आइसोलेशन में रहने से लोग हो रहे है मानसिक रोगी, जानिए क्या हैं लक्षण
कोरोना संक्रमण की पुष्टि होने के बाद संक्रमित को आइसोलेशन में रखा जाता है। ऐसे में आइसोलेट व्यक्ति को अकेले में रहना होता है। अकेले में रहने के दौरान संक्रमित के मन में कई तरह के विकार पैदा होते हैं। यह आने वाले समय में खतरा बन सकते हैं।
बरेली, जेएनएन। कोरोना संक्रमण की पुष्टि होने के बाद संक्रमित को आइसोलेशन में रखा जाता है। ऐसे में आइसोलेट व्यक्ति को अकेले में रहना होता है। अकेले में रहने के दौरान संक्रमित के मन में कई तरह के विकार पैदा होते हैं। यह आने वाले समय में खतरा बन सकते हैं। बीते चार महीने से मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे मामलों में ये देखा गया है कि लोग मानसिक बीमारियों से अधिक ग्रसित हुए हैं।
संक्रमित होने के बाद आइसोलेसन के 14 दिन अलग कमरे में रखा जाता है। दूर से खाना मिलना, लोगों से ठीक से बातचीत भी न होना, सामाजिक व्यवस्था से अलग कट जाने जैसी चीजे होती हैं। यह 14 दिन का आइसोलेशन कई बार 28 दिन तक में परिवर्तित हो जाता है। कोरोना की वजह से लोगों के लिए यह एकदम नई चीज है। मनोवैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना संक्रमण के बाद मनोरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसकी वजह से तेजी से काम कर रहे मस्तिष्क को अचानक नई दिशा मिलती है। जिससे मस्तिष्क की रफ्तार कम और वह सीमित सोच पर केंद्रित हो जाता है। बरेली कॉलेज की मनोविज्ञान विभाग की इंचार्ज डा. सुविधा शर्मा का कहना है कि दो साल के भीतर इसका प्रभाव दिखाई देगा। उनके अध्ययन के अनुसार इन सात महीनों में लोग अलग अलग तरह के फोबिया के शिकार हो गए हैं। उनके इस दावे को मनोचिकित्सकों ने भी स्वीकारा है।
बच्चों में बढ़ी दिक्कत
कोरोना शुरू होने के बाद मानसिक रोगियों में बच्चों की संख्या अधिक है। बच्चों का स्कूल जाना, घर से बाहर निकल कर खेलना कूदना कम हो गया। ऐसे में वह घर में ही रहकर मोबाइल या टीवी से घिरे रहे। जिससे उनमें विकारों की उत्पत्ति हुई। मनोचिकित्सक डा. आशीष ने बताया कि हर रोज पांच से छह बच्चे आ रहे हैं। जिनमें चिढ़चिढ़ापन, जबरदस्ती अपनी बात मनवाना और दूसरों की बात न मानने की आदत पनपी है। यह मानसिक रोग होने का लक्षण है। इसके लिए उनके स्वजनों को खुला माहौल देने की सलाह देने के साथ ही एंजाइटी खत्म करने के लिए दवा दी गई है।