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Health Care : सावधान ! कोरोना काल में बच्चे हो रहे ODD का शिकार, ऐसे रखें ख्याल

रोकर खिसियाकर चिल्लाकर बदतमीजी से बोलकर अपनी बात मनवाते बच्चों को खूब देखा होगा। बच्चों की इस आदत को अमूमन लोग बचपना मान लेते हैं। कई बार छोटे बच्चे गालियां देने लगते हैं जिन्हें हंस कर टाल दिया जाता है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 09:25 AM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 09:25 AM (IST)
Health Care : सावधान ! कोरोना काल में बच्चे हो रहे ODD का शिकार, ऐसे रखें ख्याल
सावधान ! कोरोना काल में बच्चे हो रहे ODD का शिकार, ऐसे रखें ख्याल

बरेली, जेएनएन। रोकर, खिसियाकर, चिल्लाकर, बदतमीजी से बोलकर अपनी बात मनवाते बच्चों को खूब देखा होगा। बच्चों की इस आदत को अमूमन लोग बचपना मान लेते हैं। कई बार छोटे बच्चे गालियां देने लगते हैं, जिन्हें हंस कर टाल दिया जाता है। बच्चों की यह आदत कोई बचपना नहीं बल्कि एक बीमारी है। जिसे ओडीडी कहते हैं। ओडीडी मतलब अपोजीशनल डिफाइन डिस्आर्डर। समान्यत: यह छह से सात साल के बच्चों में होता है। लेकिन बच्चों के विकसित होने के साथ ही यह आदत भी घातक रूप लेती जाती है। किशोर अवस्था होने पर यह ओडीडी, कंडक्टर डिस्आर्डर और व्यस्क होने पर एंटी सोशल पर्सनालिटी में बदल जाती है।

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ओडीडी को समझिए अपोजीशनल डिफाइन डिस्आर्डर (ओडीडी) बच्चों में होने वाली एक मानसिक बीमारी है। यह पांच साल की उम्र के बच्चों में सामने आने लगती है। यह देखने में सामान्य जैसी ही लगती है। इसमें बच्चे खुद को उम्र से पहले बड़ा समझने लगते हैं। वह बड़ों की तरह ही व्यवहार करते हैं। अपनी बातों को मनवाने के लिए गुस्सा करना, रोना, चिढ़चिढ़ाना और गालियां भी देने लगते हैं। उनकी इस प्रतिक्रिया पर माता पिता उनकी सही गलत सभी बातों को मान लेते हैं। जो की गलत है। कोरोना के दौर में बच्चे जब स्कूल नहीं गए और अधिक से अधिक समय घर रहे तो बच्चों में यह बीमारी उभर कर सामने आई है। मनोचिकित्सकों की मानें तो प्रतिदिन दो से चार अभिभावक बच्चों के साथ प्रतिदिन आ रहे हैं। जिनकी काउंसलिंग की जा रही है।

शहर के पुराना शहर निवासी जावेद अपने दस साले के बच्चे को लेकर मनोचिकित्सक डा. आशीष के पास पहुंचे। बताया कि बहुत जिद करता है, बात न मानी जाए तो गालियां देने लगता है। बच्चे की काउंसलिंग की जा रही है।

शहर के बिहारीपुर निवासी राहुल का छह साल का बच्चा भी बीते पांच छह महीनों से अधिक चिढ़चिढ़ा और गुस्सैल हो गया है। अपनी बात मनवाने को लेकर रोने लगता है। मनोचिकित्सक के पास लाने पर उसकी भी काउसंलिंग की जा रही है।

ओडीडी के लक्षण 

यह बीमारी पांच साल की उम्र की बाद शुरू होती है।

हर छोटी बड़ी बात पर बच्चे का गुस्सा करना।

बड़ों से बदतमीजी से बात करना और गालियां देना।

उम्र से बड़े बच्चों से दोस्ती करना, उनके साथ रहने, खेलने की जिद करना।

नकारात्मक आचरण को जल्द ग्रहण करना या सीखना।

बच्चों को ओडीडी से निकालने के उपाय  

बच्चों की गलत आदतों को बिल्कुल न मानें

उनके रोने या चिललाने को बचपना न समझें

बदतमीजी करने या गालियां देने पर डांट भी लगाएं

अच्छे कार्य करने पर उनका मनोबल बढ़ाएं

जब कोई अच्छा कार्य करें तो टॉफी, बिस्किट या गिफ्ट देकर प्रोत्साहित करें

मनोचिकित्सक की सलाह लें

अच्छे कार्य करने पर बढ़ाएं मनोबल अपोजीशनल डिफाइन डिस्आर्डर (नकारात्मक उदंड विकार) से बच्चों को निकालने के लिए जरूरी है कि समय रहते उनकी बीमारी को समझें। इसके साथ ही मनोचिकित्सक से मिलकर बच्चों की बीमारी पर बात करें। उनकी काउंसलिंग कराएं। जरूरी है कि वह जब अच्छा कार्य करें तो उसे बढ़वा दें और उनके गलत कार्यों को नजरअंदाज करें।

कोरोना के दौर में स्कूल, कोचिंग बंद हैं। बच्चे अधिक से अधिक समय घर पर बिता रहे हैं। ऐसे में उनमें ओडीडी के लक्षण सामने आ रहे हैं। लॉकडाउन हटने के बाद ऐसे कई बच्चे सामने आए, जिनकी काउंसलिंग चल रही है। अभिभावकों को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। - डा. आशीष सिंह, मनोचिकित्सक


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