Fake Mobil Oil Factory : यू-ट्यूब से सीख पूरा किया लाकडाउन का घाटा, बेटे ने दिया बाप को आइडिया, नकली को असली बताकर खपाया तेल
Fake Mobil Oil Factory सुरेश चंद श्रीवास्तव लंबे समय से बाजार में जला मोबिल बेचने का काम कर रहा था। कोरोना काल में लाकडाउन लगने के चलते दुकान बंद हो गई। इससे धंधा चौपट हो गया। इसी के बाद बेटा अरविंद श्रीवास्तव पिता का मददगार बना।
बरेली, जेएनएन। Fake Mobil Oil Factory : सुरेश चंद श्रीवास्तव लंबे समय से बाजार में जला मोबिल बेचने का काम कर रहा था। कोरोना काल में लाकडाउन लगने के चलते दुकान बंद हो गई। इससे धंधा चौपट हो गया। इसी के बाद बेटा अरविंद श्रीवास्तव पिता का मददगार बना। यू-ट्यूब से सीखकर उसने पिता को जले मोबिल को असली मोबिल बनाने के धंधे का आडइिया दिया। कम समय में घाटे की भरपाई के साथ-साथ अधिक मुनाफे के सब्जबाग दिखाये। इसी के बाद लाकडाउन खुलते ही नकली मोबिल बनाने की फैक्ट्री शुरू कर दी गई।
पूछताछ में सामने आया कि बाप जहां नकली से असली माेबिल तैयार करने की जिम्मेदारी निभाता। वहीं बेटा बाजार में तेल खपाने के लिए मार्केटिंग का काम करता। आरोपित बेटे ने शहर की बजाय देहात पर फोकस किया। फैक्ट्री से सबसे ज्यादा तेल देहात में खपाया जाने लगा। 20 से 22 रुपये प्रतिलीटर जला मोबिल आरोपित खरीदते। इसके बाद जले मोबिल को असली मोबिल का रूप देने के लिए कलर लिक्विड व ग्रीस का इस्तेमाल किया जाता। मशीन से मिलावट के बाद नामी कपंनियों के डिब्बों में भरकर बाजार रेट से 40 से पचास रुपये कम में ग्राहक को दिया जाता। दुकानदार भी एक लीटर में 40 से 50 रुपये मुनाफा देखकर भारी मात्रा में फैक्ट्री से मोबिल खरीदने लगे।
दिल्ली से रैपर, गाजियाबद से तेल व खरीदते थे मोबिल के पुराने डिब्बे
पूछताछ में यह भी सामने आया कि आरोपित जला मोबिल गाजियाबाद से खरीदते थे जबकि रैपर दिल्ली से मंगाया जाता था। मोबिल के डिब्बे बरेली से ही कबाड़ियों से आरोपित खरीदते। इसमें छांटकर वही डिब्बे खरीदे जाते तो बिल्कुल फ्रेश होते थे। इसी के बाद पुराने डिब्बों में नकली मोबिल आयल भरकर असली में बेचा जाता था। किसी को मोबिल के नकली होने का शक न हो लिहाजा, नामी कंपनियों के असली मोबिल के डिब्बे व मोबिल सैंपल के रूप में दिखाया जाता। फैक्ट्री से सीधे खरीद की बात पर 40 से 50 रुपये छूट देने की बात कही जाती। इसी के बाद आरोपितों की नकली मोबिल फैक्ट्री चल पड़ी थी।