Freedom from Waste: घर के कबाड़ का इस शिक्षिका ने बच्चों को सिखाया ये उपयोग
छोटे प्रयास के असर दूरगामी होते हैं। बच्चों में छोटी उम्र से बेकार समझी जाने वाली वस्तुओं में सकारात्मक आकार ढूंढने की कला सृजन करने की कोशिश भी ऐसी ही है।
बरेली, जेएनएन। छोटे प्रयास के असर, दूरगामी होते हैं। बच्चों में छोटी उम्र से बेकार समझी जाने वाली वस्तुओं में सकारात्मक आकार ढूंढने की कला सृजन करने की कोशिश भी ऐसी ही है। फैजनगर के प्राथमिक विद्यालय में तैनात श्वेता गंगवार बच्चों के कोमल हृदय में ऐसे ही आकार गढ़ रही है। जिन्हें बेकार समझकर लोग घरों के बाहर फेंकते हैं, ऐसे कबाड़ से ही उन्होंने घर के सजावटी आइटम बनाना बच्चों को सिखाने की शुरुआत दो साल पहले की थी। आज उनकी कोशिशें रंग लाई है।
प्रयास यही तक सीमित नहीं हैं। गांव की महिलाओं को घराें में कपड़े के थैले सिलने के लिए उन्होंने प्रेरित किया। साथ ही, स्कूली बच्चों को लेकर गांव के लोगों को जागरुक करना शुरू किया कि पॉलीथिन के थैलों का इस्तेमाल उनके ही खेतों काे नुकसान पहुंचाता है। दो साल में धीरे-धीरे लोगों को उनकी कोशिश का मृम समझ आया है। इसका दो तरफा फायदा हुआ, पहला महिलाओं को घरों में ही काम मिला। दूसरा, लोग हानिकारक पॉलिथीन की जगह घर के बने थैलों का इस्तेमाल करने लगे। अब श्वेता गांव की महिलाओं को भी कबाड़ से सजावटी आइटम बनाना सिखाने की शुरुआत कर रही है।
वेस्ट मैटेरियल पर नियंत्रण बढ़ेगा
उन्होंने बताया कि बच्चों को स्कूल में क्राफ्ट आइटम बनाना सिखाया जाता है। उन्होंने सिर्फ इसके तरीके में थोड़ा बदलाव किया है। फ्यूज बल्ब को फेंकने से अच्छा है कि उसका सजावटी आइटम बना लें। इससे वेस्ट मैटेरियल पर हमारा नियंत्रण भी बढ़ता है। उन्होंने बताया कि पॉलिथीन को फेंकने से बेहतर है कि उसको इकट्ठा करके क्रोसिया की मदद से दरी सिल ली जाए। यह घर की जरूरत की वस्तु होती है।