110 करोड़ फूंक डाले, गंदगी ने फिर भी सैकड़ों मार डाले
सैकड़ों लोगों की जान लेने का जिम्मेदार बुखार एकाएक हावी नहीं हुआ।
जेएनएन, बरेली। सैकड़ों लोगों की जान लेने का जिम्मेदार बुखार एकाएक हावी नहीं हुआ। उसे पांव पसारने देने के इंतजाम हर स्तर पर हुए। सिर्फ इस साल के रकम पर गौर करें तो गांव की सफाई समेत अन्य विकास के लिए 110.56 करोड़ फूंक डाले गए लेकिन, गलियां गंदी की गंदी रह गईं। गांव बदहाल बने रहे। हिस्सेदारी के खेल में भ्रष्टाचार का दानव मलेरिया फैलाने के दोषी मच्छर की शक्ल में लोगों का खून चूसता रहा और मातम की चीखें छोड़ गया।
--हर साल होती यह कोशिशें
शहर की तरह देहात में भी बरसात से पहले विशेष संचारी रोग की रोकथाम की कवायद होती है। जानलेवा बुखार से बचाव के इंतजाम के लिए जागरूकता अभियान चलते हैं। कुछ भी मुफ्त में नहीं होता। इसके लिए भरपूर बजट जारी होता है लेकिन, खर्च कितना होता है हकीकत आपके सामने है। बुखार के प्रकोप ने अफसरों के बंदरबांट की सारी पोल खोल दी है। गांवों में सफाई पर खर्च होने वाले बजट को जिम्मेदार डकार गए। नतीजा भारी बरसात के बाद जलजमाव हो गया। इसमें जानलेवा मच्छर पनप गए और गांवों में भयंकर महामारी फैल गई। अब गर्दन बचाने के लिए प्रशासन राहत आपदा कोष का मुंह तक खोलने को तैयार है।
--ऐसे करनी थी व्यवस्था
चौदहवें विाल आयोग के मद से जो रकम जारी हुई, उसमें अन्य विकास के साथ-साथ ग्राम पंचायतों को सफाई के लिए खासतौर से लोहे की ठेलियों, ट्राली, फावड़ा, डलिया, खुर्पा, झाडू, तौलिया, साबुन, ब्लीचिंग पाउडर, फिनाइल आदि की खरीद करनी होती है। इन सफाई उपकरण व सामग्री की किट सफाईकर्मियों को देकर गांवों की सफाई करानी होती है। जानकारों की मानें तो हर साल इन सामानों के खरीद के बिल तो फाइलों में लगकर धनराशि निकाली जाती है। हकीकत में कुछ नहीं होता।
--लापरवाही मिलने पर की जा रही कार्रवाई
डीपीआरओ विनय कुमार ने बताया कि ग्राम पंचायतों को जो रकम 14 वें वित्त की भेजी जाती है। उससे सफाई व्यवस्था कराने की जिम्मेदारी प्रधानों की है। जिन गांवों में लापरवाही मिल रही है, वहां कार्रवाई की जा रही है।