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अंतरराष्ट्रीय पितृ दिवस पर विशेष: खुद धूप में चलकर पिता बने हमारी छांव

पिता.. इस एक शब्द का हर व्यक्ति के जीवन में कितना मोल है इसका बखान नहीं किया जा सकता। इस शब्द की व्यापकता को शब्दों में समाहित करना उतना ही कठिन है जितना सूरज के उजाले को मुट्ठी में भरने की कोशिश करना। पिता भी तो ऐसे ही होते हैं। खुद तपती धूप में चलकर बच्चों के लिए छांव का इंतजाम करते हैं। खुद भूख-प्यास सहकर बच्चों को कभी भूखे पेट सोने नहीं देते।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Jun 2020 02:13 AM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 02:13 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय पितृ दिवस पर विशेष:  
खुद धूप में चलकर पिता बने हमारी छांव
अंतरराष्ट्रीय पितृ दिवस पर विशेष: खुद धूप में चलकर पिता बने हमारी छांव

बरेली, जेएनएन : पिता..। इस एक शब्द का हर व्यक्ति के जीवन में कितना मोल है, इसका बखान नहीं किया जा सकता। इस शब्द की व्यापकता को शब्दों में समाहित करना उतना ही कठिन है, जितना सूरज के उजाले को मुट्ठी में भरने की कोशिश करना। पिता भी तो ऐसे ही होते हैं। खुद तपती धूप में चलकर बच्चों के लिए छांव का इंतजाम करते हैं। खुद भूख-प्यास सहकर बच्चों को कभी भूखे पेट सोने नहीं देते। अपनी हर खुशी से पहले बच्चों की खुशी का ध्यान रखते हैं। पिता.. कुछ मौकों पर हमारे हित के लिए भले ही ऊपर से कठोर दिखते हैं पर भीतर से मोम से मुलायम। कभी गलती पर डांटना तो फिर प्यार से समझाना भी। पिता.. जिनके जीवन की हर सांस बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ही समर्पित। हालांकि बदलते वक्त के साथ पिता की छवि भी बदली है। अब कड़क छवि वाले कम, और बच्चों के दोस्त ज्यादा दिखते हैं पिता। अंतरराष्ट्रीय पितृ दिवस के मौके पर दैनिक जागरण के सुधी पाठकों ने पिता के बारे में अपने अनुभव, उनसे जुड़ी यादें साझा कीं। किसी ने कविता में पिता को उकेरने की कोशिश की तो किसी ने उन्हें अपना वास्तविक हीरो बताया। कुछ चुनिंदा अनुभव हम प्रकाशित कर रहे हैं।

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---------------- 1- मेरे पापा ही मेरे हीरो

(पिता के साथ फोटो)

मेरे पापा सचमुच मेरे हीरो हैं। एक बार हमारा पूरा परिवार बदायूं जा रहा था। रास्ते में बदायूं से पहले पड़ने वाली रेलवे क्रासिंग बंद थी। कोई ट्रेन गुजरने वाली थी। दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लगी थी। हम लोग भी अपनी कार से थे। तभी अचानक वाहनों की कतार में खड़े एक ट्रक में कुछ लोग घुसकर ट्रक ड्राइवर को बेरहमी से पीटने लगे। वहा खड़े सारे लोग तमाशा देखते रहे। ड्राइवर मदद के लिए चिल्ला रहा था। पर कोई आगे नहीं बढ़ा। तभी मेरे पापा कार से निकले और बिना देरी किए ट्रक में घुसकर ड्राइवर को बचाया। इतना ही नहीं, पास के थाने की पुलिस को फोन करके मारपीट करने वालों को पकड़वाया भी। उस ट्रक ड्राइवर ने मेरे पापा को हृदय से धन्यवाद दिया। मैं अपने पापा की बहादुरी देखकर गौरवान्वित हुआ और मेरे पापा में मुझे मेरा हीरो नजर आया। यूं तो मेरे पापा सुरेंद्र कुमार चौधरी पुलिस इंस्पेक्टर हैं लेकिन उस समय सिविल ड्रेस में थे। उस घटना को कई वर्ष बीत गए। लेकिन वह घटना मेरे जेहन में ताजा है और हमेशा रहेगी।

- ऋत्विक चौधरी, कक्षा-10 डीपीएस, बरेली

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2- पापा की बात मेरे जीवन की शिक्षा बन गई (पिता की फोटो)

मेरे पिताजी स्व. देवेंद्र सक्सेना ने हमेशा हमारा जीवन संवारने की सीख दी। एक घटना आपसे साझा कर रहा हूं। जब हम छोटे थे तो पिताजी हमारी शैतानिया को ज्यादातर अनदेखा कर देते थे। एक बार मैं पतंग उड़ाते हुए छत से नीचे गिर गया। उसी समय पिताजी ऑफिस से आ गए। मेरी हालत देख पहले डॉक्टर के पास ले गए। मरहम-पट्टी कराई। फिर घर आकर घर आकर बड़े प्यार से मुझे समझाया। बोले- अगर ज्यादा चोट लग जाती तो पता है क्या होता..? संयोग था कि मैं आ गया। तुम कुछ समय पहले गिरे होते तो कौन तुम्हें डॉक्टर के यहा लेकर जाता.? थोड़े बड़े होने पर उनकी इस बात को सोचा तो लगा कि जिंदगी की असल सीख यही है। संजीदगी। गंभीरता। जिंदगी की महत्ता को समझना और जीवन में आगे बढ़ना। उनकी बात मेरे जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा बन गई।

- अखिलेश सक्सेना, राजेंद्र नगर बरेली

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3- प्रेम, अनुशासन और जिंदादिली की मिसाल मेरे पिता

मेरे पिता ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय सिंह मेरे आदर्श हैं। मेरी नजर में वे दुनिया के श्रेष्ठ पिता हैं। वे मेरे पिता ही नहीं, सबसे अच्छे दोस्त भी हैं, जो समय-समय पर मुझे अच्छी और बुरी बातों का आभास कराकर आगाह करते हैं। मेरे पिता मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। मैंने बचपन से अपने पिता से बहुत कुछ सीखा है। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। मेरे पिता पेशे से चिकित्सक हैं। उनका सेवा भाव मुझे सदैव प्रेरित करता है। ईश्वर सबको ऐसे पिता दे।

- अमन सिंह, प्रेमनगर

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4- बाहर से सख्त, भीतर से सुकोमल हृदय वाले पिता

मेरे लिए पिता सुरेश चंद्र सक्सेना मेरी जिंदगी के सबसे खास इंसान हैं। माता-पिता का समन्वय हमें जीवन में सहूलियत तो देता ही है, निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा भी मिलती है। पिताजी कभी-कभी बेहद सख्त नजर आते हैं पर भीतर से वे उतने ही सुकोमल हृदय के हैं। बचपन से उन्होंने हमें मानवीय मूल्यों का पालन करना सिखाया है। वह अपनी जरूरतें कम करते हुए हमारी सब इच्छाएं पूरी करते हैं। मुझे आज भी याद है जब पापा ने मुझे साइकिल गिफ्ट की थी। तब मैं बहुत खुश हुई थी। पापा ने ही मुझे साइकिल चलाना सिखाया भी था। मैं जब भी गिरती थी, आप ही संभालते थे। आज भी आप ही संभालते हैं। जब भी कोई दिक्कत आती है, पापा ही मुझे रास्ता दिखाते हैं। ईश्वर से यही कामना है कि पापा हमेशा मेरे साथ रहें। यूं तो उनके बारे में जितना कहूं, कम है। मेरे जीवन में जो स्थान मेरे पापा का है, वह ईश्वर के समतुल्य ही है।

- अंशिका, मढ़ीनाथ, बरेली

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मैं खुश किस्मत हूं की आप मेरे पापा हो

मेरे पापा मेरी प्रेरणा हैं। मेरा नसीब हैं। वो हैं, तभी मैं हूं। बचपन से अब तक, हर बार पापा को देखतीं और खुद को मूल्याकन करती। उन्होंने जो संस्कार दिए, शिक्षा दी, वो सब उनके स्वभाव में समाहित थी। आज जब मैं उनकी तरह व्यवहार करती हूं तो गर्व का अनुभव होता है। मेरे स्वभाव में उनका स्वभाव दिखता है तो सबसे अच्छा अनुभव होता है। यहा तक कि मेरा गुस्सा भी उन्हीं की तरह है। यह सच है कि समय इंसान को बहुत कुछ सिखाता है मगर मुझे सफलता मेरे पापा की वजह से मिली। हर बेटी तरह मेरे पापा ही मेरे सुपर हीरो हैं। हजार रिश्तों में से एक यही एक रिश्ता है जो हमेशा एहसास करता है कि पापा हैं तो सबकुछ ठीक है। मा अगर जिंदगी है तो पिता उस जिंदगी की रोशनी है। पिता और बेटी के बीच अनमोल रिश्ता होता है। मुझे आप पर गर्व है पापा कि मैं आप की बेटी हूं।

पूजा, बरेली


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