चेहरे पर ऐसे भाव नहीं आने दिए। पेड पर ही तीन दिन और दो रात गुजारी। इस दौरान खाने को कुछ नहीं था और पानी का नीचे समंदर सा था लेकिन पीने के लिए नहीं। कई बार नींद के झोंके इतने परेशान करते कि बैठना मुश्किल हो जाता।


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