बिशारत खां के मकबरे में नहीं कोई कब्र
बिशारत खां ने बसाया था बरेली का बिशारतगंज। बरेली से चंदौसी जाने वाली उत्तर रेलवे की ब्रांच लाइन पर रामगंगा रेलवे ओवरब्रिज से आगे बिशारतगंत रेलवे स्टेशन स्थित है। अब नगर पंचायत बन चुके बिशारतगंज में रामलीला और चेहल्लुम जैसे धार्मिक सद्भाव वाले आयोजन भी उसकी पहचान बढ़ाते हैं।
जेएनएन, बरेलीः बरेली के बिसारतगंज को बसाने वाले बिशारतखां का मकबरा रामपुर के बिलासपुर में है लेकिन यहां कोई कब्र ही नहीं है। बरेली से चंदौसी जाने वाली उत्तर रेलवे की ब्रांच लाइन पर रामगंगा रेलवे ओवरब्रिज से आगे बिशारतगंत रेलवे स्टेशन स्थित है। अब नगर पंचायत बन चुके बिशारतगंज में रामलीला और चेहल्लुम जैसे धार्मिक सद्भाव वाले आयोजन भी उसकी पहचान बढ़ाते हैं। यह कस्बा बिशारत खां ने 18वीं सदी में बसाया था। नवाब नजीब- उद- दौला के ससुर और चाचा का इतिहास भी बरेली और रामपुर को आपस में जोड़ता है।
बिशारत खां का संबंध युसुफ जई की शाख उमर खेल से था। वह 18वीं सदी के आरंभ में दाऊद खां रोहेला के साथियों में था। वह नवाब अली मोहम्मद खां का नाजिम था। उसने बिशारत गंज बसाया था जो आंवला और बरेली के बीच रेलवे लाइन के पास स्थित है। शायद नवाब अली मोहम्मद खां ने बिशारत खां को बिलासपुर का नाजिम या जमींदार बना दिया था और वह बिलासपुर तहसील (तहसील जनपद रामपुर) में रहने लगा। यहां पर उसने बिशारत नगर बस्ती आबाद की थी। डा डब्लू एच सिद्दीकी की पुस्तक रोहेला इतिहास के मुताबिक बिलासपुर के शहर के कब्रिस्तान में एक शानदार गुंबद वाला, चौकोर हजीरा (मकबरा जैसा) मिला, जिसे लोग नवाब बिशारत खां का मकबरा कहते हैं। लेकिन इमारत के अंदर कोई भी कब्र नहीं है। यह लखौरी ईंटों से तामीर की हुई इमारत है जो रोहलों के इबतेदाई दौर का नमूना है। कुछ लोगों का मत रहा है कि बिशारत खां बिलासपुर में ही दफ्न किए गए हैं, लेकिन इसका कोई नामो-निशान नहीं मिला है। बिशारत खां नवाब नजीब- उद- दौला का चाचा और ससुर था। बताया जाता है कि उनके खानदान के लोग आज भी बिलासपुर में मौजूद हैं।