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Jagran Column : रात की तन्हाई में प्रोटोकाल तोड़कर अफसर के बंगले पहुंचे मंत्री Bareilly News

बड़े मंत्री हैं उनका दिल भी बड़ा है। इतना कि जिले में पुलिस के बड़े अफसर से मिलने के लिए प्रोटोकाल तोड़ दिया।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 04:00 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 01:23 PM (IST)
Jagran Column : रात की तन्हाई में प्रोटोकाल तोड़कर अफसर के बंगले पहुंचे मंत्री Bareilly News

वसीम अख्तर, बरेली : बड़े मंत्री हैं, उनका दिल भी बड़ा है। इतना कि जिले में पुलिस के बड़े अफसर से मिलने के लिए प्रोटोकाल तोड़ दिया। रात की तन्हाई में वह एक पूर्व मंत्री के साथ अफसर के बंगले पहुंच गए। शायद यह सोचकर कि लोग सो गए होंगे, कोई देखेगा नहीं। सोच के विपरीत उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने उन्हें गाड़ी से उतरकर बंगले में जाते देख लिया। अब प्रोटोकाल तोड़े जाने की चर्चा हो तो होती रहे। वह गए इसलिए कि कुछ दिन पहले इन्हीं अफसर की बेटी का बर्थडे था। व्यस्तता के चलते नहीं पहुंच पाए थे। वर्दी वाले मुखिया के दिल में कहीं यह मलाल नहीं रहे, इसलिए प्रोटोकाल दरकिनार कर दिया। इस तरह अफसर का दिल तो उन्होंने जीत ही लिया। अब बातें बनाने वाले बनाते रहें। उनकी दरियादिली बयां करने वाले नौकरशाहों की जमात में एक नाम और बढ़ गया।

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छुरी का होता रहा इंतजार

मौका था सूबे में चार बार वजीर-ए-आला रहीं मायावती के जन्मदिवस कार्यक्रम का। परंपरा और गिनती के मुताबिक 64 पाउंड का केक कटना था। पूर्व में यह कार्यक्रम नेहरू युवा केंद्र में होता आया, इस बार मंडल कार्यालय पर किया गया। एक तो जगह छोटी पड़ गई। दूसरे छुरी आने में विलंब हो गया। केक वक्त पर आ गया और मुख्य अतिथि के सामने मेज पर लग भी गया लेकिन माइक पर एनाउंस होने के 15 मिनट बाद तक कट नहीं पाया। उसके लिए इंतजार करना पड़ गया। छुरी आने में जो व्यवधान हुआ, उसमें भीड़ के बीच से कमेंट होने लगे। कोई कहने लगा, रामपुरी मंगाई है, जो देर हो रही। यह हल्ला केक कटने के बाद ही थमा लेकिन तब तक मंचासीन महानुभाव का चेहरा गुस्से से भर गया। उन्हें यह कहकर शांत किया- अध्यक्ष नये हैं, साथी सहयोग भी नहीं कर रहे हैैं। धीरे-धीरे सीख जाएंगे।

उड़ गई हजरत की नींद

कुछ महीनों से ठंडी पड़ी मुस्लिम लीडरशिप में इन दिनों उबाल है। वजह नागरिकता संशोधन कानून है। उसकी मुखालेफत और हिमायत में भुजाएं हवा में उठी हुई हैैं। अपने शहर में मुखालेफत के सिरमौर हजरत हैैं, जो उस खानदान के चश्म-ओ-चिराग हैैं, जिसे दुनियाभर में अकीदत-ओ-एहतराम की नजर से देखा जाता है। उनका पहला कार्यक्रम हिट रहा। दूसरा कदम फीका दिखा तो जल्द वापस खींच लिया। जैसे ही वह वापस हुए, उसी रात दूसरे मैदान में भीड़ पहुंच गई। उन्हीं के अंदाज में नारेबाजी करते हुए धरना शुरू कर दिया। सरकारी अमले में मैसेज हो गया कि यह सब हजरत के इशारे पर हो रहा है। अफसरों ने संपर्क साधा तो फौरन ही उनका जवाब इन्कार में आया। फिर भी अफसरों को यकीन नहीं हुआ। बार-बार फोन करते रहे। आखिरकार उन्हें अपना दाहिना हाथ कहे जाने वाले डॉक्टर से बयान दिलाना पड़ा। तब कहीं जाकर सो सके।

खास से नामवर हुईं मैडम

रहने वाली यहीं की हैैं। जब से बुजुर्गवार ने मैडम को मंत्रालय के सलाहकार बोर्ड में महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठाया, तब से उनका दखल दिल्ली में बढ़ गया है। राजधानी में रहकर जिम्मेदारी निभा रही हैं। रफ्ता-रफ्ता खास से नामवर हो गईं। उनसे जुड़े चंद लोग दिल्ली जाने वालों से कह भी रहे हैैं, कोई बड़ा काम हो बताना। कैसे होगा, यह पूछने पर जवाब मिलता है, मैडम हैैं न। कोई अगर मैडम के बारे में सवाल करे तो बताते हैैं, अरे वही, जिन्हें जब कुर्सी पर बैठाया गया तो शहर में उनके पोस्टर लगे थे। यह सुनकर पूछने वालों को ध्यान आ जाता है किन मैडम के बारे में बात हो रही है। उनके चर्चे सत्ता के गलियारों से निकलकर चुनिंदा लोगों की जुबां तक आ पहुंचे हैैं। वह बता रहे हैैं कि मैडम कहां से कहां पहुंच गईं। कानाफूसी उन्हें लेकर भी है, जिनकी बदौलत वह नामवर हुईं। 


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