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बरेली की एक युवती ने लॉकडाउन में महिलाओं को दिया रोजगार, बच्चों की जारी रखी पढ़ाई, पढ़ेंं युवती के संघर्ष की कहानी

मन में पक्की लगन और दृढ़ आत्मविश्वास रास्ते में आने वाली परेशानी की हर दीवार को धराशायी कर देता है। इज्जतनगर के परतापुर चौधरी निवासी शिक्षिका शीलू त्रिपाठी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। लाकडाउन में जब लोगों का काम-धंधा चौपट हो गया तो परिवार चलाना मुश्किल हो गया।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 04:49 PM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 04:49 PM (IST)
बरेली की एक युवती ने लॉकडाउन में महिलाओं को दिया रोजगार, बच्चों की जारी रखी पढ़ाई, पढ़ेंं युवती के संघर्ष की कहानी
कभी घर में दो वक्त की रोटी के पड़ते थे लाले, आज कई लोगों का चला रहीं परिवार।

बरेली, जेएनएन। मन में पक्की लगन और दृढ़ आत्मविश्वास रास्ते में आने वाली परेशानी की हर दीवार को धराशायी कर देता है। इज्जतनगर क्षेत्र के परतापुर चौधरी निवासी शिक्षिका शीलू त्रिपाठी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। लाकडाउन के दौरान जब निम्न वर्ग के लोगों का काम-धंधा चौपट हो गया तो उनके लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया। तब शीलू उनका सहारा बनीं। बच्चों की जिंदगी में शिक्षा के दीप जलाने शुरू किए और सैंकड़ों महिलाओं को रोजगार देने का काम किया। लाकडाउन में शीलू ने आसपास के करीब 40 बच्चों की पढ़ाई को जारी रखा और अब इस सत्र में दाखिला कराकर उन्हें पंख फैलाकर उडऩे का मौका दिया है।

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बसंत विहार निवासी रेनू पाठक ने बताया कि लाकडाउन में पति अखिल की नौकरी छूट गई और दूसरी तरफ ससुराल वालों ने बेघर कर दिया। हर दिन दिमाग में दो सवाल ही डोल रहे थे कि आज की रात कहां कटेगी और रोटी का इंतजाम कैसे होगा। पूरी तरह से हार मानने के बाद मैंने अपनी सहेली शीलू से संपर्क किया और अपनी दास्तां सुनाई। तब उन्होंने मुझे ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण दिलाकर ब्यूटी पार्लर शुरू कराया। वर्तमान में अब सकुशल परिवार का भरण-पोषण हो रहा है।

चार बेटियों का बसाया घर

शीलू ने बताया कि लाकडाउन के दौरान चार ऐसे परिवारों ने उनसे संपर्क किया जो अपनी बेटियों की शादी कराने में असमर्थ थे। तब उन्होंने अपने व पड़ोसियों के घरों से सामान का इंतजाम कर चार बेटियों की शादी कराई।

खुद की परिस्थितियों से मिली प्रेरणा

शीलू को जरूरतमंदों का सहारा बनने की प्रेरणा खुद की परिस्थितियों से ही मिली। बताया कि वर्ष 2014 में पति जर्नादन का देहांत हो जाने के बाद घर में दो वक्त की रोटी के लाले पड़े थे। बच्चों की पढ़ाई भी बाधित हुई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कठिन परिश्रम कर बच्चों की पढ़ाई को फिर जारी कराया। इन स्थितियों से गुजरने के दौरान ही उन्होंने संकल्प लिया कि वह हमेशा जरूरतमंदों का सहारा बनेंगी। जीवन भर बच्चों को शिक्षित व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती रहेंगी।


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