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मुहल्लानामा : 52 मंदिरों वाला ब्रह्मापुरी, बामनपुरी से अब बमनपुरी Bareilly News

ब्रिटिश हुकूमत के रहते कह दिया गया कि शहर में एक ही रामलीला का आयोजन होगा जो पुरानी होगी। ब्रह्मापुरी या फिर चौधरी मुहल्ला में रानी साहब वाली में से एक।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 10:22 AM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 09:34 AM (IST)
मुहल्लानामा : 52 मंदिरों वाला ब्रह्मापुरी, बामनपुरी से अब बमनपुरी Bareilly News
मुहल्लानामा : 52 मंदिरों वाला ब्रह्मापुरी, बामनपुरी से अब बमनपुरी Bareilly News

बरेली [वसीम अख्तर] : एक वक्त था, जब यहां आस्था का दरिया नहीं, समुद्र बहता था। रहने वाले ईश्वर की भक्ति में डूबे दिखते थे और गुजरने वाले भी पुण्य के भागीदार बन जाया करते थे। एक-दो नहीं पूरे 52 मंदिर थे। उनमें धार्मिक आयोजनों का सिलसिला चलता रहता था। अपनी इसी खासियत की वजह से ब्राह्मïणों का यह मुहल्ला पहले ब्रह्मापुरी, फिर बामनपुरी और अब बमनपुरी के नाम से पहचाना जाता है। फागुन मास में देश की इकलौती रामलीला का आयोजन यहीं होता है, जिसे अब 159 साल हो चुके हैैं।

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गहरी हैैं सांप्रदायिक सौहार्द की जड़ें

जब देश का बंटवारा हुआ और उसके बाद भी माहौल में सांप्रदायिकता विष घुला तो मनमुटाव भी हुए लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द की जड़ें इस मुहल्ले में बहुत गहरी हैैं। वेदाचार्य पंडित रतिराम पाण्डेय बताते हैैं कि ब्रिटिश हुकूमत के रहते कह दिया गया कि शहर में एक ही रामलीला का आयोजन होगा, जो पुरानी होगी। ब्रह्मापुरी या फिर चौधरी मुहल्ला में रानी साहब वाली में से एक। तब रामलीला बचाने के लिए उस दौर के एक बड़े मुस्लिम धर्मगुरू आगे आए। ब्रह्मापुरी की रामलीला बचाने के लिए गवाही दी थी। 

ढाई सौ साल पुराना नृसिंह मंदिर

हिरणाकश्यप एक राक्षसी राजा था। उसके राज्य में सभी परेशान थे। कोई भगवान की पूजा नही कर सकता था। राम नाम लेने पर मौत की सजा देता था। किंतु उसका पुत्र प्रहलाद भगवान राम का आस्थावान भक्त था। यही कारण था कि हिरणाकश्यप प्रहलाद को भी मार देना चाहता था। जब भगवान प्रहलाद का दुख नही देख पाए तो उन्होंने एक खंभे से अवतरित होकर हिरणाकश्यप का अंत कर दिया। इसी अवतार को भगवान का नृसिंह अवतार माना गया। उन्हीं नृसिंह का मंदिर बमनपुरी में है, जिसे ढाई सौ साल पुराना बताया जाता है।   

वेदाचार्य से लेकर राज्य ज्योतिषी तक

धार्मिक एतबार से यह मुहल्ला अब भी धनाढ्य है। कुछ लोग पुरानी परंपराओं का निर्वहन करते हुए सुख-सुविधाएं त्यागकर जीवन व्यतीत कर रहे हैैं। इन्हीं में एक 85 साल के वेदाचार्य पंडित रतिराम हैैं, जो राज्य ज्योतिषी जैसे प्रतिष्ठित पद को इसलिए ठोकर मार आए थे, क्योंकि राज्य चलाने वाले उन्हें अधर्म करते नजर आए। पहले धर्म के रास्ते पर लाने का प्रयास किया और फिर त्यागपत्र दे दिया।

पंडित रतिराम को सही तिथि तो याद नहीं लेकिन बताते हैैं कि सन 1984 के आसपास राज्य ज्योतिषी मुकर्रर किए गए थे। पिछले दिनों पैरालाइसेस के चलते उनकी याददाश्त पर प्रभाव पड़ा है। वह बताते हैैं कि मुहल्ले का नाम पहले ब्रह्मïपुरी था, फिर बमनपुरी हुआ। यहां तक तो ठीक है लेकिन बमनपुरी होना शाब्दिक रूप से गलत है, क्योंकि बमनपुरी के मायना उलटी से हैैं। यह शब्द शुभ भी नहीं है। 

प्रथम प्रधानमंत्री का घर सजाने वाले पंडित दत्तात्रेय जोशी

नृसिंह मंदिर के पुजारी पंडित दत्तात्रेय जोशी पुराने दौर के इंजीनियर थे। उनकी पुत्री प्रभा पाराशरी बताती हैैं कि पिताजी ने स्वर्गीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के घर की इंटीरियर डिजाइनिंग की थी। मृत्यु से पहले इसका उल्लेख अपनी जीवनी में भी कर गए थे। वह मूर्तिकार भी थे।

बरेली के ज्यादातर मंदिरों में उन्हीं के हाथ की मूर्तियां लगी हैैं। नृसिंह मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति भी उन्हीं ने बनाई थी। शेरा वाली की खूबसूरत मूर्ति तो गत्ते को गलाकर बनाई है। वह पुणे से आकर बमनपुरी में बसे थे। प्रभा पाराशरी बताती हैैं कि मुहल्ले में शंकरलाल हलवाई की दुकान से लेकर मलूकपुर पुलिस चौकी तक 52 मंदिर थे। 

रामबरात पर बरसते हैैं सौहार्द के फूल

पूर्व पार्षद महेश पंडित बताते हैैं कि 159 साल से ही मुहल्ले से रामबरात निकाली जाती है। रामबरात की खासियत यह है कि ब्रिटिश हुकूमत में इसकी भव्यता देखने के लिए अंग्रेज भी छतों पर उमड़ आते थे। अब मुस्लिम समुदाय के लोग रामबरात का स्वागत फूल बरसाकर करते हैैं। यह नृसिंह मंदिर से निकलकर आधे शहर में घूमती है।

रामलीला का आयोजन फागुन मास मेें हनुमान जी की इच्छा को सामने रखकर किया जाता है। यहां के अलावा अमूमन रामलीला क्वार मास में दशहरा के दौरान होती हैैं। इसलिए बमनपुरी की रामलीला को फागुन मास में होने वाली देश की इकलौती रामलीला कहा जाता है। 

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