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Kolaghat Bridge : मुलायम ने रखी नींव, माया ने किया उद्घाटन, 12 साल भी टिक नहीं सका सेतु निर्माण का पुल

Kolaghat Bridge Collapsed in Shahjahanpur कोलाघाट का पुल सिर्फ आवागमन की सहूलियत का साधन भर नहीं बल्कि कटरी के विकास का माध्यम बना। उम्मीदों का यह पुल शुरू होने के साथ ही कटरी से अपराध कम हुए। दस्युओं से मुक्ति दिलाने में पुलिस को मदद मिली।

By Ravi MishraEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 08:50 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 08:50 AM (IST)
Kolaghat Bridge : मुलायम ने रखी नींव, माया ने किया उद्घाटन, 12 साल भी टिक नहीं सका सेतु निर्माण का पुल
Kolaghat Bridge : मुलायम ने रखी नींव, माया ने किया उद्घाटन, 12 साल भी टिक नहीं सका पुल

शाहजहांपुर, जेएनएन। Kolaghat Bridge Collapsed in Shahjahanpur : कोलाघाट का पुल सिर्फ आवागमन की सहूलियत का साधन भर नहीं बल्कि कटरी के विकास का माध्यम बना। उम्मीदों का यह पुल शुरू होने के साथ ही कटरी से अपराध कम हुए। दस्युओं से मुक्ति दिलाने में पुलिस को मदद मिली। तमाम बदलाव आए, लेकिन जिसको 50 साल के लिए तैयार किया गया था वह पुल 12 साल में ही धराशायी होकर तीन हिस्सों में बंट गया। कारण क्या था जांच में ही पता चल सकेगा।

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लंबे संघर्ष के बाद बना था काेलाघाट पुल

इस पुल को बनवाने के लिए लंबा संघर्ष हुआ। प्रख्यात संत बाबा त्यागी जी महाराज टापर वाले बाबा की में अगुवाई में आंदोलन हुआ। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की। 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस पुल को बनवाने का वादा किया था, लेकिन निर्माण नहीं हो सका। सरकार बदल गई। 2003 में सपा सरकार बनी तो इस पुल को स्वीकृति दी गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 2005-06 में इसका शिलान्यास किया।

बसपा की सरकार में नहीं रुका पुल का काम 

2007 में बसपा की सरकार बनी, लेकिन पुल का काम नहीं रुका। 2009 में में पुल बनकर तैयार हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लोकार्पण किया था। इस पुल को लगभग 50 वर्ष तक आवागमन के लिए सुरक्षित माना गया, लेकिन सोमवार सुबह पुल का करीब 200 मीटर का हिस्सा धंस गया।

60 पिलर पर टिका है 1800 मीटर लंबा पुल 

1800 मीटर लंबे पुल के निर्माण के लिए 60 पिलर बनाए गए थे। जलालाबाद की ओर से जो सात नंबर पिलर ढहा है वह करीब साढ़े 15 मीटर ऊंचा था। पिलर निर्माण के लिए 22 मीटर की गहराई से काम किया गया था। माना जा रहा है कि नदी के किनारे होने के कारण यहां जमीन ज्यादा दलदली व रेतीली हो गई होगी। जिस कारण पिलर धीरे धीरे जमीन के अंदर धंसता गया। 


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