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सावधान! शेरों के हत्यारे कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का अब 'शेरू-टॉमी' पर हमला

गुजरात के गिर में दो दर्जन दुर्लभ एशियाई शेरों को अकाल है।

By Edited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 02:27 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 11:50 AM (IST)
सावधान! शेरों के हत्यारे कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का अब 'शेरू-टॉमी' पर हमला
सावधान! शेरों के हत्यारे कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का अब 'शेरू-टॉमी' पर हमला

दीपेंद्र प्रताप सिंह [स्पेशल डेस्क]। गुजरात के गिर नेशनल पार्क में दो दर्जन दुर्लभ एशियाई शेरों को अकाल ही मार गिराने वाले कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) ने अब आपके 'शेरू' , 'टॉमी' पर हमला शुरू कर दिया है। वायरस उप्र के शहरों में तेजी से फैल रहा है। केवल पालतू ही नहीं, आवारा कुत्तों को भी शिकार बना रहा है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में बड़ी तादाद में ऐसे केस पहुंच रहे हैं। सितंबर से अब तक 150 मामले आ चुके हैं। अचानक मामले बढ़ने पर वैज्ञानिकों ने कारण खोजा तो यह वायरस सामने आया।

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सितंबर से अब तक 150 मामले आ चुके सामने

अधिकतर लोग कुत्ते पालते हैं, लेकिन मानक के अनुरूप टीकाकरण नहीं कराते। इसी लापरवाही के चलते कैनाइन डिस्टेंपर वायर पांव पसारने लेता है। हाल के दिनों में करीब तीन गुना मामले सामने आए हैं। इस वायरस की चपेट में आने के बाद कुत्तों की कुछ ही दिनों में मौत तक हो जाती है। यही कारण है कि, पहले जहां महीने भर में 50 तक ही मामले आते थे, सितंबर से अब तक यह संख्या 150 के पार पहुंच गई।

शेरों की मौत के बाद अब कुत्तों का भी वैक्सीनेशन

शेरों की मौत का कारण बने इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए गुजरात के गिर में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। वायरस का वाहक होने पर जंगल के आसपास के गांवों के आवारा, पालतू कुत्तों का वैक्सीनेशन किया जा रहा है।

कुत्तों में फैलने वाला वायरस

कैनाइन डिस्टेंपर आमतौर पर कुत्तों में फैलने वाला वायरस है। यह लार, छींक आदि के जरिये होता है। किडनी पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है। कुत्तों के जरिये ही यह वायरस अन्य जानवरों मसलन शेर, लकड़बग्घा, जंगली कुत्तों, सियार आदि में प्रवेश कर जाता है।

तीन माह बाद एआरवी और फिर बूस्टर

आइवीआरआइ के वैज्ञानिक यूके डे बताते हैं कि कुत्ता तीन महीने का होने के बाद एंटी रेबीज वैक्सीन (एआरवी) दिया जाता है। 21 दिन बाद पहला बूस्टर लगता है, फिर एक साल बाद एआरवी। 90 फीसदी पालक अपने कुत्तों के वैक्सीन तो लगवाते हैं, बूस्टर नजरअंदाज करते हैं। जबकि यह भी एआरवी की जितना ही जरूरी है। कुत्ते के जन्म के एक महीने बाद ही डी-वार्मिग (कीड़े मारने की दवाई) दी जाती है। दो महीने का होने पर डीएचपीपी 1+एल वैक्सीन दी जाती है। यह वैक्सीन छह बीमारी यानी डिस्टेंपर, हेपेटाइटिस, पार्वो, पैराइन्फ्लुएंजा, लेप्टो, स्पाइरा की रोकथाम करता है।


क्या कहते हैं एक्सपर्ट

आवारा के अलावा पालतू कुत्तों में भी कैनाइन डिस्टेंपर तेजी से बढ़ना चिंता का विषय है। शेरों का भी शिकार चुके इस वायरस को सही वैक्सीनेशन के जरिए ही काबू किया जा सकता है। - डॉ.राजकुमार सिंह, निदेशक, आइवीआरआइ


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