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Jagran Column : Health Myntra : लाउडस्पीकर जो कभी बोला नहीं Bareilly News

भाई जान का डर किसे नहीं होता चाहे वह किसी की जान बचाने वाला ही क्यों न हो। अस्पताल ही तो है सीमित संसाधनों में भरसक प्रयास डॉक्टर व स्टाफ करते हैैं।

By Ravi MishraEdited By: Published: Wed, 12 Feb 2020 04:00 AM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 05:27 PM (IST)
Jagran Column : Health Myntra : लाउडस्पीकर जो कभी बोला नहीं Bareilly News
Jagran Column : Health Myntra : लाउडस्पीकर जो कभी बोला नहीं Bareilly News

अशोक आर्या, बरेली : भाई, जान का डर किसे नहीं होता, चाहे वह किसी की जान बचाने वाला ही क्यों न हो। अस्पताल ही तो है, सीमित संसाधनों में भरसक प्रयास डॉक्टर व स्टाफ करते हैैं। अगर कोई अनहोनी हो गई तो भीड़ देख सभी घबरा जाते हैैं। जिला अस्पताल में मरीज की मौत पर हंगामा, मारपीट की कई घटनाएं हुईं। इमरजेंसी के कमरे में बैठे डॉक्टर व स्टाफ अक्सर भीड़ में फंस गए। वह चाहकर भी किसी को मदद के लिए बुला नहीं पाए। ऐसे ही वक्त में मदद के लिए करीब दो साल पहले इमरजेंसी के बाहर लाउडस्पीकर लगाया गया। एम्प्लीफायर इमरजेंसी के अंदर रखा। कोई घटना होने पर अंदर से बोलकर मदद के लिए स्टाफ को इक_ा किया जा सकता था। हजारों रुपये खर्च भी इस सिस्टम में खर्च हुए, लेकिन आज तक लाउडस्पीकर एक बार भी नहीं बोला। मारपीट की घटना भी हुई, लेकिन ऐन वक्त मेें सिस्टम फेल मिला।

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बाला से बन गए रजनीकांत

साहब, सेहत महकमे में सेवाएं दे रहे हैैं। पूरे जिले की निगरानी का काम उनके जिम्मे है। जब भी कोई जिम्मेदारी मिलती उसे बखूबी निभाते हैैं। कुछ दिन पहले साहब विदेश घूमने गए। वहां से लौटे तो साहब का लुक देखकर हर कोई हैरत में पड़ गया। कभी बाला फिल्म के बाल मुकुंद की तरह दिखाई देने वाले अब साउथ की फिल्मों के हीरो से कम नहीं दिखाई दे रहे थे। उनके बालों ने चेहरे की खूबसूरती को चार चांद जो लगा दिए थे। स्कूटर में बैठते तो पहले शीशे में बाल संवार लेते। सीट पर बैठे मोबाइल में भी बालों को देखते। जब भी कही बात होती तो लोग यह कहने लगते, साहब दक्षिण की फिल्मों के दरवाजे खुले हैैं। चाहे तो कोशिश कर लो। साहब भी मुस्कुराते हुए उनकी हां में हामी भर बैठते। लोगों ने साहब को मशहूर एक्टर रजनीकांत की संज्ञा देनी भी शुरू कर दी।

साहब कुर्सी पर बैठते नहीं

अपने साथियों में सबसे सीनियर डॉक्टर हैैं। अ'छा ज्ञान और अनुभव से लबरेज। हमेशा खुद को अपडेट भी रखते हैैं। मरीजों को सही राय देते हैैं, लेकिन ओपीडी में लगातार बैठना उन्हें नहीं भाता। चाहे फिर मरीजों की लाइन दूसरे डॉक्टरों के पास कितनी भी लंबी क्यों न हो। सुबह आठ बजे अस्पताल में भर्ती मरीजों को देखकर करीब सवा दस बजे तक कुर्सी में बैठ पाते हैैं, लेकिन वहां टिक नहीं पाते। लाइन में खड़ा मरीज समय बचाने के लिए दूसरे डॉक्टरों के पास पहुंच जाता है। अक्सर कोर्ट में गवाही देने या अन्य किसी काम के चलते ओपीडी से नदारत रहते हैैं। कुछ दिन पहले तो एक साथी का सब्र जवाब दे गया। साहब, शनिवार को छुट्टïी पर बाहर निकल गए। साथी को सोमवार को पहुंचने का भरोसा दिया। मगर सोमवार को कोर्ट केस बताकर नहीं लौटे। धीरे-धीरे बात अस्पताल में सभी की जुबां से सुनाई देने लगी।

मैडम को गुस्सा आता है

कई साल बीत गए लेकिन मैडम को कोई समझ नहीं पाया। काम करना जानती हैैं, बशर्ते कि वह उनके मन का हो। गुस्सा बहुत आता है। इसलिए जब चाहा अस्पताल से छुट्टïी लेकर घर बैठ गईं। चाहा तो किसी मरीज को भर्ती किया, नहीं तो उन्हें डांटकर भगा दिया। कई बार तो मरीजों से बुरा-भला भी कह दिया। अधिकारी से लेकर कोई साथी भी बोलने से पहले सौ बार सोचता है। कोई भी मैडम से पंगा नहीं लेना चाहता। गुस्सैल मैडम कही कुछ ऊटपटांग न बोल दें, यही सोचकर सब चुप रहते हैैं। गांवों से गर्भवती महिलाओं को लाने वाली आशाएं भी उनकी ड्यूटी में मरीज भर्ती करने से बचती हैैं। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ। प्रसव पीड़ा से कराह रही एक महिला को भर्ती नहीं करने पर परिवार वालों ने हंगामा कर दिया। अधिकारियों के हस्तक्षेप पर महिला भर्ती हुई, लेकिन गुस्से में मैडम छुट्टी पर चली गईं। 


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