Mothers Day 2020 : मां, जिसने मुश्किल में भी जीतना सिखाया Bareilly News
कोरोना संक्रमण से बचने की फिक्र अलग। मन पर बोझ सा लगा तो मां इस बार भी सराहा बनकर आई हमेशा की तरह। हालात से पार पाने की सीख दी मुश्किलों से जीतने का जज्बा दिया।
बरेली, जेएनएन। चार दीवारों के अंदर लगातार रहना, सोचना भर ही तनाव देने वाला था मगर, ऐसा हुआ। कोरोना संक्रमण से बचने की फिक्र अलग। मन पर बोझ सा लगा तो मां इस बार भी सराहा बनकर आई, हमेशा की तरह। हालात से पार पाने की सीख दी, मुश्किलों से जीतने का जज्बा दिया। वो सहारा बनकर खडी हुई तो खुद में साहस-शक्ति का संचार महसूस हुआ। मां के लिए भी यह वक्त सुखद अनुभूति बन गई, क्योंकि उनका परिवार वास्तव भागमभाग से इतर उनके इर्द-गिर्द रहा। उनके किस्से अनुभव की किताब बनकर एक बार फिर परिवार के लोगों के सामने आए। कारोबार, नौकरी की दौड में अंधाधुंध भागने वाले मां के चारों ओर जमघट लगाए नजर आए। मातृ दिवस पर हम आपको ऐसे ही परिवारों से रूबरू करा रहे हैं-
लॉक डाउन के रहते मैंने अपनी मां से अनेक चीजें सीखी। उनके साथ रसोई में गया तो खाना बनाना सीख गया। उन्होंने समझाया कि विपरीत स्थिति में स्वयं को कैसे संतुलित रखें। अपनी मां के साथ समाज में ऐसे लोगों की मदद करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो लोग इस महामारी के दौर में विभिन्न प्रकार से असहाय हैं । इस लॉक डाउन में मुझे यह एहसास हुआ कि घर के अंदर रहकर मां किस तरह अपनी हर जिम्मेदारी को निभाती हैं। कुछ लाइनें मांग के लिए-
मैंने तो तुझमें ही, भगवान पाया है। अपने हिस्से का खाना तुमने मुझे खिलाया है ।।
मांगा जो मैंने तुमने वो मुझे हमेशा दिलाया है । हर दुआ में तूने हमेशा मुझे पाया है ।।
- वैभव जायसवाल, नवादा शेखान, बरेली
लॉक डाउन के दिन सुहाने साबित हुए क्योंकि इस पूरा वक्त मां का बेशुमार प्यार मिला। उनके बचपन के मजेदार किस्से सुने और उनके बचपन के पसंदीदा पकवान हमने उन्हें बनाकर खिलाएं। गृहस्थी के कामकाज के बीच पीछे छूट गई लेखिका की छवि को हमने प्रोत्साहन देकर फिर से शुरू करवाया। मेरी बड़ी बहन सालों से बाहर पढ़ रही है जिसकी रोज सुबह नींद घड़ी के अलार्म से खुलती थी और अब मम्मी आकर सुबह इस तरह उठाती है -उठो जल्दी, 9 बज रहे हैं। जबकि उस वक्त आठ बजे हेाते हैं। मैंने हमेशा अपनी मां को एक योद्धा की तरह पाया। वह नौकरी भी करती हैं और घर भी संभालती हैं। वक्त पड़ने पर हमें सही रास्ता भी दिखाती हैं।
अमीषा वार्ष्णेय , कक्षा 12वी, बरेली।
माँ की सेवा में मिला अनूठा आनंद
होली से दो दिन मां को पैरालासिस का अटैक हो गया। पडोस में ही उनका घर है। लॉकडाउन हुआ तो मैं उन्हें अपने घर ले आई। उनकी सेवा करना का पुण्य मिला। सामान्य दिनों में नौकरी की वजह से उनसे बहुत ज्यादा बातचीत नहीं हो पाती थी। इन दिनों साथ रहे तो पुराने गाने, रीतिरिवाज, बीती यादें साझा हुईं। लगा कि मां बेटी नहीं, सहेलियां आपस में मिल गईं हों। मीठी नोक-झोक फिर सुलह ने रिश्ते को नया रूप दे दिया। लाकडाउन में घर परिवार के लिए समय समय मिला और संकट की इस घड़ी में अपनो का साथ रामबाण बन गया।भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान रिश्तों को समय नहीं पाता इसीलिए कई बार समयाभाव भी रिश्तों में दूरी पैदा कर देता है। लाकडाउन स्वास्थ्य के साथ-साथ रिश्तों को भी स्वस्थ वातावरण देने में सफल रहा है। मेरे लिए इस समय मिला मां का साथ सेवा भाव की अनूठी सौगात दे गया। घटना चाहे अच्छी हो या बुरी अपना प्रभाव जरूर छोड़कर जाती है। यह लाकडाउन भी हमेशा ज़हन में रहेगा।
राजबाला अटलपुरम(करगैना)बदायूं रोड,बरेली।
निराशा को दूर कर दिया
लॉकडाउन हुआ तो मैं निराशा से भरा हुआ था। जिससे दूर करने के लिए मां ने तरकीब निकाली। एक दिन मुझे आवाज दी कि अकिन , आज तुम्हें नये दोस्तों से मिलवाती हूं। मैंने सोचा कि लॉकडाउन में भला कौन आया होगा। मैं उनके पास गया तो वह मुझे लॉन में ले गयीं। उन्होंने क्यारी मेें लगे फूलों का नाम रखा हुआ है। प्रत्येक का नाम लेकर मुझे दिखाए। कहा कि यही तुम्हारे नए दोस्त हैं। इनसे मिलो। ये मुस्कुराते रहें इसलिए रोज इनकी देखरेख करना। अगले ही दिन उन्होंने मुझे "गार्डेन आर्ट की जानकारी दी। पौधों की क्यारी बनाने, निराई -गुड़ाई आदि अनेक कार्यो से परिचित कराया। मुझे लगा कि सचमुच मां ने फूलों से दोस्ती करा दी है। अब मैं हर सुबह अपनी बगिया में पौधों के बीच पहुंच जाता। ऐसा लगता सारे फूल मुझे गुड मॉर्निंग कह रहे हों। यह मेरे लिये नया अनुभव है। उन फूलों की खिलखिलाहट देखकर मां के चेहरे पर असीम ख़ुशी देखते ही बनती।
- अकिन नंदन, चाहबाई ,बरेली
मां से मिली पुस्तकों से प्रेम की प्रेरणा
धरती पर मौजूद प्रत्येक इंसान का अस्तित्व मां के कारण ही है। इन दिनों जहां एक ओर लॉक डाउन ने सभी लोगों को घर में कैद कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर हम सभी को एक ऐसा स्वर्णिम अवसर भी प्राप्त हुआ है जिसके सहारे हम सभी अपने परिवार के साथ अधिकतम समय बिता रहे हैं। मेरे घर में मैं, पिता संजय सिंह व मां वंदना सिंह रहती हैं। वैसे तो मेरी मां हमारे लिए हर समय किसी न किसी काम में लगी ही रहती, लेकिन लॉकडाउन में उन्होंने मुझे रोजाना राधेश्याम रामायण पढ़कर सुनाई। उसका सार बतातीं। मैंने यह रामायण माता-पिता को उनकी वैवाहिक वर्षगांठ पर उपहार स्वरूप दी थी। तब इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि हमें ऐसा सुखद पल भी मिलेगा। हम सभी एक साथ बैठकर रामायण को समझ रहे हैं। मेरी मां को साहित्य पढ़ने मे अधिक रुचि है। उन्हें से मुझे पुस्तक पढने की प्रेरणा मिली, जिसमें ज्ञान का भंडार है।
अमन सिंह, प्रेमनगर,बरेली
सुबह उठते ही बच्चे स्कूल की ओर दौडते और मैं अपने काम के लिए निकल पडता। हर रोज ऐसा ही होता था। मां को दो साल पहले ब्रेन हैमरेज हुआ था। वह ठीक हो गईं मगर आराम के लिए कामकाज नहीं करने देते। उनका अधिकतर समय बिस्तर पर ही कटता। कभी टीवी देखकर तो कभी फाेन पर बात करके। लॉकडाउन में अब हर सुबह मां के साथ होती है। बच्चे उनके साथ खेलते हैं। सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक, हर बार मां साथ होती है। मां को पहले खाना बनाने का बडा शौक था, जोकि अब हम मिलकर पूरा करते हैं। वह फोन पर उन रिश्तेदारों से बात कराती हैं, जिनके बारे में मुझे बेहद कम जानकारी थी। लॉकडाउन में मां ने रिश्तों की नई कहानी लिख दी, उन लोगों से भी जोड दिया जोकि अपने थे मगर व्यस्तता के कारण दूर हो चुके थे। लॉकडाउन के बाद भी इस दिनचर्या का बडा हिस्सा खुद में शामिल रखूंगा।
अमित कंचन, सुपर सिटी, बरेली
लोरियां गा के मुझको सुलाती थी मां
खुद जाग के मुझको सुलाती थी मां।।
खुद न खा के मुझको खिलाती थी मां।
मल -मल के मुझको निहालती थी मां।।
अपने आँचल में छिपाती थी मां।
दर्द मुझको, सिसकियां लेती थी मां।।
सपने मेरे, अपनी आँखों मे सजाती थी मां।
खेलता था आंगन मे तालियां बजाती थी मां।।
घर के कोने मे जब छुप जाता था मैं।
खोजती हुई पास आ जाती थी मां।।
पकड़ के मुझको दुलार करती थी मां।
लोरिया गा के मुझको सुलाती थी मां।।
- मोहम्मद रिज़वान एडवोकेट, अलीगंज
मां की यह अनुभूति सुनहरी याद बन गई
इस लॉकडाउन में मम्मी ने मुझे जितना लाड़ किया, मैने उन्हें उतना ही परेशान किया। चाहे खाने में नखरे हों या सुबह देर से उठना। लेकिन उन्हें देख के दंग रह जाती हूं कि वह कैसे बिना थके सब्र के साथ इतना कुछ कर लेती हैं। इसके पीछे वजह हमसे प्यार और परिवार के प्रति पूर्ण समर्पण ही है। वह अपने साथ रसोई में ले जातीं और खाना बनाना सिखातीं। वह मेेरी गुरु बनीं तो पियानो बजाने में मैं भी उनकी टीचर बन गई। खाना सिखाने के बदले मैंने उन्हें पियानो बताना सिखाया। हालांकि वह ज्यादा सीख नहीं सकी हैं मगर उनकी टीचर बनकर मुझे जो आनंद मिला, शायद उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। रोज शाम को उनके साथ रामायण, तारक मेहता का उल्टा चश्मा आदि देखने वाले दिन भला कैसे मिल पाते। मदर्स डे पर मैं अपने भाई और पिता के साथ मिलकर मां को सरप्राइज दूंगी। उस पूरा दिन मां आराम करेंगी और उन्होंने जो सिखाया है, उसी के जरिये घर के सारे काम मैं करुंगी।
रीतिका चन्देल, सुरेश शर्मा नगर