Move to Jagran APP

Lockdown -3 Health : लॉक डाउन ने सुधारी सेहत 50 फीसद तक कम हुई दमा के मरीज Bareilly News

इस गंभीर बीमारी में लॉक डाउन का काफी असर है लोगों की सेहत में सुधार हुआ है करीब 50 फीसद तक दमा के मरीजों में कमी आई है इसकी बड़ी वजह इस दौरान वातावरण प्रदूषण की कमी बताई जा रही है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Tue, 05 May 2020 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 05 May 2020 01:42 PM (IST)
Lockdown -3 Health : लॉक डाउन ने सुधारी सेहत 50 फीसद तक कम हुई दमा के मरीज Bareilly News
Lockdown -3 Health : लॉक डाउन ने सुधारी सेहत 50 फीसद तक कम हुई दमा के मरीज Bareilly News

बरेली जेएनएन।  दमा के मरीजों की संख्या पूरे विश्व में करीब 300 मिलियन है। हर साल करीब ढाई लाख मरीजों की मौत इस बीमारी के कारण हो रही है अपने देश में अस्थमा दमा 6 फीसद बच्चों में और करीब 2 फीसद बड़ों में पाया जाता है। इस गंभीर बीमारी में लॉक डाउन का काफी असर है लोगों की सेहत में सुधार हुआ है करीब 50 फीसद तक दमा के मरीजों में कमी आई है इसकी बड़ी वजह इस दौरान वातावरण प्रदूषण की कमी बताई जा रही है। चिकित्सक इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे हैं। उनके पास सांस के मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई है।

loksabha election banner

प्रदूषण बीमारी का सबसे बड़ा कारण

विशेषज्ञों के अनुसार दमा की बीमारी दो कारणों से होती है एक बाहरी और दूसरा अंतरिक आंतरिक कारण शारीरिक विन्यास में अस्थमा की प्रवृत्ति के कारण जिसमें फेफड़ों में कुछ एंजाइम्स असामान्य हो जाते हैं दूसरा बाहरी कारण प्रदूषण है वातावरण में प्रदूषण गैस धूल कण धुआ आदि लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रहा है जिससे सांस की दिक्कत बढ़ रही है। इसके साथ ही प्रदूषित वातावरण में वायरस, बैक्टीरिया, फंगस भी रहते हैं। जो शरीर में प्रवेश करने से बीमार बना देते हैं।

50 से 70 फीसद मरीजों की कमी

बीते 22 मार्च से शुरू हुए लाख डाउन के कारण वातावरण में प्रदूषण का स्तर काफी कम हो गया है लोग घरों में ही रहते हैं जिससे इंफेक्शन का स्तर कम हुआ है इस मौसम में पराग कण निकलते थे और फिर गेहूं कटाई के बाद भूसा उड़कर सांस की मर्ज उपहार देता था वातावरण साफ होने के कारण पंगत बैक्टीरिया वायरस केमिकल से होने वाली एलर्जी भी कम हो गई है डॉक्टरों के पास सांस के मरीजों की संख्या 50 से 70 फ़ीसदी कम हुई है।

प्रदूषण से उखड़ जाता है मर्ज

शहर के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ पवन ने बताया कि यह वक्त सांस के मरीजों के बढ़ने का हुआ करता था परागकण और गेहूं की कटाई के बाद भूसा उड़कर सांस के मरीजों को बढ़ा देता था अब की पहली बार ऐसा हुआ है कि सांस के मरीजों के फोन नहीं आ रहे हैं उनकी संख्या आधी से भी कम रह गई है।

सांस चलने को निमोनिया मान लेते हैं लोग

वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रवि खन्ना ने बताया कि बच्चों में सांस की दिक्कत करीब 70 फीसद कम हुई है उनके हेल्पलाइन नंबर पर इस बाबत फोन ना के बराबर आ रहे हैं लोग अक्सर सांस फूलने को निमोनिया मान लेते हैं लेकिन कई बार वे दमा होता है इस दौरान इन्फेक्शन भी काफी कम हुआ है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.