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जागरण कॉलम: बोली गली : दारोगा जी ने पहले खूब काटे चालान, फिर खुद ही भरना पड़ा जुर्माना

कोतवाली में कुछ दिन पहले ट्रेनिंग पर आए दारोगा जी भी कमाल के हैं। पुलिस वाले हुनर सीख पाते इससे पहले ऐसा सबक मिल गया कि पूरी नौकरी भर भूलेंगे नहीं।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 05:00 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 01:52 PM (IST)
जागरण कॉलम: बोली गली : दारोगा जी ने पहले खूब काटे चालान, फिर खुद ही भरना पड़ा जुर्माना
जागरण कॉलम: बोली गली : दारोगा जी ने पहले खूब काटे चालान, फिर खुद ही भरना पड़ा जुर्माना

जेएनएन, अभिषेक मिश्र। कोतवाली में कुछ दिन पहले तैनात किए गए दारोगा जी भी कमाल के हैं। अभी ट्रेनिंग पर हैं। पुलिस वाले हुनर सीख पाते इससे पहले ऐसा सबक मिल गया कि पूरी नौकरी भर भूलेंगे नहीं। कुछ दिन पहले उन्हें सिविल लाइंस में चेकिंग पर लगा दिया गया। नई वर्दी है, इसलिए रंग खूब चटख है। दिनभर में दर्जनों दोपहिया वाहन रोकते, नियम पालन की हिदायत देते और चालान भी कर देते। बाद में जब चालान का जुर्माना जमा करने के लिए बुलाया गया तो चक्कर में पड़ गए। दरअसल, उन्होंने जो चालान काटे वे पेड थे। यानी वो वाले चालान जिनका जुर्माना मौके पर जमा कर लिया जाता है। उन्हें यह पता नहीं था इसलिए वाहन चालकों से वसूला नहीं। दारोगा जी चक्कर में पड़ गए, जुर्माना की पूरी रकम उन्हें अपनी जेब से भरनी पड़ी। नौकरी ने ऐसा सख्त सबक दिया कि अब वह चेकिंग करते दिखाई नहीं देते। 

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धूल में धुंधली बत्ती

हाईटेक होते महानगर में सिग्नल लाइटों को खूब झटके लगते रहे हैं। चार चौराहों पर सिग्नल लाइट को जमीन तक आने में ही दो साल लग गए। इसके बाद लाल, पीली, हरी बत्तियां जलने लगी लेकिन सिर्फ दो चौराहों पर। अयूब खां और चौपुला चौराहा पर यातायात दबाव तले बत्ती जलने से पहले ही बुझ गई। इंतजाम नहीं है इसलिए वहां ट्रैफिक व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं। यहां तो वजह समझ आती है। अब बाकी दो चौराहों सेटेलाइट और चौकी चौराहा पर नजर दीजिए। वहां भी सर्किट बोर्ड, कभी पैनल फेल होने से बत्ती अक्सर बुझ जाती है। अब पुलों की नींव पड़ते ही ट्रैफिक विभाग ने राहत की सांस ली। पुलों की उड़ती धूल में सब इतना धुंधला हो गया कि सिग्नल लाइट दिखने की गुंजाइश ही खत्म हो गई। अब ट्रैफिक महकमा के अफसर खुश है, क्योंकि सिग्नल लाइटों का कोई जिक्र नहीं करता। इसलिए अब फिक्र नहीं करते।

मोबाइल नहीं, डंडा ही ठीक

मोटर व्हिकल एक्ट आते ही हल्ला मच गया। सड़कों पर बढ़ी सरगर्मी में डंडा लेकर दौड़ती नजर आने वाली ट्रैफिक पुलिस मोबाइल का फ्लैश चमकाकर लोगों को यातायात नियमों की घुड़की देने लगी। अब नियमों का उल्लंघन करने पर लोग दबंगई नहीं दिखा पाते थे। दरोगा या कांस्टेबल को विधायक चाचा से बतियाने का दबाव भी नहीं बना पा रहे थे। सड़क से लेकर मुख्यालय तक नये बदलाव को क्रांति बता दिया गया। लेकिन एक तबका ऐसा भी था जो उदास था। सुविधा शुल्क का पुराना खेल जो बंद होने लगा था। तस्वीर मोबाइल में कैद होने के बाद गाड़ी चलाने वाला शख्स कानूनी दंड ही भुगतने का मन बनाने लगा। जेब गर्म करने के अवसर कम होने से ट्रैफिक पुलिस के एक तबके में उदासी छा गई। बतकही में धीरे-धीरे मूक रजामंदी बनती चली गई कि मोबाइल नहीं, भई अपना डंडा ही ठीक था।

डिग्री बड़ी बनेंगे चपरासी

बैंक के इंटरव्यू में आए युवकों के हाथ में बड़ी-बड़ी डिग्रियां.. देखने वालों को लगा कि पोस्ट अफसरी की होगी। तभी लाइन लंबी है। मालूम किया तो हैरानी सामने आई, क्योंकि नौकरी चपरासी की थी। सिविल लाइंस के एक बैंक में इंटरव्यू के लिए लंबी कतार देखकर बैंक अधिकारी भी हैरान। होशियार चपरासी सब चाहते हैं, लेकिन ज्यादा पढ़े-लिखे चपरासी रखने में भी दिक्कत। पता चले काम से ज्यादा सिखाने लग जाए। अफसरों की हैरानी इसलिए भी क्योंकि टेबलों पर फाइल इधर-उधर करने की नौकरी के लिए लंबी कतार में युवक काबिलियत दिखा रहे थे। इस घटनाक्रम को एक बैंक तक समेट कर नहीं देखना चाहिए। अपनी जरूरतों का वजन ढोते युवक बड़ी बड़ी नौकरियों के ख्वाब भले ही सजा रहे हो, लेकिन छोटी नौकरियों को करने की मजबूरी से पीछे भी नहीं हट रहे। बैंक का इंटरव्यू तीन दिन से जारी हैं।  


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