Move to Jagran APP

कहीं नीम देखा है आपने

जागरण संवाददाता, बरेली : एक वक्त नीम के पेड़ हर जगह लगे दिख जाया करते थे, लेकिन अब कहां दिखते हैं? खु

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 Jun 2018 08:33 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 08:33 AM (IST)
कहीं नीम देखा है आपने
कहीं नीम देखा है आपने

जागरण संवाददाता, बरेली : एक वक्त नीम के पेड़ हर जगह लगे दिख जाया करते थे, लेकिन अब कहां दिखते हैं? खुद याद कीजिए? दिमाग पर जोर डालेंगे, तब याद आएगा। असल में नीम के पेड़ धीरे-धीरे काट दिए गए। कई सारे पेड़ सूख गए, लेकिन इन्हें लगाया भी नहीं गया। सब जानते हैं कि पर्यावरण और मानव जीवन के लिए नीम के पेड़ काफी उपयोगी हैं। वह वातावरण में ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। इसी तरह पीपल, पाकड़ और बरगद जैसे वट वृक्षों का भी नीम की ही तरह बेहद महत्व है, लेकिन इतने उपयोगी यह पेड़ पिछले पांच-छह साल में खूब काटे गए और इन्हें लगाया नहीं गया।

loksabha election banner

नतीजतन, शहर में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है। असल में पौधरोपण के लिए नीम, पाकड़, पीपल और बरगद के पेड़ों के बजाय फूल और खूबसूरत दिखने वाले पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि नीम, पाकड़, पीपल और बरगद के लिए पर्याप्त जगह की आवश्यकता होती है, जो अब न तो शहर की कॉलोनियों में रह गई है न ही गांव की गलियों में। गांव में ग्राम सभा की जमीनों के पट्टे पर मकान बनवा लिए गए हैं। खलिहान भी खत्म हो चुके हैं। खेतों में कोई पाकड़, नीम लगाना नहीं चाहता है।

वन विभाग ने रोपे डेढ़ लाख पौधे, लेकिन दिखते नहीं

कहने को तो वन विभाग ने पिछले तीन साल में नीम, पाकड़, सागौन, बरगद समेत कई प्रजातियों के डेढ़ लाख से ज्यादा पौधे विभिन्न अभियानों के जरिये रोपे। इनमें कई विभागों और सामाजिक संगठनों की भागीदारी भी रही। ये पौधे गांवों के स्कूलों के कैंपस, पार्को और सड़क किनारे लगाए गए, लेकिन कुछ को छोड़कर ये पौधे कहीं नहीं दिखते। माना जा रहा है कि देखरेख के अभाव में पनपने से पहले ही पौधे खत्म हो गए।

---

शहर में यहां हुआ करते थे वट वृक्ष

कोहाड़ापीर से कुदेशिया फाटक तक पाकड़, नीम और हरूर आदि प्रजाति के कई पेड़ थे। नैनीताल रोड पर 45 किलोमीटर तक पाकड़ के तमाम पेड़ काट डाले गए। कोहाड़ापीर और नीम की चढ़ाई पर अब नीम के पेड़ ही नहीं रहे।

---

पर्यावरण संतुलन के लिए वट वृक्षों को बड़ा योगदान है। यह प्रदूषण नियंत्रण में बेहद सहायक होते हैं, लेकिन इनकी लगातार कम होती संख्या से वातावरण को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है। हम वट वृक्षों की जगह मनी प्लांट टाइप पौधों को रोप रहे हैं, जिनका पर्यावरण के लिए कोई औचित्य नहीं है।

-डॉ. आलोक खरे, पर्यावरणविद, बरेली कॉलेज


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.