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Pandit Birju Maharaj Memories : बच्चियों का नृत्य देख गदगद हुए थे बिरजू महाराज, पूछा- कहा से सीखी है यह विधा

Pandit Birju Maharaj Memories बात करीब 24 साल पुरानी है। शास्त्रीय नृत्य की छात्राओं के लेकर दिल्ली के कथक केंद्र जाना होता था। उस वक्त बिरजू महाराज स्कालरशिप की परीक्षा में बैठते थे। जब हमारी बच्चियों ने अपने नृत्य में टुकड़े परन तिहाई का प्रस्तुतीकरण दिया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 08:01 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 08:01 AM (IST)
Pandit Birju Maharaj Memories : बच्चियों का नृत्य देख गदगद हुए थे बिरजू महाराज, पूछा- कहा से सीखी है यह विधा
Pandit Birju Maharaj Memories बच्चियों का नृत्य देख गदगद हुए थे बिरजू महाराज, पूछा- कहा से सीखी है यह विधा

बरेली, जेएनएन। Pandit Birju Maharaj Memories : बात करीब 24 साल पुरानी है। शास्त्रीय नृत्य की छात्राओं के लेकर दिल्ली के कथक केंद्र जाना होता था। उस वक्त बिरजू महाराज स्कालरशिप की परीक्षा में बैठते थे। जब हमारी बच्चियों ने अपने नृत्य में टुकड़े, परन, तिहाई का प्रस्तुतीकरण दिया तो बिरजू महाराज गदगद हो गए और हमसे बोले, कहा से सीखी है यह विधा। हमने हंसकर जवाब दिया आपके घराने की ही देन है। यह सुनकर वह काफी प्रसन्न हुए और इन विधा को बढ़ाने के लिए कहा। उसके बाद से अक्सर ही बिरजू महाराज से मिलना होता था। आखिरी बार लखनऊ में जब उनके ड्यूडी गया तो मुलाकात हुई थी।

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यह कहना है शहर के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक, संगीतज्ञ आलोक बनर्जी का। वह यहां इंद्रा नगर में स्वर झंकार संगीत विद्यालय चलाते हैं। मूलरूप से लखनऊ के लालकुआं में रहने वाले आलोक बनर्जी ने बताया कि उनके पिता स्वर्गीय मृत्युंजय बंदोपाध्याय अच्छे शास्त्रीय गायक थे। उनके साथ करीब सात साल की उम्र में बिरजू महाराज की लखनऊ में झावलाल की पुलिया स्थित ड्यूडी (पुश्तैनी मकान) में पहली बार जाना हुआ था। पिता और मामा स्वर्गीय विनय चटोपाध्याय के साथ अकसर उनके घराने में जाना होता था।

बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज, दो चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज से पिता और मामा ने शास्त्रीय नृत्य की कई बारीकियां भी सीखीं। बिरजू महाराज करीब तीन साल बड़े होंगे। कुछ समय बाद बिरजू महाराज दिल्ली चले गए। आलोक बनर्जी ने बताया कि उनके मामा के मित्र कालू दत्ता ने बिरजू महाराज के घराने से नृत्य सीखा। उनसे उन्होंने भी नृत्य की बारीकियां सीखीं। फिर वह एक शिक्षक की तरह शास्त्रीय गीत, संगीत, नृत्य को सिखाने में जुट गए। वर्ष 1997 में जब दिल्ली में बिरजू महाराज से मुलाकात हुई तो उन्होंने अपने घराने की विधा को देखकर पूछा था। आलोक बनर्जी बताते हैं कि बिरजू महाराज जब खड़े हो जाते थे तो माहौल बदल जाता था। जो भाव प्रदर्शन उनमें था, वह किसी और में नहीं है। उनका निधन पूरे राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति है।


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